गर्भवती महिलाओं के धूम्रपान से पैदा होने वाले बच्चे में विकार की आशंका अधिक, अस्थमा का खतरा

शिशु रोग विशेषज्ञ डा. पल्लवी गिरि कहती हैं कि इस तरह के मामले बिलासपुर में आसानी से देखने को मिल रहे हैं। वह बताती हैं कि महिलाओं में धूम्रपान करना आम हो चुका है। महिलाओं में धूम्रपान की आदत अब मेट्रो सिटी तक ही सीमित नहीं रह गई है। अब यह छोटे शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी देखने को मिलने लगी है।

HIGHLIGHTS

  1. धूम्रपान करने से मां और शिशु दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं
  2. धूम्रपान में सिगरेट ,बीड़ी, फ्लेवर्ड हुक्का और ई-सिगरेट भी हानिकारक
  3. धुएं से गर्भ में पल रहे बच्चे में पैदा हो सकते हैं कई तरह के विकार

 बिलासपुर। गर्भवती महिलाओं के धूम्रपान से बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, धूम्रपान करने वाली माताओं से जन्म लेने वाले बच्चों के फेफड़े छोटे होते हैं और उन्हें जीवनभर अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।

गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान से बच्चों में हो सकते हैं कई तरह के विकार

डा. पल्लवी गिरि बताती हैं कि गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने से मां और शिशु दोनों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। अगर मां गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करती है, तो भ्रूण में जन्म दोष जैसे कि कटे होंठ (क्लेफ्ट लिप) और कटे तालू (क्लेफ्ट पैलेट) विकसित हो सकते हैं। इसके अलावा गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है। गर्भावस्था के अंतिम महीने में धूम्रपान करने से शिशु का वजन कम हो सकता है, समय से पहले जन्म हो सकता है, और गर्भ में विकास अवरुद्ध हो सकता है।

धूम्रपान का अप्रत्यक्ष प्रभाव (पैसिव स्मोकिंग)

डा. गिरि कहती है अगर बच्चे अप्रत्यक्ष रूप से धूम्रपान के धुएं के संपर्क में आते हैं, तो उनके लिए श्वसन संक्रमण, निमोनिया और अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है। अस्थमा से पीड़ित बच्चों में, सिगरेट के धुएं के संपर्क में आने से अस्थमा की खांसी और बार-बार दौरे बढ़ सकते हैं।

छोटे फेफड़े और बड़ा खतरा

विशेषज्ञों के अनुसार धूम्रपान केवल सिगरेट तक ही सीमित नहीं है। बीड़ी, फ्लेवर्ड हुक्का, और ई-सिगरेट भी समान रूप से हानिकारक होते हैं। इन सभी प्रकार के धूम्रपान से गर्भ में पल रहे शिशु के फेफड़ों का विकास प्रभावित होता है, जिससे उनके फेफड़े सामान्य से छोटे रह जाते हैं। यह स्थिति बच्चों के शारीरिक विकास को भी प्रभावित कर सकती है।

 

धूम्रपान और दवा की प्रभावशीलता

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि धूम्रपान का असर दवाओं की प्रभावशीलता पर भी पड़ता है। धूम्रपान करने वाले किशोर और वयस्कों में अस्थमा का इलाज करना कठिन होता है, क्योंकि उनके शरीर में दवाओं का प्रभाव कम हो जाता है। इससे उनका स्टैमिना भी घट जाता है और वे फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से जीवनभर ग्रस्त रहते हैं।

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