Hello Doctor : देखने से नहीं संक्रमित के संपर्क में आने से फैलता है आंखों का रोग
Hello Doctor : आंखों को न छुएं, छूने के बाद हाथ धोएं, तौलिया, तकिया, आइ कास्मेटिक्स आदि को किसी से साझा न करें।
Hello Doctor कंजक्टिवाइटिस देखने से नहीं बल्कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है। कंजक्टिवाइटिस होने पर अपनी आंखों को अपने हाथ से न छुएं, जब भी जरूरी हो अपने हाथों को धोएं, अपनी निजी चीजों जैसे तौलिया, तकिया, आई कास्मेटिक्स (आंखों के मेकअप) आदि को किसी से साझा न करें। अपना रूमाल, तकिये के कवर, तौलिये आदि को रोज धोना चाहिए। एक या दोनों आंखों का लाल या गुलाबी होना, जलन या खुजली होना, असामान्य रूप से अधिक आंसू निकलना, आंखों से पानी जैसा या गाढ़ा डिस्चार्ज निकलना, आंखों में किरकिरी महसूस होना, आंखों में सूजन आ जाना जैसे लक्षण आएं तो सतर्क हो जाना चाहिए।
समय रहते नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श लें
समय रहते नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर इस समस्या से आसानी से राहत पाई जा सकती है। इसके दो प्रकार हैं, वायरल व बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस। कंजक्टिवाइटिस को फैलने से रोकने के लिए साफ-सफाई रखना सबसे जरूरी है। नईदुनिया के हेलो डाक्टर कार्यक्रम में यह सुझाव नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. अर्पिता स्थापक दुबे ने दिए। डा. अर्पिता से जबलपुर समेत कटनी, नरसिंहपुर, दमोह, बालाघाट, सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, मंडला, डिंडौरी आदि जिलों के पाठकों ने कई सवाल पूछे।
लेजर की सहायता से आसानी से चश्मा उतारा जा सकता है
डा. अर्पिता ने कहा कि मोतियाबिंद, कांचियाबिंद समेत आंखों की तमाम बीमारियों के लक्षण व उपचार की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि लेजर की सहायता से आसानी से आंखों का चश्मा उतारा जा सकता है। 40 वर्ष की अायु के बाद नियमित रूप से आंखों की जांच नेत्र रोग विशेषज्ञ से कराना चाहिए। इससे कांचियाबिंद व मोतियाबिंद समेत अन्य बीमारियों का समय से पता चल जाता है और उपचार आसान हो जाता है।
आंखों की जांच में समय लगता है
डा. अर्पिता ने बताया कि किसी शोरूम में खरीदी के दौरान लोग घंटों समय व्यतीत कर देते हैं। परंतु उन्हें किसी अस्पताल में आंखों की जांच में जल्दबाजी करते हैं। जबकि एक मरीज की आंखों की जांच में उसकी नजर, चश्मे का नंबर, आंखों का प्रेशर, आंखों के सामने व पीछे के पर्दे की जांच तथा इन जांचों के दौरान सामने आई नई समस्या की जांच की जाती है। इस प्रक्रिया में समय लगना स्वभाविक प्रक्रिया है। रेटिना, कार्निया, आप्टिक नर्व आदि की जांच यानि नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श के दौरान मरीज को पर्याप्त समय देना चाहिए।
धुंधला दिखने की शिकायत
आंखों की जांच के बाद कुछ मरीज धुंधला दिखाई देने की शिकायत करते हैं। दरअसल, रेटिना की जांच के लिए आंखों में दवा डाली जाती है। शुगर व ब्लडप्रेशर वाले मरीजों की आंखों की जांच के दौरान भी दवा डाली जाती है। ताकि आंखों की समस्या का बारीकी से अध्ययन किया जा सके। दवा के कारण कुछ घंटाें के लिए आंखों से धुंधलापन नजर आता है। परंतु 4-5 घंटे में स्थिति बेहतर हो जाती है। इस दशा में मरीज को स्पष्ट दिखाई देने तक स्वयं वाहन नहीं चलाना चाहिए।
दूर हो या पास का उतर जाता है चश्मा
उम्र के साथ या कुछ अन्य कारणों से आंखों की रोशनी प्रभावित होने लगती है। चश्मा लगाकर समस्या का निवारण किया जाता है। परंतु लेजर की सहायता से दूर व पास की नजर का चश्मा आसानी से उतारा जा सकता है। वर्तमान में उनके अस्पताल में दुनिया की सबसे अाधुनिक आधुनिक और सुरक्षित लेज़र तकनीक उपलब्ध है। एक डायप्टर पावर निकालने में सिर्फ एक सेकंड समय लगता है। देशभर में इस तकनीक से चश्मा उतारने के लिए अब तक सिर्फ छह मशीन हैं, जिसमें एक जबलपुर में उपलब्ध है।
