जानें क्या होगा जब NOTA को मिल जाए ‘जीत’, AAP और शिरोमणि अकाली दल प्रत्याशी को नकार चुकी है जनता, जानें पूरा किस्सा
HIGHLIGHTS
- हरियाणा में मतदाता नोटा को ज्यादा तरजीह देते हैं।
- हरियाणा के अंबाला में 7816 मतदाताओं ने किसी भी उम्मीदवार को काबिल नहीं माना।
- इसी कड़ी में दूसरे स्थान पर रोहतक रहा, जहां 4932 वोटरों ने नोटा को चुना।
सुधीर तंवर, चंडीगढ़। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार देश में मतदाताओं को नोटा का अधिकार मिला था। इस व्यवस्था के तहत मतदाता को यदि कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आता है तो वह नोटा का विकल्प चुन सकता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में हरियाणा एक ऐसा राज्य हैं, जहां चुनावों में NOTA की भी जीत हो चुकी है, यानी जनता ने सभी दलों के प्रत्याशियों को सिरे से नकार दिया है। यहां जानें क्या है पूरा किस्सा।
जब हरियाणा में हुई NOTA की ‘जीत’
हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में NOTA का विकल्प छुपा रुस्तम साबित हो चुका है। NOTA के कारण आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल जैसे दलों के प्रत्याशी को भी मात मिली है। इसके अलावा 80 फीसदी से अधिक निर्दलीय प्रत्याशियों को भी पटखनी मिली है। साल 2014 में जब पहली बार NOTA लागू किया गया था तो लोकसभा चुनाव के दौरान 34220 लोगों को कोई प्रत्याशी पसंद नहीं आया।
हरियाणा में NOTA का ट्रैक रिकॉर्ड
हरियाणा में मतदाता नोटा को ज्यादा तरजीह देते हैं। ये आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा के अंबाला में 7816 मतदाताओं ने किसी भी उम्मीदवार को काबिल नहीं माना और NOTA का विकल्प चुना। इसी कड़ी में दूसरे स्थान पर रोहतक रहा, जहां 4932 वोटरों ने नोटा को चुना। तीसरे स्थान सिरसा रहा। इसी प्रकार 2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो कुल 41 हजार 781 मतदाताओं ने NOTA को चुना। हरियाणा में एक भी लोकसभा सीट ऐसी नहीं थी, जहां नोटा को 2000 से कम वोट मिले हों।
नोटा को ज्यादा वोट मिले तो दोबारा हुए चुनाव
नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलने पर फिर से चुनाव कराने का प्रावधान है। हरियाणा इस मामले में भी पीछे नहीं है। साल 2018 के दिसंबर माह में जब हरियाणा के 5 जिलों में हुए नगर निगम चुनाव संपन्न हुए तो कुछ वार्डों में NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिले और यहां फिर से चुनाव संपन्न कराना पड़ा था। यहां आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल जैसे दलों के प्रत्याशियों को भी जनता ने सिरे से नकार दिया था।
क्यों लागू हुआ NOTA
चुनाव के दौरान मतदाता को यदि ऐसा लगता है कि सभी उम्मीदवार काबिल नहीं हैं और उसे कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं आता है तो NOTA का बटन दबाकर विरोध दर्ज करा सकते हैं। इस संबंध में 2013 में भारत सरकार बनाम पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज मामले में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जनता को मतदान के लिए NOTA का विकल्प उपलब्ध कराया गया था।