Health News : इंसुलिन रोग के बढ़ने की गति को धीमा करता है, तनाव नहीं सेहत पर ध्यान दें
HIGHLIGHTS
- टाइप-2 डायबिटीज में इंसुलिन चिकित्सा को लेकर हैं भ्रांतियां।
- भारत में डायबिटीज़ के 70 प्रतिशत रोगियों का ब्लड ग्लूकोज कंट्रोल स्तर में नहीं है।
- कई मामलों में इस बढ़े हुए नुकसान को बाद में पूरी तरह से ठीक करना संभव नहीं होता।
Health News : टाइप-2 डायबिटीज़ रोग हाई बीपी, हार्ट अटैक और टाइप-1 डायबिटीज जैसे अन्य दीर्घकालिक रोगों से भिन्न है। इसमें ब्लड ग्लूकोज स्तर बढ़ने की वजह से शारीरिक खराबी बहुत धीरे-धीरे बढ़ती है, और कुछ वर्षों के अंतराल के बाद तब मालूम पड़ती है जब कुछ अंगों में काफी नुकसान हो चुका होता है। इन्सुलिन शुरू करके खराबी के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है। कई मामलों में इस बढ़े हुए नुकसान को बाद में पूरी तरह से ठीक करना संभव नहीं होता। इसलिए डायबिटीज में इलाज का मुख्य उद्देश्य भविष्य में आने वाली समस्याओं से बचाव का होता है। केवल अभी के लिए शुगर स्तर कंट्रोल करना नहीं।
70 प्रतिशत रोगियों का ब्लड ग्लूकोज कंट्रोल स्तर में नहीं है
डायबिटीज रोग का अहसास रहित रहना और शुगर कंट्रोल का फायदा अल्प काल में समझ नहीं आना, इसके समुचित इलाज के रास्ते में बड़ा रोड़ा है। आइसीएमआर के अनुसार, भारत में डायबिटीज़ के लगभग 70 प्रतिशत रोगियों का ब्लड ग्लूकोज कंट्रोल स्तर में नहीं है, साथ ही जरूरी अंतरराष्ट्रीय मानकों से अधिक है। भारत एवं विश्व के कई देशों में यह देखा गया है कि रोगी और परिवार वालों के मध्य इंसुलिन चिकित्सा के प्रति तरह-तरह की शंका होने के कारण सही समय पर इस दवा की शुरुआत नहीं हो पाती है।
इंसुलिन शुरू होती है तो शरीर वापस पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाता है
इंसुलिन शुरू होती है तो शरीर वापस पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाता है, और उपयुक्त इलाज होने के बावजूद बढ़ रही अंगों की खराबी समय के साथ बढ़ती जाती है। हालांकि, ऐसे समय में भी इन्सुलिन शुरू करके खराबी के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है। परंतु जो विषमताएं और समस्याएं आने लगती हैं उनकी वजह से लोगों में इंसुलिन के प्रति नकारात्मक भाव बढ़ जाता है। इसलिए आवश्यक होने पर मरीजों को इंसुलिन चिकित्सा से पीछे नहीं हटना चाहिए।