हड़िया : झारखण्ड का अनोखा सर्वमान्य मादक पेय
झारखण्ड के वन-प्रांतर में रहने वाले जनजातीय एवं मूलवासी परिवारों में एक पारम्परिक पेय पदार्थ हड़िया के सार्वजनिक रूप से सेवन का प्रचलन सर्वमान्य है। इस पेय पदार्थ में उर्जा और मादकता स्तर पर हड़िया को मद्य निषेध कानूनों के दायरे से मुक्त रखा गया है। वस्तुतः हड़िया घर-धर में बनाया जाता है।
इसका मूल घटक चावल है, जो आसानी से उपलब्ध है। हड़िया बनाने की विधि बहुत अधिक जटिल नहीं होने से इसे तैयार करने में परहेज नहीं किया जा रहा है। वस्तुतः सीधे शब्दों में कहा जाए तो हड़िया चावल के भात से बनता है।
लेकिन इसके मूल घटक में चावल के अतिरिक्त गेहूँ और मडु़वा को भी शामिल कर लिया गया है। गेहूँ और मड़ुवा का भी भात सिंझा कर समान-विधि से हड़िया बनाया जाता है।
चावल में अरवा और उसना दोनों प्रकार का उपयोग हो सकता है। लेकिन विशेष रूप से उसना चावल के भात से ही हड़िया बनाने का प्रचलन है। चावल में करैनी धान का चावल अधिक उपयुक्त माना जाता है। हालांकि किसी भी किस्म के उसना चावल से परिवारों में हड़िया बनाने का प्रचलन है।
कैसे तैयार होता है हड़िया
हड़िया बनान की मूल प्रक्रिया फर्मन्टेशन है। इस प्रक्रिया में ‘रानू’ नामक एक जड़ी को भी मिलाया जाता है। विधि के अनुसार, सर्वप्रथम चावल को भात क रूप मं पका दते हैं, जिसे भात ‘सिंझाने’ भी कहते हैं।
इसके बाद भात को ठंडा हाने देते हं। इस भात का ‘जुड़ाना’ कहते हैं। जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो एक बड़-चैड़ बर्तन या डलिया में भात का उड़ल देते हैं, जिस भात पसारना कहा जाता है।
अब इस पसरे हुए न गर्म न ठंडे भात मं रानू नामक जड़ी के पाउडर को अच्छी तरह मिला देते हैं और फिर जड़ी मिल इस पदार्थ (भात) का तसला या अन्य उपयुक्त बर्तन में रखकर गलाने (सड़न) या कहें ता फर्मेेन्टेशन के लिए छोड़ देेते हंै।
इसमें अभी पानी नहीं मिलाया जाता है। इस कार्य में परिवार की महिलाओं का हीं विशेष योगदान होता है। सर्वेेक्षण के अनुसार जाड़े के दिनों में सिर्फ चावल (भात) और ‘रानू’ के मिश्रण को हड़िया के रूप मं तैयार होने में चार से पाॅंच दिन या एक-दो दिन अधिक भी समय लग सकता है। जबकि गर्मी के दिनों में दो-तीन दिन में ही हड़िया का माल तैयार हो जाता ह।
कैैसेे सेवन करत है हड़िया
हड़िया का पदार्थ तैयार हा जाने के बाद अब उसमं शुद्ध और साफ पानी मिला कर धीरे-धीरे बर्तन को हिलाते हैं, जब हिलाते-हिलाते हड़िया-पदार्थ में मिलाया पानी एकरूप से सफेद हो जाता है तब उसे ग्लास में, कटोरा में, कटोरी में या अन्य प्रकार क सुविधा जनक पात्र में ढालकर पीते हैं।
हड़िया अकेले में पीया जाता है, तो समूह में बैठकर भी पिया जाता है। हित-कुटुम्ब, नाते-रिश्तेदार, दोस्त-मित्रों को भी हड़िया परोस कर स्वागत करन की परम्परा जनजातीय एवं मूलवासी परिवारों में रही है और आज भी है। सार्वजनिक समारोहां में भी हड़िया का सवन वर्जित नहीं है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों मंे हड़िया को प्रतिष्ठापूर्वक पारम्परिक पेय के रूप में लोग सेवन करने से परहेज नहीं करते।
हड़िया और परम्परा
सर्वेक्षण के अनुसार स्पष्ट होता है कि हड़िया एक मादक पेय होते हुए भी परम्परात और सांस्कृतिक रूप से सर्वग्राह्य एवं प्रचलित पेय पदार्थ है। कृषि में यह कृषि-श्रमिकों के बीच भी पीने के लिए दिया जाता है।
इससे श्रमिकों में उत्साह और श्रम की प्रवृति प्रबल होती है। जबकि हड़िया को किसी भी प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक या पारिवारिक कार्यक्रमों के दौरान भी पवित्रतापूर्वक उपयोग किया जाता है।
