Same Sex Marriage Verdict: समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कही ये बातें"/> Same Sex Marriage Verdict: समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कही ये बातें"/>

Same Sex Marriage Verdict: समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कही ये बातें

HIGHLIGHTS

  1. सर्वोच्च अदालत ने 10 दिनों तक लगातार सुनवाई के बाद 11 मई को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  2. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं लगाई गई है।
  3. इस मामले में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

Same-Sex Marriage Verdict: नई दुनिया ब्यूरो, नई दिल्ली। समलैंगिक शादी की मान्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने देश में LGBTQIA+ समुदाय को वैवाहिक समानता का अधिकार देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकता मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन भारत के कानून के मुताबिक समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है। समलैंगिक शादियों को मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 से इस मामले में फैसला सुनाया है। इस मामले में फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि इस मामले में संसद को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मामले में फैसला करना चाहिए। साथ ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए केंद्र और पुलिस बलों को कई दिशा-निर्देश भी जारी किए।

सुप्रीम कोर्ट नहीं बना सकता कानून

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालतें कानून नहीं बनाती है, वे याचिकाकर्ताओं को मार्गदर्शन दे सकती है। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है। अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा। विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय करना है। इस न्यायालय को विधायी क्षेत्र में प्रवेश न करने के प्रति सावधान रहना चाहिए।” मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि, “शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत द्वारा निर्देश जारी करने के रास्ते में नहीं आ सकता। अदालत कानून नहीं बना सकती बल्कि केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है।” गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने 10 दिनों तक लगातार सुनवाई के बाद 11 मई को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

लोगों को जागरूक करें सरकारें

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के सम्मान की रक्षा हो और उनके लिए वस्तुओं और सेवाओं तक की पहुंच में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। केंद्र सरकार और राज्य सरकार समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करें।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले बेंगलुरू में LGBTQI विवाह मामले के याचिकाकर्ताओं में से एक अक्कई पद्मशाली ने कहा कि देश की संवैधानिक पीठ बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाने जा रही है, जो वैवाहिक समानता की बात करता है। 25 से अधिक याचिकाकर्ता इस बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गए हैं कि हम लेस्बियन, समलैंगिक, ट्रांसजेंडर, उभयलिंगी लोग शादी क्यों नहीं कर सकते? अक्कई पद्मशाली ने कहा कि अगर मैं किसी पुरुष से शादी करना चाहती हूं और वह सहमत है तो इसमें समाज का क्या मतलब है? विवाह व्यक्तियों के बीच होता है”

समलैंगिक विवाह पर 20 याचिकाएं

गौरतलब है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं लगाई गई है। इस मामले में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि क्या केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए बिना सामाजिक कल्याण का लाभ देने को तैयार है?

इस सवाल के जवाब में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि समलैंगिक जोड़ों की व्यावहारिक दिक्कतें दूर करने और उन्हें कुछ लाभ देने के उपायों पर केंद्र सरकार ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। केंद्र सरकार ने कहा था कि भारत की परंपरागत विधायी नीति में परंपरागत पुरुष और परंपरागत महिला को मान्यता दी गई है। जब इस पर पहली बार बहस हो रही है तो क्या इस विषय पर संसद या राज्य विधानसभाओं में चर्चा नहीं की जानी चाहिए। संसद ने इनके अधिकारों, पसंद, निजता और स्वायत्तता को स्वीकार किया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button