युवा अवस्था में दिखने लगते हैं एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण, हल्के में न लें

एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के शुरुआती लक्षणों में पीठ दर्द और पीठ के निचले हिस्से और कूल्हों में अकड़न शामिल हो सकती है, खासकर सुबह के समय और निष्क्रियता के बाद। गर्दन में दर्द और थकान भी आम है। समय के साथ, लक्षण अनियमित अंतराल पर खराब हो सकते हैं, सुधर सकते हैं या बंद हो सकते हैं।

HIGHLIGHTS

  1. एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण किशोरावस्था में ही दिखने लगते हैं
  2. यह बीमारी मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है
  3. एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस के महीने में 15 से 20 नए मामले

बिलासपुर। एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण किशोरावस्था में ही दिखने लगते हैं। इसके प्रभावित मरीजों की औसत उम्र 20 से 22 साल होती है। जानकारी के अभाव में लोग इसे सामान्य जोड़ो का दर्द समझ लेते हैं और अक्सर इसका इलाज ऑर्थोपेडिक डॉक्टरों से कराते रहते हैं। शुरुआती दौर में इसे पकड़ पाना मुश्किल होता है क्योंकि एक्स-रे में हड्डियों में कोई बदलाव नहीं दिखता है। अधिकतर लोग रूमेटोलॉजिस्ट के पास तब पहुंचते हैं जब उनकी बीमारी बढ़ चुकी होती है या हड्डियों का फ्यूज़न एक्स-रे में साफ़ दिखाई देने लगता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस के महीने में 15 से 20 नए मामले देखने को मिल जा रहे है।

बम्बू स्पाइन
 
बम्बू स्पाइन का खतरा यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें अपनी ही कोशिकाएं अपने ही शरीर पर हमला करती हैं। इसके चलते हड्डियों में अतिरिक्त कैल्शियम जमा होने लगता है, जिससे रीढ़, कमर, कंधे और छाती में दर्द और अकड़न बढ़ सकती है। सही समय पर इलाज न मिलने से हड्डियों में कैल्शियम अधिक जमा होकर हड्डियां एक दूसरे से चिपक जाती है जिससे हड्डियों का लचीलापन खत्म हो जाता है। इस प्रभाव विशेष कर रीढ़ की हड्डियों पर देखने को मिलता है, हड्डियां चिपक जाने से यह बांस के समान कठोर हो जाती है। इसे बैम्बू स्पाइन कहा जाता है।
 
 

लक्षण और प्रभावित स्थान

 
एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस में सूजन आमतौर पर सैक्रोइलियक जोड़ों (कूल्हे) के आसपास शुरू होती है। इससे जुड़ा दर्द आराम या निष्क्रियता की अवधि के दौरान अधिक होता है। इस पीड़ित इंसान अक्सर रातों में पीठ दर्द के साथ जागते हैं और व्यायाम से लक्षण कम हो जाते हैं। यह बीमारी मुख्य रूप से रीढ़ को प्रभावित करती है, जिससे जोड़ों और लिगमेंट में सूजन और कठोरता आ जाती हैं। यह बीमारी धीरे धीरे अन्य जोड़ जैसे कूल्हे, कंधे और घुटने को भी चपेट में ले सकती है।
 
डायग्नोसिस और इलाज
 
डॉक्टर आमतौर पर लक्षणों (दर्द, जकड़न) और सैक्रोइलियक जोड़ों की सूजन के आधार पर एंकिलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस का निदान करते हैं। एक्स-रे या एमआरआई द्वारा पुष्टि की जाती है। अगर लक्षण या एक्स-रे से पुष्टि नहीं होती, तो एचएलए बी27 जीन की जांच के लिए रक्त परीक्षण किया जाता है। इलाज में शिक्षा, पोस्चर, व्यायाम और दवाओं का मिश्रण शामिल है।
एक्सपर्ट व्यू
 
एंकाइलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस को गठिया-बात से जुड़े बीमारियों में सबसे खतरनाक माना जाता है। ये बीमारी ज्यादेतर युवा पुरुषो में देखि जाती है। पुरुष की तुलना में महिला को ये कम होती है। ये बीमारी काफी युवावस्था से ही शुरू हो जाती है। शुरुवाती समय में ये बीमारी हमारे स्पाइन और कूल्हे के जोड़ो को अटैक करती है। जानकारी के आभाव में हमारे पास 50 प्रतिशत ही मरीज समय पर पहुंच पाते है। बाकि के मरीज हमारे पास तब पहुंचते है जब बीमारी जोड़ो को नुकसान पहुंचना शुरू कर चुकी होती है। लोगो में इसके प्रति अवेर्नेस की काफी कमी है। इन्शुरन्स कम्पनिया भी इसे अपने हेल्थ कवर प्लान से बाहर रखती है। सरकार भी गठिया-बात के मरीजों के लिए कोई खास योजना नहीं चलाती। इनके मरीजों को गोवेर्मेंट की तरफ से सपोर्ट मिलना चाहिए क्युकी इन बीमारियों की दवाए काफी महंगी होती है।
 
डॉ जगबिर सिंह, रयूमेटोलॉजिस्ट

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