Jagannath Rath Yatra 2024: रथ यात्रा के बाद रथ की लकड़ी का क्या होता है, कहां जाते हैं 42 पहिए, पढ़िए रोचक बातें
इस बार जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई से शुरू होगी और 16 जुलाई को समाप्त होगी। इसके लिए रथयात्रा की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं। रथ के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली लकड़ियों के लिए पेड़ों का चयन मंदिर की खास समिति करती है। इसके बाद ही रथों का निर्माण कार्य शुरू होता है।
HIGHLIGHTS
- नीम की लकड़ी से बनते हैं रथ।
- 2 माह तक चलता है निर्माण कार्य।
- निर्माण में शामिल होते हैं 200 लोग।
धर्म डेस्क, इंदौर। Jagannath Rath Yatra 2024: जगन्नाथ रथ यात्रा भारत में सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है। यह त्योहार 10वीं सदी से मनाया जा रहा है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ पुरी में शुरू होती है और दशमी तिथि को समाप्त होती है।
7 तरह के कारीगर करते हैं निर्माण
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मां सुभद्रा के लिए तीन रथ बनाए जाते हैं। इन्हें बनाने के लिए हर साल नयागढ़ के दसपल्ला के जंगलों से लकड़ियां आती हैं। यह निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से लेकर रथ यात्रा तक दो महीने तक चलता है। इसमें 7 तरह के कारीगर होते हैं।
निर्माण में कम से कम 200 लोग शामिल होते हैं। हर काम परंपरागत रूप से हाथ से किया जाता है। कोई आधुनिक उपकरण या मशीनरी का उपयोग नहीं किया जाता है। माप भी प्राचीन पद्धति से लिया जाता है।
भक्तों को बेच दिए जाते हैं पहिए
जगन्नाथ जी के रथ में 16 पहिए, बलभद्र के रथ में 14 पहिए और सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं। यात्रा के बाद, रथों की लकड़ी का उपयोग जगन्नाथ मंदिर में प्रतिदिन प्रसाद तैयार करने के लिए जलाऊ लकड़ी के रूप में किया जाता है। वहीं, तीनों रथों के 42 पहिए भक्तों को बेचे जाते हैं। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा से पहले रथ का निर्माण कार्य जारी है। रथ बनाने वाले कारीगर केवल एक ही समय भोजन करते हैं।
डिसक्लेमर
‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’