जब एक ब्राह्मण MLA ने जान पर खेल बचाई थी मायावती की जिंदगी
नई दिल्ली. बात 1993 की है। जब बीजेपी को उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदखल करने के लिए मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने हाथ मिला लिए थे। उस वक्त यूपी विधानसभा में कुल 422 सीटें थीं। मुलायम सिंह यादव की नई नवेली पार्टी समाजवादी पार्टी ने 256 सीटों पर और बहुजन समाज पार्टी ने 164 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। चुनावों में सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली थीं। इसके बाद मुलायम सिंह यादव 5 दिसंबर 1993 को दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।
करीब डेढ़ साल तक सरकार ठीक तरह से चलती रही लेकिन मायावती और मुलायम के बीच धीर-धीरे मतभेद गहराने लगे। आपसी मनमुटाव और बीजेपी से शह मिलने बाद मायावती ने 2 जून, 1995 को मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। इससे मुलायम सिंह की गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गई।
इससे खफा सपा के कार्यकर्ताओं और विधायकों ने लखनऊ के मीराबाई रोड पर स्थित सरकारी गेस्ट हाउस पर धावा बोल दिया। दरअसल, उसी गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में मायावती ठहरी हुई थीं। उस वक्त मायावती अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं, तभी सपा समर्थकों ने वहां धावा बोल दिया।
मायावती की जिंदगी पर आधारित किताब ‘बहनजी’ में लेखक अजय बोस ने लिखा है कि सपा समर्थित गुंडों ने कमरे में बंद करके मायावती को मारा पीटा था और कपड़े फाड़ दिए थे। उस कमरे के बाहर कई सपा समर्थक जमा थे, तभी बीजेपी के दबंग ब्राह्मण विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी वहां पहुंच गए। किताब में बताया गया है कि द्विवेदी ने तब अपनी जान पर खेलकर दलित मायावती की इज्जत और जिंदगी बचाई थी। द्विवेदी ने तब हिम्मत कर सपा कार्यकर्ताओं को गेस्टाहाउस के कमरे नंबर एक से धक्का देकर बाहर निकाला था और बहुत मुश्किल से दरवाजा बंद किया था। इस कांड को यूपी की सियासत में गेस्टाहाउस कांड कहा जाता है।
इस हादसे से मायावती सहम गईं। मायावती ने दबंग ब्रह्मदत्त द्विवेदी को तब से बड़ा भाई बना लिया था। मायावती ने उसके बाद से कभी भी उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा। यहां तक कि मायावती जिस बीजेपी का राज्यभर में विरोध करतीं, उसी बीजेपी के लिए पर्रुखाबाद में वोट मांगती थीं। द्विवेदी पर्रुखाबाद से ही चुनाव लड़ते थे।
कहा जाता है कि जब आपसी रंजिश में ब्रह्मदत्त द्विवेदी की गोली मारकर हत्या हुई, तब मायावती उनकी लाश पर फूट-फूटकर रोई थीं। जब द्विवेदी की विधवा ने उनकी सीट पर चुनाव लड़ा, तब भी मायावती ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था।
ब्रह्मदत्त द्विवेदी के अलावा दो कनिष्ठ पुलिस अफसरों ने भी हिम्मत जुटाकर मायावती को बचाया था। ये थे विजय भूषण, जो हजरतगंज स्टेशन के हाउस अफसर (एसएचओ) थे और सुभाष सिंह बघेल जो एसएचओ (वीआईपी) थे, जिन्होंने कुछ सिपाहियों को साथ ले कर बड़ी मुश्किल से भीड़ को पीछे धकेला था।