बारिश और धूप की कमी का दिमाग पर असर… गुस्सा और तनाव बना रहा मानसिक रोगी
चिकित्सकों के अनुसार अस्पतालों की मानसिक रोग ओपीडी में इन दिनों मरीजों की संख्या में करीब 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई है। मौसम के बदले रुख के कारण लोगों को कई तरह की दिक्कतें हो रही हैं। लोगों में गुस्सा, चिढ़चिढ़ापन और तनाव बढ़ रहा है।
HighLights
- मौसम का बदलता रूप लोगों को बीमार कर रहा है।
- मौसमी बीमारियों के साथ इस मानसिक परेशानी भी।
- ओपीडी में भी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
भोपाल। मौसम में आ रहा लगातार बदलाव लोगों को अनेक तरह से बीमार कर रहा है। कुछ लोग इससे शारीरिक तो कुछ लोग मानसिक तौर पर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। भोपाल शहर में बीते 10 दिनों से अधिक से आसमान पर लगातार बादल छाए हुए हैं। एक सप्ताह जमकर बारिश हुई फिर बारिश की गतिविधियां तो कम हो गई लेकिन आसमान पूरी तरह नहीं खुला।
मौसम के रुख में लगातार बदलाव
कभी मौसम में नमी लगातार बनी रहती है तो कभी सूरज भी बादलों के पीछे छिप गया है। मौसम का यह रूप लोगों को बीमार कर रहा है। मौसमी बीमारियों के साथ इस मौसम में मानसिक परेशानी भी बढ़ रही है। लगातार वर्षा से लोगों में गुस्सा, चिढ़चिढ़ापन और तनाव बढ़ रहा है।
मानसिक रोग ओपीडी में बढ़े मरीज
अस्पतालों की मानसिक रोग ओपीडी में भी मरीजों की संख्या में करीब 30 प्रतिशत का इजाफा हो गया है। बदलते मौसम के चलते मानसिक रोगियों में विभिन्न मानसिक रोगों के लक्षण उभर आते है। जिसके चलते मानसिक रोगियों में बढ़ोतरी हो जाती है। जेपी अस्पताल में सामान्य दिनों में प्रतिदिन करीब 40 मानसिक रोगों के मरीज आते है, वहीं इन दिनों में ओपीडी बढ़कर 50 से 55 तक पहुंच गई है। इसी तरह हमीदिया अस्पताल में भी ओपीडी 50 से बढ़कर 70 हो गई है।
सूरज की रोशनी कम होना है कारण
- वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. अवंतिका वर्मा बताती हैं कि इस मौसम में मानसिक रोग बढ़ने का मुख्य कारण सूरज की रोशनी कम होना है, जिसके चलते रोगियों के दिमाग में कैमिकल लोचा होने लगता है।
- सूर्य की किरणों का सीधा संबंध मनुष्य के दिमाग में पाए जाने वाले मेलाटोनिन और सेरोटोनिन कैमिकल पर पड़ता है।
- जब कई दिन तक धूप कम या बिल्कुल नहीं निकलती तो दोनों कैमिकल में उतार चढ़ाव हो जाता है, जिससे दिमागी परेशानी बढ़ जाती है।
अवसाद के मामले अधिक
आम दिनों के मुकाबले ऐसे दिनों में अवसाद के मामले ज्यादा आते हैं। इनमें पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है। नींद न आने और तनाव के मामले बढ़ जाते हैं। दरअसल सिरोटोटिन न्यूरोट्रांसमीटर का सीधा संबंध नींद से होता है। अगर यह कम होती है तो तनाव, चिढ़चिढ़ापन बढ़ जाता है। -डाॅ. सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक
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तेज ठंड में आत्महत्या के ख्याल भी आते हैं
सीजनल अफेक्टिव डिसआर्डर (एसएडी) एक प्रकार का डिप्रेशन है, जो आमतौर पर विशिष्ट मौसमों के दौरान होता है, खासकर जब सूरज की रोशनी कम होती है। सूरज की रोशनी का कम संपर्क शरीर की इंटरनल क्लाक को बिगाड़ देता है। वर्षा ही नहीं तेज ठंड के दौरान भी एसएडी के मरीजों की संख्या में इजाफा हो जाता है। तेज ठंड में आत्महत्या की ख्याल भी आते हैं।
सूर्य की रोशनी में ज्यादा देर बैठें
मानसिक रोगियों से बचने के लिए कई प्रकार के बचाव करने चाहिए। सुबह के समय सूर्य की रोशनी में ज्यादा देर बैठें। हरी सब्जियां ज्यादा खाएं, संतुलित आहार लें। शरीर में ताकत बनाएं रखने वाले पदार्थो का लगातार सेवन करें। नियमित रूप से एक्सरसाइज करें।परिवार के लोगों को मानसिक रोगियों का बदलते मौसम में खास ध्यान रखना चाहिए।अगर अधिक समस्या आती है तो चिकित्सक से सलाह लेकर उपचार करवाएं।