शरद पवार और फारूक अब्दुल्ला हटे पीछे, ममता का बैठक से ही किनारा; कैसे राष्ट्रपति उम्मीदवार चुन पाएगा विपक्ष
नई दिल्ली. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दल अभी भी उम्मीदवार की तलाश में हैं। एक के बाद एक बैठकें जारी हैं, लेकिन किसी नाम पर सहमति नहीं बनती दिख रही। इसी बीच बड़े नेताओं का ‘पीछे हटना’ भी देरी का कारण हो सकता है। पहले जहां विपक्षी दलों को साथ लाने की कोशिश में जुटीं तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी अब खुद चर्चा से दूरी बना रही हैं। खबर है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार की तरफ से बुलाई गई बैठक में मुख्यमंत्री बनर्जी नदारद रहेंगी। इधर, कांग्रेस भी चर्चाओं में कम सक्रिय नजर आ रही है।
चर्चाएं शुरू हुईं तो नेता ही पीछे हटते जा रहे हैं!
नाम वापसी या पीछे हटने की शुरुआत आगामी बैठक की अगुवाई करने जा रहे पवार से होती है। राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए राकंपा प्रमुख का नाम आगे था, जिसमें कई दलों ने सहमति भी जताई थी। कहा जा रहा था कि छोटे दल भी पवार के हक में हैं। लेकिन महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता खुद ही प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
उनके बाद चर्चाओं में जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का नाम उठा, लेकिन उन्होंने भी अपने राज्य की राजनीति का हवाला देते हुए इससे दूरी बनाने का फैसला किया। अब जब पवार ने 21 जून यानि मंगलवार को पवार ने बैठक बुलाई, तो बनर्जी ने शनिवार को ही शामिल होने में असमर्थता जता दी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पवार के आमंत्रण पत्र को लेकर बनर्जी नाराज हैं। उनके स्थान पर पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी बैठक में शामिल हो सकते हैं।
बगैर होमवर्क के तैयारी में जुट जाती हैं ममता बनर्जी?
साल 2012 में बनर्जी की पार्टी UPA का हिस्सा थी, जिसके उम्मीदवार दिवंगत प्रणब मुखर्जी थे। उस दौरान सीएम ने मुखर्जी के नाम का विरोध किया और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह के साथ होकर एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आगे किया। हालांकि, इसमें वह सफल नहीं हुईं। इधर, यादव और कांग्रेस के बीच शांत सहमति बनी और उन्होंने मुखर्जी का नाम आगे कर दिया।
साल 2017 में भी बनर्जी ने यूपीए उम्मीदवार और पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश की, लेकिन एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद ने बड़ी जीत दर्ज कर ली थी। जानकारों का मानना है कि 2012, 2017 और 2022 के इन हालात में एक खास पैटर्न नजर आता है कि वह बगैर ठीक से होमवर्क किए तैयारियों में जुट जाती हैं।
कांग्रेस क्या आखिर में खेलेगी बड़ा दांव?
विपक्षी दलों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन अब तक हुई बैठकों में पार्टी सक्रिय न रहकर केवल हिस्सा ही बनी है। साथ ही कांग्रेस ने अब तक कोई नाम की भी पेशकश नहीं की है। अब ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पार्टी अन्य दलों का मूड भांप रही है और सारी कोशिशों के बाद बड़ी घोषणा कर सकती है। इसके अलावा एक कारण दूसरी परेशानियों को भी माना जा सकता है। राहुल गांधी समेत पार्टी के कई नेता जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। ऐसे में अपनी ही मुश्किलों में उलझी कांग्रेस अन्य चर्चाओं में सक्रिय भूमिका नहीं निभा रही है।
क्या ममता को नेतृत्व से कम कुछ नहीं चाहिए?
खास बात है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री लंबे समय से राष्ट्रीय राजनीति में मेगा एंट्री की कोशिश में हैं। इसके लिए वह राज्यों में जाकर बड़े नेताओं से मिल चुकी हैं। वहीं, 15 जून को उनकी अगुवाई में ही बैठक बुलाई गई थी, लेकिन अब जब एक बार और विचार होने जा रहा है, तो वह इससे किनारा कर रही हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी जैसे बड़े नेताओं की मौजूदगी भी नेतृत्व पर भी सहमति बनना बेहद जरूरी है।
ममता की बैठक से दूर रहे थे ये दल
15 जून को आयोजित हुई बैठक से आप, तेलंगाना राष्ट्र समिति और बीजू जनता दल दूर रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आप ने राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने के बाद समर्थन की बात कही है। वहीं, टीआरएस, कांग्रेस के साथ मंच साझा नहीं करना चाह रही।