केदारनाथ में स्थापित ‘ॐ’ चिह्न PM मोदी का आइडिया, 60 क्विंटल है पूरा वजन, समझें इंस्टालेशन तक का काम"/>

केदारनाथ में स्थापित ‘ॐ’ चिह्न PM मोदी का आइडिया, 60 क्विंटल है पूरा वजन, समझें इंस्टालेशन तक का काम

डिजिटल डेस्क, धमेंद्र ठाकुर। आज महाशिवरात्रि के पर्व पर देश में सनातन धर्म को पूजने वाले महादेव की भक्ति में लीन हैं। भगवान शिव की पूजा के लिए मंदिरों में भक्तों की भीड़ है। केदारनाथ में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। चारों और बर्फीले पहाड़ों से घिरा केदारनाथ बेहद खूबसूरत लगता है, लेकिन मंदिर परिसर से 300 मीटर आगे 60 क्विंटल के ‘ॐ’ की आकृति की स्थापना की गई है। यह मंदिर की भव्यता को और बढ़ाती है।

पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि केदारनाथ सुंदर और सुरक्षित बने। यह उनके ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इसी के तहत केदारनाथ मंदिर से 300 मीटर आगे पहले संगम के ऊपर गोल प्लाजा पर ‘ॐ’ की आकृति की स्थापना की गई है। यह भगवान शिव का प्रिय प्रतीक है। गुजराती जागरण की टीम ने इस प्रोजेक्ट को समझने के लिए क्यूरेटर सचिन कालुस्कर से बात की। उन्होंने इस बातचीत में आइडिया जेनरेशन और इंस्टालेशन के बारे में बताया।

अहमदाबाद की कंपनी को मिली जिम्मेदारी

सचिन कालूस्कर ने आकृति पर बातचीत कर कहा कि केदारनाथ में आपदा आई थी। उसके बाद केदारनाथ का पूरा मास्टर प्लान तैयार हो रहा था। यह विचार किया जा रहा था कि कैसे केदारनाथ को दोबारा भव्य और सुंदर बनाया जाए। इसके मास्टर प्लान की जिम्मेदारी अहमदाबाद की कंपनी आईएनआई डिजाइन स्टूडियो को दी गई। वे संपूर्ण केदारनाथ का मास्टर प्लान बना रहे हैं।

पीएम मोदी के विचार से लगा ‘ॐ’

उन्होंने कहा कि इसके भीतर डेवलपमेंट होने पर इसे ओम चौक (पहले डमरू चौक) कहा जा रहा था। यह संगम के बाद आता है। जब इसे डेवलप करने की बात आई तो वहां क्या रखा जाए और कैसा स्ट्रकचर खड़ा किया जाए, इसके लिए कई तरह के डिजाइन दिए गए। प्रधानमंत्री ने कहा कि ओम लगाना चाहिए, इसलिए पीएम के सुझाव के बाद ओम लगाने का विचार आया।

केदारनाथ में काम करना मुश्किल

उन्होंने हमें इसलिए चुना क्योंकि हमने पहले देहरादून हवाई अड्डे पर कलाकृति बनाई थी। तो उत्तराखंड में काम करने का अनुभव था। तो हमें मौका मिला। यह दिखने में आसान लगता है, लेकिन इसे बनाना इतना आसान नहीं था। इस जगह की भौगोलिक स्थिति के कारण केदारनाथ 6 महीने बंद रहता है और छह महीने यह स्थान बहुत अधिक बर्फ से ढका रहता है। इसलिए ऐसा स्ट्रकचर बनाने के लिए कहा गया, जो मौसम की मार झेल सके।

8 महीने का समय लगा

साल 2022 के जनवरी-फरवरी महीने में ओम को रखने का विचार आया था। हमने इसे अप्रैल 2023 में स्थापित किया। इसकी योजना बनाने में हमें 8 महीने लगे, क्योंकि, इसकी सामग्री की वीएनआईटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दिलीप पेशवा ने अलग-अलग जगहों पर टेस्टिंग की।

जर्मनी के मटेरियल से बना ‘ॐ’

उन्होंने बताया कि ओम को बनाने में डेढ़ से दो महीने का समय लगा। सबसे महत्वपूर्ण बात थी योजना बनाना कि किस मटेरियल का उपयोग करना है। सामग्री डिस्पेंस होगा या नहीं। अगर पीतल बनाना है तो पीतल का कंपोजीशन कितना होना चाहिए। वहां बर्फ होता है तो कितना ऑक्सीकरण होगा, कितना स्लो होगा, इन सबका हमने अध्ययन किया, हमने उस हिसाब से मटेरियल का चयन किया। यह पीतल का बना है, परंतु इसकी संरचना पीतल की है। यह बहुत जरूरी है। इसमें निकेल, जिंक और तांबा कितना होना चाहिए? जब इसे अंतिम रूप दिया गया, तो हमने इसे जर्मनी से आयात किया। फिर यह ओम बना।

200 लोगों की मदद से पार्ट्स पहुंचे केदारनाथ

यह ओम कुल 6000 किलोग्राम से बना है। ओम के अंदर स्टेनलेस स्टील की प्लेटिंग है यानी स्टेनलेस स्टील स्ट्रकचर और उपर पर पूर्ण पीतल प्लेटिंग है। इसे हमने कुल 17 भागों में बनाया है। हमारा स्टूडियो वडोदरा में है। वहां से सोनप्रयाग पहुंचाया गया। वहां से केदारनाथ तक कोई मोटर योग्य सड़क नहीं है। सोनप्रयाग से पैदल चलना पड़ता है। हम 200 लोगों की मदद से केदारनाथ पहुंचे। ये लोग सारे पार्ट्स सिर पर लेकर पहुंचे। अलग-अलग हिस्सों का वजन 150 किलोग्राम से लेकर 400 किलोग्राम तक था।

22-24 लोगों ने काम कर बनाया ओम

उन्होंने कहा कि इन पार्ट्स को वहां तक पहुंचाना बहुत कठिन था, क्योंकि बारिश हो रही थी, बर्फबारी भी जारी थी। उस समय केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हुई थी। चारों तरफ बर्फ थी। उस वक्त हम सभी पार्ट्स लेकर पहुंचे थे। जब मंदिर के कपाट खुले तो हमने स्थापना की। तीन कलाकारों ने डिजाइन किया। करीब 10-12 जितने वर्क्स ने काम किया। अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग समय पर काम किया था।

कुछ लोगों ने बफिंग का काम किया, जबकि 3 लोगों ने पॉलिशिंग का काम किया। इसे बनाने वाले तीन मुख्य कलाकार थे। इनमें काम करने वाले, वेल्डर (3 लोग मुंबई से आए) थे। कुल 22-24 लोगों ने काम किया। वहां तक ले जाने में 200 लोगों थे।

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