Good Sleep: देश में 30 प्रतिशत लोग नहीं ले पाते अच्छी नींद, मोबाइल है सबसे बड़ी वजह
इंदौर में साउथ ईस्ट एशियन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन द्वारा एक कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें शामिल हुए देश-विदेश के डॉक्टरों ने लोगों में नींद ना आने की बढ़ती समस्याओं को लेकर अपने विचार रखें और किस तरह से नींद को सुधारा जा सकता है, इसकी जानकारी भी दी।
HighLights
- वयस्कों को आठ, तो बच्चों में 10 घंटे की नींद बेहद जरूरी।
- सोते समय खर्राटे आना गहरी नींद की नहीं होती है निशानी।
- मोबाइल की वजह से नींद सबसे ज्यादा होती है प्रभावित।
इंदौर। परिवर्तित जीवनशैली के कारण अब लोग पर्याप्त नींद नहीं ले पाते हैं। एक आंकड़े में यह सामने आया है कि देश में 30 प्रतिशत लोग अनिद्रा और 10 प्रतिशत स्लीप एप्निया से पीड़ित हैं। काम के दबाव, महत्वाकांक्षाओं, अनियंत्रित जीवनशैली, मोबाइल के अधिक उपयोग ने हमारी नींद को बुरी तरह प्रभावित किया है। यह बात मध्यभारत में पहली बार साउथ ईस्ट एशियन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में विशेषज्ञों ने कही।
विशेषज्ञों द्वारा नींद संबंधी विभिन्न विकारों जैसे अनिद्रा, खर्राटे और नींद में चलना आदि के कारणों, निदान और उपचार पर भी चर्चा की गई। ऑस्ट्रेलिया से आए नींद एवं श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. हिमांशु गर्ग ने बताया कि सोने से एक घंटे पहले टीवी, मोबाइल आदि से दूर रहने की आदत डालनी चाहिए।
इसके कारण स्ट्रोक, हार्ट अटैक, डायबिटीज, मनोरोग आदि की संभावना बढ़ जाती है। कांफ्रेंस में देश-विदेश के नींद से संबंधित रोगों का उपचार करने वाले छाती रोग विशेषज्ञ, दंत रोग विशेषज्ञ, ईएनटी रोग विशेषज्ञ, न्यूरोलाजिस्ट, साइकोलाजिस्ट एवं शिशु रोग विशेषज्ञ मौजूद रहे। कांफ्रेंस का शुभारंभ महापौर पुष्यमित्र भार्गव की उपस्थिति में हुआ। इस दौरान डॉ. अपूर्व पौराणिक ने अपने विचार साझा किए।
खर्राटे आना मतलब गहरी नींद नहीं
डॉ. गर्ग ने बताया कि नींद से जुड़े कई मिथक हमारे बीच मौजूद हैं, जैसे कि जो व्यक्ति खर्राटे ले रहा है वो चैन की नींद सो रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है, यह खर्राटे नींद से जुड़े विकारों के पहले कुछ लक्षण हो सकते हैं। खर्राटे न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप से भी असहज महसूस करा सकते हैं। यह खर्राटे आगे चलकर स्लीप एप्निया, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और स्ट्रोक्स के कारण बन सकते हैं।
60 प्रतिशत बच्चे नहीं ले पाते नींद
इंदौर के डॉ. रवि डोसी ने कोचिंग संस्थान में पढ़ने वाले बाहर के बच्चों पर एक रिसर्च की है। डॉ. डोसी ने बताया कि हमने इसमें 100 बच्चों को लिया था, उसमें देखा गया कि 60 प्रतिशत बच्चे अच्छी नींद नहीं ले पाते हैं। इसके विभिन्न कारण हैं जैसे रात को पढ़ना, तनाव, मोबाइल का उपयोग आदि। इन बच्चों में एलर्जी और सांस से जुड़ी समस्या होने की आशंका भी अधिक होती है।
बेहतर नींद के लिए सुझाव
- सोने का एक नियमित समय बनाएं।
- सोने वाले कमरे को शांत, अंधेरा और ठंडा रखें।
- आरामदायक बिस्तर और तकिए का इस्तेमाल करें।
- दिन में प्राकृतिक प्रकाश में रहें
- शाम को मोबाइल, कंप्यूटर की ब्लू लाइट से बचें।
- योग करें और तनाव कम लें।
- भारी भोजन, कैफीन और शराब से बचें।
- नियमित व्यायाम करें, लेकिन सोने से तीन-चार घंटे पहले व्यायाम न करें।
- सोने से पहले अधिक पानी न पिएं।
इन विषयों पर दिया व्याख्यान
कांफ्रेंस में दुनियाभर के नींद विशेषज्ञों ने ईईजी स्कोरिंग अब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया, पीएसजी स्टडी, नान- इनवेसिव वेंटिलेशन (एनआईवी), क्रोनिक वेंटिलेटरी फेलियर इन एनआईवी, स्लीप मेडिसन में टेलीमानीटरिंग, नार्कोलेप्सी, एस-एयर डेटा जैसे विषयों पर अपने व्याख्यान दिए।
प्रेसिडेंट डॉ. राजेश स्वर्णकार ने बताया कि वर्तमान में नींद से जुड़ी समस्याएं बहुत ही सामान्य हो गई हैं, इन विकारों पर जितनी बात की जाए, उतना बेहतर है। कई लोग सोते तो हैं लेकिन नींद पूरी नहीं हो पाती, इसे समझने के लिए सबसे पहले नींद को समझना बहुत जरूरी है। इस दौरान डॉ. शिवानी स्वामी, डॉ. शलिल भार्गव, डॉ. प्रमोद झंवर, डॉ. अशोक वाजपेयी, डॉ. रूपेश मोदी, डॉ. नरेंद्र पाटीदार आदि मौजूद रहे।
खर्राटे से बचाव के लिए आधुनिक डिवाइस
खर्राटे से बचाव के लिए अब बाजार में आधुनिक डिवाइस भी आ चुके हैं। कांफ्रेंस में एक स्टाल में मेंडिबुलर एडवांसमेंट डिवाइस भी आया है, जिसे सोने के पहले दांतों के बीच लगाना होता है। इससे खर्राटे नहीं आते हैं।
इसे मुंह के आकार के हिसाब से बनाया जाता है। इसके अलावा नींद की क्वालिटी जांचने के लिए भी डिवाइस आए हैं, जिससे हमें यह पता चल जाता है कि किस समय पर सांस रुक रही है, किस समय नींद अच्छी नहीं आ रही है।