Hamirpur Constituency 2024: कौन थे पहली बार संसद पहुंचने वाले भगवाधारी स्वामी ब्रह्मानंद, गोरक्षा आंदोलन की आवाज की बुलंद
HIGHLIGHTS
- स्वामी ब्रह्मानंद का जन्म बरहरा गांव में 4 दिसंबर, 1894 को हुआ था।
- उन्होंने 23 वर्ष की आयु में ही संन्यास ले लिया था।
- स्वामी ब्रह्मानंद ने गरीबों के उत्थान, शिक्षा, गोरक्षा को लेकर बहुत संघर्ष किया।
अजय दीक्षित, महोबा। आजादी के बाद जब देश में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तो हमीरपुर संसदीय सीट पर भी कांग्रेस का सिक्का जमा हुआ था। 1952 से लगातार 3 बार कांग्रेस ने इस सीट जीत हासिल की, लेकिन कांग्रेस के इस विजय रथ को रोकने का काम किया था संत स्वामी ब्रह्मानंद ने। ये वहीं स्वामी ब्रह्मानंद थे, जिन्होंने गोरक्षा का संकल्प लेते हुए अपने जीवनकाल में पैसों को हाथ से नहीं छुआ था।
जानें कौन थे संत स्वामी ब्रह्मानंद
हमीरपुर संसदीय सीट पर 1952 से लगातार 3 बार कांग्रेस चुनाव जीत चुकी थी। तभी संत स्वामी ब्रह्मानंद ने गोरक्षा आंदोलन की आवाज बुलंद की थी और गोरक्षा आंदोलन की आवाज को संसद तक भी पहुंचाया था। संत स्वामी ब्रह्मानंद की अगुवाई में जब गोरक्षा आंदोलन तेज हुआ था तो घबराई कांग्रेस सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल में भेज दिया था। तब संत स्वामी ब्रह्मानंद ने प्रण लिया था कि वे सांसद बनकर अपनी आवाज को देश की जनता के सामने पहुंचाएंगे।
1967 में पूरा हुआ स्वामी का प्रण
संत स्वामी ब्रह्मानंद का यह प्रण 1967 में पूरा भी हो गया और वे संसद पहुंच गए। इसके बाद स्वामी ब्रह्मानंद के आंदोलन से घबराई कांग्रेस सरकार ने उन्हें मनाने की कोशिश की और इंदिरा गांधी आखिरकार उन्हें कांग्रेस में शामिल करने में सफल हो गई। आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहला अवसर था, जब किसी भगवाधारी संत संसद में गोरक्षा को लेकर 1 घंटे तक भाषण दिया।
हमीरपुर में में जन्मे थे स्वामी ब्रह्मानंद
स्वामी ब्रह्मानंद का जन्म बुंदेलखंड के हमीरपुर की तहसील सरीला के बरहरा गांव में 4 दिसंबर, 1894 को हुआ था। उन्होंने 23 वर्ष की आयु में ही संन्यास ले लिया था। राठ के 86 वर्षीय लेखराज दद्दा का कहना है कि स्वामी ब्रह्मानंद ने गरीबों के उत्थान, शिक्षा, गोरक्षा को लेकर बहुत संघर्ष किया। गोहत्या को लेकर वे बहुत अधिक चिंतित थे। 1966 में स्वामी ब्रह्मानंद ने गोहत्या निषेध आंदोलन चलाया। प्रयाग से दिल्ली के लिए पैदल यात्रा की, जिसमें हजारों साधु-महात्मा शामिल हुए थे। इस आंदोलन के दौरान तत्कालीन सरकार ने स्वामी ब्रह्मानंद को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। जेल से छूटे स्वामी ब्रह्मानंद जब जनता के बीच पहुंचे तो लोगों की सलाह पर चुनावी राजनीति में पहुंचे। 1967 में हमीरपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और तीन बार से जीत रहे कांग्रेसी उम्मीदवार मन्नूलाल द्विवेदी को करारी शिकस्त दी।
सांसद रहते हुए भी भिक्षा मांगकर खाते
सांसद रहते हुए स्वामी ब्रह्मानंद को जो भी धन मिलता था, उसे शिक्षा व गोरक्षा के लिए दे देते थे। खुद भिक्षा मांग कर खाते थे। संन्यासी जीवन में प्रवेश के बाद उन्होंने कभी भी पैसों को हाथ नहीं लगाया। 1969 में जब कांग्रेस ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण का मुद्दा उठाया तो जनसंघ ने इसका विरोध किया था, लेकिन स्वामी ब्रह्मानंद ने इसे राष्ट्रहित में बताया। इस कारण से जनसंघ और स्वामी ब्रह्मानंद के बीच मतभेद बढ़ गए थे। उस दौरान इंदिरा गांधी ने स्वामी ब्रह्मानंद को मनाकर कांग्रेस में शामिल कर लिया। कांग्रेस ने हमीरपुर से 1971 में स्वामी ब्रह्मानंद को टिकट दे दिया और यह सीट एक बार फिर से कांग्रेस के खाते में आ गई।