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Spinal Fracture से परेशान है तो इन बातों की बिल्कुल न करें अनदेखी, बढ़ सकती है समस्या

HIGHLIGHTS

  1. रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर की समस्या विशेष रूप से बुजुर्गों में होती हैं।
  2. रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर के अधिकतर मामलों में इलाज के लिए सर्जरी की आवश्यकता नहीं हो सकती है।
  3. हमारे शरीर में हमारी रीढ़ की हड्डी में 3 खंड होते हैं।

हेल्थ डेस्क, इंदौर। रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर आम तौर पर वाहन दुर्घटना या खेल खेलते समय गिरने जैसे आघात के कारण होता है। हालांकि ये ऑस्टियोपोरोसिस के कारण भी हो सकता है। रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर की समस्या विशेष रूप से बुजुर्गों में होती हैं, लेकिन समय पर यदि इलाज नहीं किया जाए तो इसका निदान नहीं हो पाता है। रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर के बारे में यहां विस्तार से जानकारी दे रहे हैं इंदौर स्थित कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के लीड कंसल्टेंट और न्यूरो सर्जन डॉ. प्रणव घोडगांवकर।

जानें क्या होता स्पाइनल फ्रैक्चर

रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर ‘टूटी हुई पीठ’ की तरह होता है। रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर के अधिकतर मामलों में इलाज के लिए सर्जरी की आवश्यकता नहीं हो सकती है। कुछ गंभीर मामलों में ही सर्जरी की आवश्यकता होती है। हमारे शरीर में हमारी रीढ़ की हड्डी में 3 खंड होते हैं। सर्वाइकल (गर्दन), थोरेसिक (ऊपरी पीठ) और लम्बर (निचली पीठ) स्पाइन। फ्रैक्चर इनमें से किसी भी भाग को प्रभावित कर सकता है। रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर आमतौर पर 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं और ऑस्टियोपोरोसिस से जूझ रहे लोग में देखने को मिलता है।

विटामिन-D का करें भरपूर सेवन

ऑस्टियोपोरोसिस होने से रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर होने की संभावना बढ़ जाती है। हड्डियों से जुड़ी समस्या होने पर मरीज को विटामिन-डी का सेवन ज्यादा करना चाहिए। इसके अलावा रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर से इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह के बाद तत्काल एक्स-रे, MRI और CT-Scan कराएं। ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज आमतौर पर दवा से किया जाता है और दर्द होने पर नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं दी जा सकती हैं।

इन बातों की भी रखें सावधानी

रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर होने पर कोई भी शारीरिक जोखिम वाला कार्य करने से बचें। हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए अनुकूल आहार और व्यायाम जरूर करें। कैल्शियम और विटामिन-सी व विटामिन-डी से भरपूर आहार का सेवन करें। कार चलाते समय सीट बेल्ट पहनें। साथ ही अपने चिकित्सक से नियमित परामर्श लेते रहना चाहिए। विशेषकर 50 वर्ष की आयु के बाद समय-समय पर डॉक्टर को दिखाते रहना चाहिए।

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