PCOD की समस्या से हैं परेशान तो रोजाना करें विपरीत शलभासन, जानें फायदे और करने का सही तरीका
पीसीओडी (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOD) एक हार्मोनल समस्या है जो हार्मोन असंतुलन के कारण पैदा होती है। इस समस्या में अंडेदानी में छोटी छोटी गांठें बन जाती हैं। जिसकी वजह से महिला को कई तरह की हार्मोनल परेशानियां होने लगती हैं। जिसमें माहवारी के अनियमित होने के साथ वजन बढ़ना भी शामिल है। इसके अलावा पीसीओडी इन्फर्टिलिटी को भी बढ़ावा देती है जिससे महिलाओं को कंसीव करने में समस्या होने लगती है। यदि महिला कंसीव कर भी ले तो उसका गर्भपात होने का खतरा बना रहता है। ऐसे में पीसीओडी का सही इलाज समय पर करवाना बेहद जरूरी होता है। पीसीओडी की समस्या को दूर करने में विपरीत शलभासन आपकी मदद कर सकता है। इस योगासन को नियमित रूप से करने से पीसीओडी के लक्षण जल्दी खत्म हो सकते हैं। आइए जानते हैं विपरीत शलभासन को करने का क्या है सही तरीका और फायदे।
विपरीत शलभासन करने का तरीका-(Viparita Shalabhasana)
विपरीत शलभासन को सुपरमैन पोज भी कहा जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति का शरीर सुपरमैन के समान हो जाता है। इस आसन को उल्टा लेटकर किया जाता है। इस आसन को करने के लिए आप सबसे पहले योगा मैट पर पेट के बल लेट जाएं। इसके बाद एड़ियों को जमीन पर सीधा रखें और ठोड़ी को जमीन पर टिका लें। पैरों को एक दूसरे के पास ले जाते हुए हाथों को बाहर की तरफ खींचे। अब गहरी सांस लेते हुए हाथ-पैर, छाती और जांघों को जमीन से ऊपर उठाने का प्रयास करें। इस पोज में आप सुपर हीरो की तरह लगेंगे। शरीर के दोनों विपरीत भागों में लग रहे खिंचाव को अनुभव करें। इस बात का ध्यान रखें कि जिस समय आप सांस छोड़ें तब आप छाती, हाथ व पैर को धीरे से नीचे की तरफ लाएं।
पीसीओडी में फायदेमंद है विपरीत शलभासन-(Viparita Shalabhasana benefits in PCOD)
-पीसीओडी की समस्या होने पर लिवर में सूजन की समस्या हो सकती है, इस योगासन को करने से सूजन की समस्या दूर होती है।
-पीसीओडी की समस्या होने पर डिप्रेशन या स्ट्रेस महसूस होता है जो विपरीत शलभासन से दूर किया जा सकता है।
-पीसीओडी होने पर अनियमित पीरियड्स की समस्या होती है जो कि इस योगासन से दूर की जा सकती है। -वजन नियंत्रित करने के लिए भी आप इस योगासन को ट्राई कर सकते हैं।
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क्या वाकई ब्लड कैंसर का इलाज संभव है? जानें कारण और बचाव के उपाय
कैंसर (Cancer) एक जानलेवा बीमारी है, जिससे दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है। यूं तो कैंसर के कई प्रकार होते हैं लेकिन इसमें ब्लड कैंसर को सबसे खतरनाक माना जाता है। ब्लड कैंसर को लेकर लोगों के मन में अक्सर यह सवाल बना रहता है कि क्या वाकई ब्लड कैंसर का उपचार संभव है या नहीं। अगर ब्लड कैंसर को लेकर आपके मन को भी कोई सवाल परेशान कर रहा है तो उसका सही जवाब जानते हैं डॉ. नितिन सूद, (डायरेक्टर, हेमेटोलॉजी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, मेदांता, गुड़गांव) से।
ब्लड कैंसर क्या है-
ब्लड कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो हमारे ब्लड सेल्स के फंक्शन और प्रोडक्शन की प्रकिया को प्रभावित करती है।’ब्लड कैंसर में मुख्य रूप से तीन तरह की बीमारियां शामिल होती हैं, जिन्हें ल्यूकीमिया, लिंफोमा और मल्टीपल माइलोमा कहते हैं. आप इन्हें ब्लड कैंसर के तीन प्रकार के रूप में भी समझ सकते हैं।
लिंफोमा- लिंफोमा ब्लड कैंसर का सबसे ज्यादा प्रभाव शरीर के लिंफ सिस्टम पर पड़ता है। इसके कारण बी और टी कोशिकाएं जन्म लेती है।
ल्यूकेमिया – इसमें सफेद रक्त कोशिकाओं का अत्यधिक निर्माण होता है और इस वजह से कैंसर बढ़ता है। दरअसल, संक्रमण को रोकने वाले रोग प्रतिरोधक को यह सफेद कोशिकाएं नुकसान पहुंचाती हैं। नतीजतन, हड्डियों में दर्द, कमजोरी, एनीमिया, ब्लड में कैल्शियम की अधिकता, किडनी फेलियर जैसी समस्याएं आती हैं।
मायलोमा- इस ब्लड कैंसर में बोन मैरो की प्लाज्मा कोशिकाएं अफेक्टेड हो जाती है।
शरीर में कैसे फैलता है ब्लड कैंसर?