विशेषज्ञ से परामर्श के बाद ही दवाओं का सेवन
डा. अर्पिता ने बताया कि कंजक्टिवाइटिस के कारण आंखों में तेज दर्द व चुभन महसूस होना, नजर धुंधली हो जाना, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता व आंखों का अत्यधिक लाल हो जाना जैसे लक्षण सामने आने पर चिकित्सीय परामर्श लेना चाहिए। 7-8 दिन में वायरल कंजक्टिवाइटिस के लक्षणों में अपने आप सुधार आ जाता है। वार्म कम्प्रेस (कपड़े को हल्के गर्म पानी में डुबोकर आंखों पर रखना) से लक्षणों में आराम मिलता है। बैक्टीरियल कंजक्टिवाइटिस में एंटीबायोटिक्स आई ड्राप्स और आइंटमेंट के इस्तेमाल से कुछ ही दिनों में आंखें सामान्य और स्वस्थ्य होने लगती हैं। कंजक्टिवाइटिस होने पर 2-3 दिन के बाद भी तकलीफ़ बनी रहे तो नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
सवाल-वर्क फ्राम होम और आनलाइन पढ़ाई की वजह से बच्चे लगातार कंप्यूटर, मोबाइल पर नजरें गड़ाए रहते हैं। इससे उनकी आंखों को नुकसान तो नहीं होगा।
कोमल सिंह
जवाब-कोविड के दौरान वर्क फ्राम होम व आनलाइन पढ़ाई का चलन बढ़ा है। कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर लगातार नजरें गड़ाए रखने से आंखों पर विपरीत असर पड़ता है। इसलिए बेहतर होगा कि स्क्रीन पर कार्य के दौरान प्रत्येक 20 मिनट में 20 सेकंड के लिए आंखों को राहत दें और 20 फीट दूर तक देखें। आंखों की नमी बनाए रखने के लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ की सलाह पर लुब्रीकेंट आई ड्राप का उपयोग करें। आंखों में नमी बनी रहे अन्यथा सूखापन के कारण कंप्यूटर विजन, माइग्रेन जैसी समस्याएं होने लगती हैं। कंप्यूटर व मोबाइल पर ब्लू फिल्टर स्क्रीन का उपयोग करें।
सवाल-मेरी आयु 45 वर्ष है। पावर वाला चश्मा लगाता हूं फिर भी आंखों में दर्द बना हुआ है। क्या चश्मा उतर सकता है।
मनोज कुमार
जवाब-आप चश्मे के नंबर की जांच कराएं। साथ ही अगला चश्मा एंटी ग्लेयर ग्लास वाला बनवाएं। आंखों की नमी बनाए रखने के लिए रोजाना 4-5 बार लुब्रीकेंट आई ड्राप डालें। समय-समय पर नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर चश्मे के नंबर की जांच कराते रहें। लेजर की सहायता से आप चश्मा उतरवा सकते हैं।
सवाल-मोतियाबिंद से राहत पाने के लिए आपरेशन आवश्यक है या फिर दवा के सेवन से ठीक किया जा सकता है।
दीपक पटले
जवाब-एक उम्र के बाद मोतियाबिंद की समस्या होती है। परंतु कई बार आंखों में चोट लगने के कारण व तमाम कारणों से कुछ बच्चों को भी मोतियाबिंद हो जाता है। रात में गाड़ी चलाते समय चकाचौंध, रंग हल्का नजर आना, रोशनी कम हो जाना जैसी समस्याएं होती हैं। मोतियाबिंद का उपचार आपरेशन से संभव है।
सवाल-मेरी उम्र 75 वर्ष है, दोनों आंखों का मोतियाबिंद का आपरेशन हो चुका है, परंतु कुछ दिनों से रोशनी प्रभावित हो रही है।
श्यामलाल साहू
जवाब-मोतियाबिंद के आपरेशन के कुछ वर्ष बाद लैंस के ऊपर झिल्ली बन जाती है, जिससे आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। लेजर की सहायता से झिल्ली को अलग कर दिया जाता है जिससे रोशनी बेहतर हो जाती है।
सवाल-कंजक्टिवाइटिस हो गया है, क्या सावधानी बरतनी चाहिए ताकि संक्रमण फैलने न पाए।
शशिप्रभा गौतम
जवाब-मानसून सीजन में कंजक्टिवाइटिस का खतरा बढ़ जाता है। कंजक्टिवाइटिस देखने से नहीं बल्कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती है। संक्रमित व्यक्ति को आइसोलेट करते हुए नेत्र रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। अपने कपड़े, तौलिया आदि अलग कर लें तथा उनकी नियमित सफाई करें। आंखों पर बार-बार हाथ लगाने से बचें। आंखों की सिंकाई फायदेमंद है।