Kidney Disease: किडनी की बीमारी में आम धारणा गलत, हर बार डायलिसिस नहीं होता
HIGHLIGHTS
- आमतौर पर यह अवधारणा होती है कि किडनी की बीमारी है मतलब डायलिसिस पक्का है।
- यह सिर्फ भ्रम है, इसकी वजह से कई मरीज चिकित्सकीय परामर्श लेने से कतराते हैं।
- कई बार लोग इन लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे समस्या बढ़ जाती है।
Kidney Disease: नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। आमतौर पर यह अवधारणा होती है कि किडनी की बीमारी है मतलब डायलिसिस पक्का है। ऐसा माना जाता है कि रक्त में दौड़ते व्यर्थ पदार्थों के लेवल का सूचक समझा जाने वाला क्रिएटिनिन यदि बढ़ जाता है तो डायलिसिस करवाना होता है। लेकिन यह सिर्फ भ्रम है, इसकी वजह से कई मरीज चिकित्सकीय परामर्श लेने से कतराते हैं।
किडनी रोग विशेषज्ञ डा. ईशा तिवारी ने बताया कि किडनी रोग के लक्षण भूख कम लगना, वजन कम होना, नींद न आना, शारीरिक दुर्बलता का अनुभव होना, उल्टियां होना, चेहरे, हाथ पैरों पर सूजन आना, शरीर में खुजली होना, मूत्र में लालपन, झाग आना, अनियंत्रित उच्च रक्तचाप आदि हैं। यदि ऐसे कोई लक्षण नजर आते हैं तो हमें तुरंत विशेषज्ञों की सलाह लेना चाहिए। कई बार लोग इन लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे समस्या बढ़ जाती है।
चार तरह से विभाजित है किडनी की बीमारी
किडनी की बीमारियों को चार तरह से विभाजित किया जाता है। नेफ्रोटिक सिंड्रोम, नेफ्राइटिक सिंड्रोम, अक्यूट किडनी इंजुरी, क्रानिक किडनी डिसीज। नेफ्रोटिक में शरीर में एल्ब्युमिन की कमी होने लगती है, जिससे चेहरे व हाथ पैरों में सूजन होता है। ऐसे मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है।
नेफ्राइटिक में रक्तचाप बढ़ा हुआ रहता है। साथ ही क्रिएटिनिन एवं माइक्रोस्कोपिक ब्लड प्रचूर मात्रा में मिलते हैं। सही और समय पर इलाज से मरीज को डायलिसिस से बचाया जा सकता है। अक्यूट किडनी इंजुरी के कई कारण हो सकते हैं जैसे इंफेक्शन, डिहाइड्रेशन आदि।
इस अवस्था में किडनी का कुछ हिस्सा काम करना बंद कर देता है। जितनी प्रतिशत किडनी खराब होती है, उसके आधार पर क्रानिक किडनी डिसीज की गंभीरता को स्टेजेस में मापा जाता है।