ब्लड कैंसर शब्द खून और लिम्फ के विभिन्न तरह के कैंसर के लिए प्रयोग किया जाता है। आम तौर पर यह बोन मैरो की स्टेम कोशिकाओं में होता है (वो कोशिकाएं जो तेजी से विभाजित होकर खून की और ज्यादा कोशिकाएं बनाती हैं)। जब बोन मैरो की किसी कोशिका में गड़बड़ी होने की वजह से हुई असमानता के कारण यह कोशिकाएं खत्म होने की जगह इस तरह की और कोशिकाओं का निर्माण करके मैरो में फैलने लगती हैं। लेकिन मैरो में जगह सीमित होने के कारण ये कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं को विभाजित नहीं होने देतीं, जिससे सामान्य लाल, सफेद कोशिकाएं और प्लेटेलेट कोशिकाओं का उत्पादन रुक जाता है।
ब्लड कैंसर का मुख्य कारण-
ज्यादातर कैंसर जेनेटिक म्यूटेशन (अनुवांशिक कोड में गड़बड़ी) के कारण होते हैं। कोशिका के व्यवहार का निर्धारण उसका जेनेटिक कोड करता है, इसलिए इस जेनेटिक कोड में कोई भी गड़बड़ी होने पर कोशिका असामान्य व्यवहार करने लगती है। कोशिका का व्यवहार सामान्य होने पर वह कोशिका मरेगी और नई कोशिका के लिए जगह बनाएगी, ताकि कोशिकाओं का स्टोर बना रहे। लेकिन जब कोशिका असामान्य व्यवहार करने लगती है, तो वह मरती नहीं है, और बोन मैरो में जगह को घेरकर रखती है। इस वजह से बोन मैरो में जगह सीमित हो जाती है और सामान्य कोशिकाओं का उत्पादन कम हो जाता है। फिर सामान्य कोशिकाओं की संख्या कम होने पर ब्लड कैंसर के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।
ब्लड कैंसर के लक्षण-
ब्लड कैंसर का मुख्य लक्षण एनीमिया (लाल रक्त कोशिकाओं की कमी) के कारण उत्पन्न होते हैं, जिनमें थकान और कमजोरी, ल्यूकोपेनिया (सफेद रक्त कोशिकाओं की कमी), शरीर में संक्रमण आसानी से होना (क्योंकि संक्रमण से लड़ने में मदद सफेद रक्त कोशिकाएं करती हैं), और प्लेटेलेट्स की संख्या कम हो जाना शामिल है। प्लेटेलेट्स वो कोशिकाएं हैं, जो खून को बहने से रोकने में मदद करती हैं। यदि किसी के शरीर में प्लेटेलेट्स कम हैं, तो उसे खून बहना और घाव ज्यादा होंगे।
ब्लड कैंसर का जोखिम किस उम्र में सबसे ज्यादा-
खून के ज्यादातर कैंसर जीवनशैली की बीमारियों में नहीं आते (ये हमारे जेनेटिक कोड में म्यूटेशन के कारण होते हैं), इसलिए खून का कैंसर करने वाले कोई विशेष जोखिम नहीं होते हैं। कुछ खास ल्यूकेमिया (एक्यूट मायलॉयड ल्यूकेमिया, क्रोनिक लिम्फोसाईटिक ल्यूकेमिया) और मायलोडाईसप्लास्टिक सिंड्रोम वृद्धावस्था की ओर बढ़ने के साथ आम हो जाते हैं। कुछ लिम्फोमा (हॉजकिन लिम्फोमा) बीस साल और तीस साल के आयु वर्ग (युवाओं) में ज्यादा आम होते हैं, जिस वजह ये यह इस आयु वर्ग की एक आम समस्या होती है। जेनेटिक कोड में होने वाले म्यूटेशन हमारे जीवन में विकसित होते हैं, जिसका मतलब है कि ये कमियां अगली पीढ़ी को स्थांतरित नहीं होतीं, इसलिए ये अनुवांशिक नहीं होतीं।
क्या ब्लड कैंसर का इलाज संभव है?
