Allahabad High Court: दुष्कर्म के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- जरूरी नहीं हर बार पुरुष गलत हो
HIGHLIGHTS
- दुष्कर्म के मामले में हाईकोर्ट में हुई सुनवाई
- महिला ने आरोपी को बरी करने के फैसले को दी थी चुनौती
- आरोपी पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म का था आरोप
Allahabad High Court प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के एक मामले में सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामले में कानून महिलाओं के पक्ष में है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हमेशा पुरुष ही गलत हो, महिला की भी गलती हो सकती है।
क्या है मामला
दरअसल, एक महिला ने साल 2019 में आरोपी पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म का आरोप लगाया था। साथ ही कहा कि आरोपी ने उसकी जाति को लेकर भी अपमानजनक बातें कही। जिला न्यायालय ने सुनवाई के बाद आरोपी को दोषमुक्त कर दिया था और सिर्फ आईपीसी की धारा 323 के तहत ही दोषी ठहराया। महिला ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने जिला कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए उक्त टिप्पणी की।
हाईकोर्ट ने कहा कि सबूत पेश करने की जिम्मेदारी शिकायतकर्ता की भी है। यौन अपराधों के मामले में कानून तो महिला केंद्रित हैं, लेकिन परिस्थितियों का आकलन भी जरूरी है। हर बार ये जरूरी नहीं कि पुरुष ही गलत हो।
आरोपी ने दिए थे ये तर्क
आरोपी कोर्ट को बताया कि शारीरिक संबंध दोनों की सहमति से बने थे। इस दौरान महिला ने अपनी जाति छुपाई। जब उसे महिला की असली जाति का पता चला तो उसने शादी से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने कही ये बात
वहीं कोर्ट ने भी पाया कि महिला 2010 में शादी कर चुकी थी, लेकिन बाद में वह अपने पति से अलग हो गई और दोनों के बीच तलाक भी नहीं हुआ। ऐसे में कोर्ट ने माना कि महिला पहले से विवाहित है और कानून की नजर में उसका विवाह मौजूद भी है। लिहाजा शादी के वादा का आरोप खत्म हो जाता है।