इसे न केवल कुल देवता पर चढ़ाया जाता है बल्कि अन्य देवी-देवताआं पर भी चढ़ा कर श्रद्धा अर्पित करते हैं । शादी-ब्याह, जन्म-मरण के अवसरों पर भी हड़िया का सामूहिक सेवन वर्जित नहीं है।
वस्तुतः ऐसे अवसरों पर हड़िया का सेवन कराना सामाजिक रूप से अनिवार्य माना जाता है। हालांकि अभी शिक्षित परिवारों में पारिवारिक-सामाजिक या अन्य प्रकार के समारोहों में हड़िया के सवन क प्रति उपक्षा की सुगबुगाहट भी देेखनेे को मिल रही है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी काई ‘क्रांति’ देखने को नहीं मिल रही है।
हड़िया और स्वास्थ्य
मादकता के बावजूद हड़िया का सेवन करनवाल अपेक्षाकृत एक निर्दोष पेय बताते हैं लेकिन मात्रा स अधिक सेवन करन पर शरीर मं तत्कालिक भारी शिथिलता और प्रसाद की भी शिकायत मिलती है।
इसके अत्यधिक सेवन से …….. निष्क्रिय हो जाता है और किसी कारण के प्रति वह अनिच्छा का शिकार होे जाता है। सीमिति सेवन करने पर हड़िया को स्वास्थ्यकर पेेय का दर्जा देने वालों का मानना है कि पीलियां (जाॅन्डिस) जैसी बीमारी में यह बहुत फायदा करता है। हालांकि एक बार में चलाए गए हड़िया के तीसर पानी का सेवन ही स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त बताया जाता हैै।
हड़िया में हो रही मिलावट
खाद्य एवं पेय पदार्थों में मिलावट के दोष और अपराध से हड़िया भी ग्रसित है। जानकार बताते हैं कि शहरों-बाजारों में जहाँ-तहाँ रोड किनारे हड़िया की भी खुलेआम ब्रिक्री हो रही है।
लेकिन अधिकांश विक्रेता हड़िया को नशीला बनाने के लिए उसमें यूरिया मिलाकर तैयार करते हैं। इससे न केवल यूरिया मिला हड़िया त्वरित नशा करता है बल्कि जानलेवा भी बन जाता है। हड़िया में अन्य नशीले पदार्थां की मिलावट की भी शिकायत मिलती है।
यह द्रष्कृत्य वस्तुतः हड़िया बेचनेवाले अपराधी लोग ही करते हैं जैसा अपराध अन्य मिलावट खोर करते हैं। गांवों में यह विकृति अभी कम है। यह इसलिए कि जिस तरह अन्य प्रदेशों मं स्वंय या अतिथियां के लिए स्वागत मं चीनी-गुड़-दूध-दही से तैयार पेय पदार्थ पिलाया जाता है, उसी तरह झारखण्ड के जनजातीय आर मूलवासियों क परिवार में हड़िया को प्रस्तुत किया जाता है।
बच्चों को हड़िया से दूर रखा जाता है। जबकि युवक चाहें ता सेवन कर सकत हैं। नमक, मिर्च, चना, मटर, निमकी, पकौड़ी या अन्य प्रकार के बाजारू नमकीनी पदार्थ हड़िया के साथ ‘चखना’ के रूप में खाया जाता है।
एक बार का बना हड़िया कितने दिन चलता है।
चावल, गेहूँ या मडुवा के भात से एक बार बना हड़िया 15 दिन तक सेवन करने के योेग्य माना जाता है। उसके स्वाद मंे दिन बीतने पर खट्टापन आ सकता है लकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं हो सकता है।
यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि सिंझे चावल में रानू मिलाकर जब उस फर्मेन्टेशन के लिए छोड़ा जाता है आर प्रक्रिया पूरी हान पर पानी डालकर पहली बार आवश्यकतानुसार हड़िया चुआ लेते हैं तो दो-तीन दिन छोड़-छोेड़ कर भी उसमें पानी मिलाकर कई बार हड़िया चुलात हैं और पीते है।
रानू है असली जड़ी
हड़िया बनाने में रानू नामक जड़ी का महत्व है। यह बाजार मं या जड़ी बनान वाल जानकार लोगों द्वारा बेची जाती है। जंगलां में उपलब्ध चैली कंदा एवं अन्य ….. जड़ी का अरवा चावल क आट मं कूटकर मिला देने के बाद इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर बिक्री होेती है।
इसी को ‘कानू’ कहते हैं। जब हड़िया को ………. गेेहूँ या मडुवा का भात सिंझ जाता है तो ठंडा होने के बाद ‘रानू की सफेद गोली’ को गर्म कर बुकनी बना ली जाती है और प्रति एक किलोग्राम भात में तीन गोली की मात्रा में रानू मिलाकर छोड़ दिया जाता है।
रानू के बिना हड़िया का भात खराब हो जाता है। रानू मिलाने से चार-पाॅंच दिनों तक गलने से भात से हड़िया चलाया जा सकता है।