पिछले कुछ सालों में इन जानलेवा बीमारियों के शोध में तेजी आई है, और कई नई थेरेपी खोजी गई हैं। बता दें, ब्लड कैंसर के कई ऐसे प्रकार हैं जिनका इलाज अब केवल टैबलेट्स खाकर ही हो जाता है। इसकी मतलब कैंसर पीड़ित व्यक्ति घर पर रहकर ही इलाज करा सकता है और ठीक होने के कुछ ही हफ्तों में फिर से काम करना शुरू कर सकता है। लेकिन कुछ तरह के कैंसरों के लिए कीमोथेरेपी जैसे गहन इलाज या फिर बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत भी पड़ सकती है। इन बीमारियों से पीड़ित लोगों के बचने की संभावनाएं अब ज्यादा हैं, और वो लंबा एवं ज्यादा उपयोगी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
शरीर में कैंसर दोबारा विकसित होने के जोखिम को रोकने के लिए क्या करना चाहिए?
इन कैंसरों के इलाज में बड़ी प्रगति होने के बावजूद कुछ कैंसर अच्छे इलाज और इलाज की प्रारंभिक प्रतिक्रिया के बाद फिर से वापस आ सकते हैं। यह बहुत आवश्यक है कि मरीज इन बीमारियों से बचने के लिए अपने डॉक्टर से मिलकर परामर्श लेते रहें।
मेंटेनेंस ट्रीटमेंट (कैंसर ठीक होने के बाद उसे वापस होने से रोकने के लिए कुछ इंजेक्शन या टेबलेट) कुछ मामलों में फायदेमंद रहा है। ऐसे मामलों में इन इलाजों के प्रभाव, साइड इफेक्ट, और खुराक को मॉनिटर करते रहने के लिए अपने डॉक्टर के पास नियमित फॉलोअप विजिट करते रहना जरूरी है। अन्य कैंसर (एग्रेसिव लिम्फोमा, एक्यूट मायलॉयड ल्यूकेमिया आदि) पर मेंटेनेंस ट्रीटमेंट का असर नहीं होता, और इन मामलों में नियमित तौर से खून की जांच और फॉलोअप कराते रहना चाहिए। इससे कैंसर दोबारा पनपने पर समस्या बढ़ने से पहले ही उसकी पहचान करने में मदद मिलेगी और इलाज जल्दी शुरू किया जा सकेगा।
कैसे कर सकते हैं बचाव-
-व्यक्ति को अपना वजन नियंत्रण में रखना चाहिए। यदि आपका वजन ज्यादा बढ़ गया है, तो उसे कम करें, क्योंकि ज्यादा कमर और वेस्ट-टू-हिप अनुपात ज्यादा होने पर कई तरह के कैंसर का जोखिम काफी बढ़ जाता है।
-वर्क-आउट, व्यायाम, घरेलू काम, और खाली समय में वॉकिंग, जॉगिंग, रनिंग, योगा, हाईकिंग, सायकल चलाकर, और स्विमिंग करके शारीरिक रूप से चुस्त रहें।
-संतुलित आहार लें। आहार में फलियां, साबुत अनाज, फल और सब्जियां ज्यादा खाएं। पैकेज्ड और फास्ड फूड कम खाएं।
-कैंसर से खुद का बचाव करने के लिए धूम्रपान और शराब का सेवन न करें।