1932 खतियान के लिए…बैलगाड़ी पर दुल्हन को ले गये दूल्हे राजा

धनबाद के राजगंज से बुधवार की सुबह एक दूल्हे राजा बैलगाड़ी पर अपनी दुल्हनिया लेकर बोकारो के लिए रवाना हुए, तो रास्ते में लोग हैरत से देखने के साथ तारीफ भी करते दिखे. दरअसल, बोकारो के हरला थाना क्षेत्र के सेक्टर-11 स्थित भतुआ से नंदलाल महतो के पुत्र सुखलाल महतो (24) की बरात राजगंज थाना क्षेत्र के दलुडीह चुंगी निवासी कामेश्वर महतो के यहां तीन मई को गयी थी. इसमें बराती जमकर नाचे.

भीड़ भी जुटी. बरात की तारीफ इसलिए हुई, कि फिर से लोग पुरानी परंपरा को अपना रहे हैं. सुखलाल महतो का विवाह 22 वर्षीया राधा बानुआर के साथ हुआ. सुखलाल इंटर पास है तथा राधा बीए कर रही है. परिवार ने बताया कि बैलगाड़ी पर बरात लेकर जाने का मकसद परंपराओं को आगे बढ़ाना था. इसके अलावा शादी की खास बात यह थी कि कार्ड से लेकर बैलगाड़ी तक पर 1932 खतियान का जिक्र था. बैलगाड़ी की चारों ओर झारखंडियों की पहचान 1932 का खतियान, स्थानीय नीति बनाने की मांग अंकित थी.

सजी-धजी बैलगाड़ी थी ग्रामीणों के आकर्षण का केंद्र, तीन मई को हुई शादी

शादी के साथ-साथ अधिकार की मांग

बैलगाड़ी को रथ की तरह सजाया गया था. जब रास्ते से बरात गुजर रही थी, तब सबकी निगाहें इसी पर थीं. सुखलाल महतो के ससुरालवाले भी आश्चर्यचकित थे. दूल्हा अपनी दुल्हन राधा को राजगंज से विदा कर बैलगाड़ी से भतुआ पहुंचा, तो परिवारवालों के साथ-साथ ग्रामीणों की खुशी देखने लायक थी. बैलगाड़ी ही नहीं, बैलों को भी रंगों व फूलों से सजाया गया था. विवाह समारोह में 1932 खतियान के लिए आंदोलन चला रहे जयराम महतो भी शामिल हुए.

अलग-अलग तरीके से हो रही 1932 खतियान की मांग

1932 खतियान की मांग अलग-अलग तरीके से की जा रही है. झारखंड के कई युवा विवाह के निमंत्रण कार्ड पर इस स्लोगन को छपवा रहे हैं. पिछले दिनों आइपीएल मैच देखने के दौरान बोकारो जिला के नावाडीह गांव के युवा चेहरे पर पेंटिंग कर 1932 खतियान की मांग कर चुके हैं.

इन सबसे अलग विकास कुमार देश के प्रत्येक नागरिक तक झारखंडी युवाओं की मांग पहुंचाने के लिए साइकिल से भारत यात्रा पर निकले हैं. फिलहाल विकास तिरंगा लेकर बेंगलुरु से चेन्नई के लिए चले हैं. झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के केंद्रीय अध्यक्ष निमाई महतो ने कहा कि हम अलग-अलग तरीके से देश के हर नागरिक तक झारखंडियों के साथ हो रहे अन्याय की जानकारी देना चाहते हैं, ताकि मूलवासी-आदिवासी को उनका अधिकार मिल सके.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button