मध्य प्रदेश की पहली ब्लड इरेडिएटर मशीन इंदौर पहुंची, चलाने के लिए मिला एईआरबी से लाइसेंस
टीएलडी बेज के आने के बाद मिलेगी कैंसर और बोनमैरो के मरीजों को सुविधा मिलने लगेगी। अभी कोबाल्ट से प्रक्रिया करने में एक घंटे तक का समय लगता है। जल्द और सुरक्षित इलाज के लिए कई वर्षों से मरीज इस मशीन के शुरू होने का इंतजार इंतजार कर रहे थे।
HIGHLIGHTS
- कैंसर और बोनमैरो के मरीजों को जल्द ही मिलने लगेगी सुविधा।
- ब्लड में मौजूद नकारात्मक कणिकाओं को नष्ट करेगी मशीन।
- इस मशीन के शुरू होने से 15 मिनट में पूरी हो जाएगी प्रक्रिया।
इंदौर। एमवाय अस्पताल में भाभा एटोमिक रिसर्च मुंबई द्वारा तैयार की गई प्रदेश की पहली ब्लड इरेडिएटर मशीन आई है। इसको चलाने के लिए एईआरबी (एटोमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड) से लाइसेंस मिल गया है।
अब मरीजों को जल्द ही इसकी सुविधा मिलेगी। मशीन को संचालित करने के लिए स्टाफ को टीएलडी (थर्मोल्यूमिनसेंट डोसीमीटर) बेज पहनना पड़ता है। इसके लिए भी ऑर्डर कर दिया है, यह रायपुर से आएंगे।
कैंसर और बोनमेरो के मरीजों को ब्लड चढ़ाने के दौरान रिएक्शन का खतरा रहता है। इरेडिएटर मशीन से ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिसीज यानी ब्लड में मौजूद नकारात्मक कणिकाएं नष्ट की जाती हैं। इससे संक्रमण का खतरा दूर हो जाता है।
अभी यह प्रक्रिया कैंसर अस्पताल में कोबाल्ट मशीन से की जा रही है, जिसमें मरीजों के स्वजन को घंटों इंतजार करना पड़ता है। मगर, इस मशीन के शुरू होने से अब घंटों का काम मिनटों में होने लगेगा। यह ब्लड इरेडिएटर मशीन का बीआई-2000 माडल है। इसकी कीमत 45 लाख रुपये है।
यह होता है टीएलडी बेज
विशेषज्ञों के मुताबिक, जो कोई भी रेडिएशन क्षेत्र में काम करता है यदि उसे रेडिएशन का एक्सपोजर हो गया, तो तुरंत पता नहीं चलेगा। इसलिए उसे बेज पहनना होता है, बेज को हर तीन माह में लैब में भेजा जाता है, जिससे पता चल जाता है कि कितना रेडिएशन लगा है।
बता दें कि इस मशीन को भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर मुंबई द्वारा तैयार किया जा रहा है। यह मशीन ब्लड में पाए जाने वाले जानलेवा ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिसीज को नष्ट करेगी, ताकि मरीजों को किसी भी प्रकार के रिएक्शन का खतरा न रहे।
बताते चलें कि बोन मैरो, कैंसर, थैलेसीमिया के मरीजों को जब ब्लड की आवश्यकता होती है, तो पहले ब्लड से ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिसीज को नष्ट करना होता है।
संभागभर के मरीजों को होगा फायदा
बता दें कि एमवाय अस्पताल में संभागभर के मरीज इलाज के लिए आते हैं। यहां कैंसर, बोनमैरो, थैलेसीमिया के मरीजों को ब्लड इरेडिएटर मशीन की सुविधा मिलने लगेगी। कैंसर अस्पताल में प्रतिदिन कई मरीजों को ब्लड की आवश्यकता होती है।
ऐसे में अब उन्हें ब्लड मिलने के बाद ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि ब्लड से ग्राफ्ट वर्सेज होस्ट डिसीज नष्ट होने से ब्लड भी जल्दी चढ़ने लगेगा। साथ ही एमजीएम कॉलेज के सुपर स्पेशिएलिटी, एमटीएच, चाचा नेहरू अस्पताल, मनोरमा टीबी अस्पताल में मरीजों की ब्लड की जरूरत को एमवाय ब्लड बैंक पूरी करता है। ऐसे में इस मशीन के आ जाने से यहां भर्ती मरीजों को भी फायदा होगा।
ऐसे काम करती है मशीन
लिम्फोसाइट्स ऐसी कोशिकाएं हैं, जो हमारे शरीर में होती हैं और हमें बीमारियों से बचाने में मदद करती हैं और ये ग्राफ्ट को अस्वीकार करती हैं। उन सेल को यह मशीन नष्ट कर देती हैं, जिससे ग्राफ्ट की स्वीकार्यता बढ़ जाती है।
होस्ट यानी जिसे ब्लड या ब्लड का प्रोडक्ट लगाया है और ग्राफ्ट यानी जिसने दिया है। ब्लड और ब्लड के प्रोडक्ट आपस में एक-दूसरे के रिलेटिव को दिए जाते हैं। इस कारण जो हानि बोनमैरो में होती है, उससे बचा जा सकता है।