40 की उम्र के बाद पुरुषों में क्यों बढ़ जाता है इन रोगों का खतरा?
माना जाता है कि पुरुष शारीरिक रूप से महिलाओं से अधिक मजबूत होते हैं। पर आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। मृत्यु के प्रमुख पंद्रह कारणों में पुरुष महिलाओं से चौदह में आगे हैं। चालीस पार पुरुषों के लिए किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है, बता रही हैं शमीम खान
क्या कहता है विश्व स्वास्थ्य संगठन –
ब्रिटेन में न्यूकासल यूनिवर्सिटी और किंग्स कॉलेज, लंदन के शोधकर्ताओं ने 28 देशों में एक व्यापक अध्ययन कर बताया है कि 50 साल या इससे अधिक उम्र के पुरुषों में मौत का खतरा हमउम्र महिलाओं से 60 प्रतिशत अधिक होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2016 में महिलाओं की औसत उम्र 74 साल 2 महीने थी। वहीं, पुरुषों की औसत उम्र 69 साल 8 महीने थी।
प्रमुख स्वास्थ्य खतरों की बात करें तो जापान की टोकियो मेडिकल और डेंटल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक शोध के अनुसार, पुरुष गंभीर रोगों के आसान शिकार होते हैं। मौत के पहले 15 कारणों में अल्जाइमर्स ही ऐसा रोग है, जिससे मरने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है, वह भी इसलिए क्योंकि अधिकतर पुरुष उस उम्र तक पहुंच ही नहीं पाते, जिसमें अल्जाइमर्स की आशंका अधिक होती है। इस शोध में यह भी कहा गया कि टी-कोशिकाएं शरीर का संक्रमणों से संरक्षण करती हैं और बी-कोशिकाएं हैं जो एंटीबॉडीज पैदा करती हैं। अधिकतर पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ ‘टी’ और ‘बी’ कोशिकाओं में तेज गिरावट देखी जाती है, यह स्थिति पुरुषों के रोगों की चपेट में आने के खतरे को बढ़ा देती है।
प्रमुख स्वास्थ्य खतरे-
कार्डियोवैस्क्युलर डिसीजेज कार्डियोवैस्क्युलर रोगों में हृदय रोग, स्ट्रोक, उच्च रक्तदाब प्रमुख हैं। इंडियन हार्ट असोसिएशन के अनुसार, हृदय रोगों के बारे में डॉक्टर से परामर्श लेने वालों में 60 प्रतिशत युवा पुरुष होते हैं। भारतीय पुरुषों में होने वाले कुल हार्ट अटैक के मामलों में से 50 प्रतिशत 50 से कम आयु के लोगों में देखे जाते हैं, जबकि 25 प्रतिशत 40 वर्ष से कम उम्र के पुरुषों में होते हैं। इतना ही नहीं, पुरुषों में कार्डियोवैस्क्युलर रोगों की चपेट में आने का खतरा महिलाओं से दुगना होता है।
कैंसर की चपेट में अधिक आते हैं पुरुष-
कैंसर महिलाओं के स्तन व प्रजनन तंत्र से जुड़े कैंसर को छोड़ दिया जाए तो पुरुष कैंसर की चपेट में अधिक आते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के अनुसार, ‘कोलोरेक्टल कैंसर, ब्लैडर कैंसर, लंग कैंसर, किडनी कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर आदि के मामले पुरुषों में अधिक होते हैं। मुंह के कैंसर के मामले में हमारा देश विश्व में पहले स्थान पर है। यहां हर छह घंटे में एक पुरुष की जान ओरल कैंसर से हो जाती है। आईसीएमआर कैंसर सेंटर की स्टडी के अनुसार, पिछले 6 वर्षों में ओरल कैंसर के मामले 114 प्रतिशत तक बढ़े हैं।
महिलाओं को अधिक होता है अवसाद-
अवसाद और आत्महत्या अवसाद केवल मूड खराब होना या दुखी होना नहीं है। यह एक भावनात्मक गड़बड़ी है। अवसाद के मामले महिलाओं में अधिक सामने आते है। पर, इसका कारण है कि पुरुष सबके सामने अपने आपको शक्तिशाली दिखाने का प्रयास करते हैं। उदास होने की जगह गुस्सा या आक्रामक व्यवहार करते हैं। नशीली चीजों का सेवन करने लगते हैं। आत्महत्या से मरने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं से लगभग 4 गुनी होती है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार पिछले दस वर्षों में आत्महत्या के मामलों में 17.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
उच्च रक्तचाप-
विश्व में करीब 113 करोड़ लोगों को उच्च रक्तचाप है। प्रत्येक 4 में से 1 पुरुष और 5 में से 1 महिला को उच्च रक्तचाप है। हाईबीपी से हृदय पर दबाव पड़ता है, जिससे हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक और किडनी फेल होने की आशंका बढ़ जाती है। अच्छी बात यह हैकि स्टोक के 80 प्रतिशत मामलों से बचा जा सकता है, अगर रक्तदाब को सामान्य (120/80) से कम रखा जाए।
पार्किंसन्स डिजीज-
यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से जुड़ा विकार है, जिससे शरीर का मूवमेंट प्रभावित होता है। जब मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो डोपामिन का स्तर कम हो जाता है। इसके लक्षणों में कंपन, शरीर का संतुलन न बना पाना, कड़ापन और मूवमेंट धीमी होना प्रमुख हैं। पार्किंसन्स के मामले पुरुषों में महिलाओं से लगभग 50 प्रतिशत अधिक देखे जाते हैं। शोधों के अनुसार इसका पुरुष क्रोमोसोम वाय से जेनेटिक लिंक है, जो महिलाओं में नहीं पाया जाता है। क्यों होते हैं बीमारियों के आसान शिकार
