आदिवासियों से पर्यावरण संरक्षण सीखा जा सकता है: मोदी

नयी दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बारे में आदिवासियों से सीख लेने का आग्रह करते हुए कहा है कि जनजातीय संस्कृति को बचाया जाना आवश्यक है।
श्री मोदी ने रविवार को आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 94 वें संस्करण में राष्ट्र वासियों को संबोधित करते हुए कहा कि नवम्बर में 15 तारीख को देश जन-जातीय गौरव दिवस मनाएगा। पिछले साल भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयन्ती के दिन आदिवासी विरासत और गौरव को मनाने के लिए यह शुरुआत की थी। भगवान बिरसा मुंडा ने अपने छोटे से जीवन काल में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लाखों लोगों को एकजुट कर दिया था। उन्होंने भारत की आजादी और आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था।
श्री मोदी ने कहा, ” ऐसा कितना कुछ है, जो हम धरती आबा बिरसा मुंडा से सीख सकते हैं। धरती आबा बिरसा मुंडा के जीवन काल से बहुत कुछ सीख सकते हैं और धरती आबा ने तो कहा था- यह धरती हमारी है, हम इसके रक्षक हैं। उनके इस वाक्य में मातृभूमि के लिए कर्तव्य भावना भी है और पर्यावरण के लिए हमारे कर्तव्यों का अहसास भी है।”
प्रधानमंत्री ने कहा,“ बिरसा मुंडा ने हमेशा इसपर जोर दिया था कि हमें हमारी आदिवासी संस्कृति को भूलना नहीं है, उससे रत्ती-भर भी दूर नहीं जाना है। आज भी हम देश के आदिवासी समाजों से प्रकृति और पर्यावरण को लेकर बहुत कुछ सीख सकते हैं।” प्रधानमंत्री ने युवाओं से रांची में बिरसा मुंडा संग्रहालय देखने का आग्रह किया।
श्री मोदी ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम और समृद्ध आदिवासी विरासत में मानगढ़ का बहुत ही विशिष्ट स्थान रहा है। यहाँ पर नवम्बर 1913 में एक भयानक नरसंहार हुआ था, जिसमें अंग्रेजों ने स्थानीय आदिवासियों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी थी। इस नरसंहार में एक हजार से अधिक आदिवासियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इस जनजातीय आन्दोलन का नेतृत्व गोविन्द गुरु जी ने किया था, जिनका जीवन हर किसी को प्रेरित करने वाला है।
उन्होंने कहा, ” आज मैं उन सभी आदिवासी शहीदों और गोविन्द गुरु जी के अदम्य साहस और शौर्य को नमन करता हूँ।” प्रधानमंत्री एक नवंबर को मानगढ़ की यात्रा पर रहेंगे।

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