जैविक कारण-
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, रोगों का खतरा, और उपचार के परिणाम लिंग (एक्स और वाय क्रोमोसोम के फंक्शन), हार्मोन्स और शारीरिक संचरना से जुड़े होते हैं। पुरुषों का शरीर एप्पल-शेप होता है, जिससे उनकी कमर के आसपास वसा अधिक जमती हैं। यह विसरल फैट हृदय रोगों का खतरा बढ़ाता है। उनमें अच्छे कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी कम होता है। उनमें फीमेल हार्मोन प्रोजेस्ट्रॉन भी नहीं होता है जो हृदय को सुरक्षा देता है।
पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ-
हमारे यहां परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी करने का जिम्मा पुरुषों पर होता है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कई बार वे तन और मन पर क्षमता से अधिक बोझ डाल देते हैं। इससे कोशिकाओं और ऊतकों में टूट-फूट तेज हो जाती है। रोगों से लड़ने की उनकी क्षमता कम हो जाती है।
अपनी भावनाएं व्यक्त न करना-
अधिकतर पुरुष अपनी भावनाएं साझा करने से बचते हैं। किसी से मदद मांगने से कतराते हैं। ऐसे में दबी भावनाएं गुस्से, हताशा में बाहर निकलती है और तन-मन पर बुरा असर पड़ता है।
नींद न लेना –
पूरी नींद न लेना कभी प्रोफेशनल जिम्मेदारियां तो कभी आदतवश पुरुष देर तक जागे रहते हैं व गैजेट्स पर काम करते हैं। शिफ्ट जॉब्स के कारण भी उनका स्लीप पैटर्न गड़बड़ाया रहता है। अनिद्रा की स्थिति लगातार रहने से डिप्रेशन, एंग्जाइटी पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॅार्डर, एडीएचडी आदि का खतरा बढ़ जाता है।
ये आदतें भी हैं जिम्मेदार-
बीमार बनाने वाली आदतों का साथ धूम्रपान, शराब पीना, नशीले पदार्थों का सेवन, गैजेट्स का इस्तेमाल व बाहर का खाना अधिक खाना। रैश ड्राइविंग के कारण वे सड़क दुर्धटनाओं के शिकार भी अधिक होते हैं।
40 पार उठाएं ये कदम-
अकेले न रहें-
कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के अध्ययन के अनुसार, ‘अकेलापन हमें कई तरह के रोगों की ओर ले सकता है। डिजिटल दुनिया से बाहर निकलें, लोगों से मिलें जुलें।
मानसिक तनाव से बचें-
स्वस्थ, प्रसन्न रहने और लंबी आयु के लिए मानसिक रूप से फिट होना जरूरी है। तनावमुक्त जीवनशैली अपनाएं। क्षमता से अधिक काम न करें। अति महत्वकांक्षाओं के लिए सेहत को नजरअंदाज न करें।
वजन न बढ़ने दें-
अपना वजन काबू में रखें। इसके लिए सही डाइट और नियमित वर्कआउट करें। नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के अनुसार, कमर का घेरा बढ़ने से मोटापे से जुड़े रोगों जैसे टाइप 2 डायबिटीज, हार्ट डिजीज और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है, खासकर अगर कमर 40 इंच से अधिक है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है, मोटे पुरुषो में प्रोस्टेट कैंसर से मृत्यु का खतरा सामान्य भार वालों से 35 फीसदी अधिक होता है।
उचित खान-पान-
हम क्या खाते हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है। खाने के बेहतर विकल्पों को चुनें। घर का बना संतुलित, पोषक और सुपाच्य भोजन खाएं। फल, सब्जियां भरपूर खाएं।
जीवन में अनुशासन लाएं-
नियत समय पर खाएं-पिएं और सोएं। नियमित वर्कआउट करें। पूरी नींद लें। अपनी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। जहां तक संभव हो धूम्रपान, शराब या दूसरे नशीले पदार्थों के सेवन से बचें।
40 के बाद नियमित कराएं ये जांच-
अगर परिवार में किसी गंभीर बीमारी का इतिहास है तो पुरुषों को खास सतर्क रहना चाहिए।
-कम्पलीट ब्लड काउंट्स (सीबीसी)
-ब्लड शुगर
-किडनी फंक्शनिंग टेस्ट
– लिवर फंक्शनिंग टेस्ट
-केवल कोलेस्ट्रॉल नहीं कम्पलीट लिपिड प्रोफाइल
-थायरॉइड फंक्शंस, पीएसए (प्रोस्टेट से जुड़ी आशंका दूर करने के लिए)
– छाती का एक्स-रे
-हृदय रोगों की पहचान के लिए ईसीजी/इको/टीएमटी
गंभीरता से लें इन संकेतों को
-खानपान की आदतों में बदलाव आने लगना।
– सामान्य से अधिक प्यास लगना।
– अत्यधिक थकान होना।
– थोड़ा सा भी पैदल चलने पर हांफने लगना।
– पेशाब या मल में खून आना।
– मल का रंग काला होना।
– अकारण वजन तेजी से बढ़ना या कम होना।
– अत्यधिक उदास और निराश महसूस करना।
स्रोत-
(सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी),विशेषज्ञ डॉ. गौरव जैन, इंटरनल मेडिसिन, धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशिएलिटी अस्पताल, दिल्ली। डॉ. उमेश कोहली, सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट, एकार्ड सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, फरीदाबाद। डॉ. विकास गुप्ता, निदेशक, न्यूरो सर्जरी, कैलाश दीपक हॉस्पिटल, दिल्ली)