MP Chunav 2023: मध्य प्रदेश में अचानक उभरे और गुमनामी में खो गए कुछ राजनीतिक दल
MP Chunav 2023: पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सत्ता तक पहुंचे राजनीतिक दल सपा, बसपा, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी मध्य प्रदेश में अपनी किस्मत आजमाते हैं, पर यहां वे चुनावी राजनीति में मजबूत हस्तक्षेप नहीं बना पाए।
HIGHLIGHTS
- मध्य प्रदेश में उज्ज्वल नहीं रहा है क्षेत्रीय दलों का भविष्य।
- मप्र प्रदेश के गठन से 66 वर्ष बाद भी अब तक कोई ऐसा दल कुर्सी तक पहुंचना तो दूर, सत्ता के नजदीक तक नहीं पहुंच पाया।
- गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और भारतीय जनशक्ति पार्टी दो दल ऐसे हैं, जिनका जन्म मप्र में ही हुआ।
MP Chunav 2023:, भोपाल। मध्य प्रदेश की राजनीति में वैसे तो दो प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही लंबी पारी खेलते आ रहे हैं, मगर बीच-बीच में ऐसे दल भी उभरकर आते हैं, जिनकी तात्कालिक चमक तो जोरदार होती है, पर वे पांच साल की राजनीतिक पारी भी नहीं खेल पाते। प्रदेश के गठन से 66 वर्ष बाद भी अब तक कोई ऐसा दल कुर्सी तक पहुंचना तो दूर, सत्ता के नजदीक तक नहीं पहुंच पाया।
एक चुनाव से आगे नहीं बढ़ सकी जय गुरुदेव पार्टी
वर्ष 1978 के विधानसभा चुनाव में जोरदार तरीके से उभरी जय गुरुदेव पार्टी की चर्चा चारों ओर थी। आगरा के संत और कथावाचक बाबा जय गुरुदेव ने पार्टी बनाने के साथ मप्र के चुनाव में एक दर्जन से अधिक प्रत्याशी उतारे थे। तत्कालीन गुना जिला (जिसमें आज का अशोकनगर भी शामिल था) में जय गुरुदेव पार्टी की कमान संभाल कर छह प्रत्याशी उतारने वाले मुकेश कुमार माडल बताते हैं कि उस दौरान कांग्रेस के अलावा हिंदू महासभा, जनसंघ ने भी अपने प्रत्याशी उतारे थे।
हालांकि, जय गुरुदेव पार्टी के सभी उम्मीदवार हार गए थे, लेकिन चुनाव के अनुभव अच्छे रहे थे। पार्टी इस एक चुनाव से फिर आगे नहीं बढ़ सकी। जन्म के बाद पैरों पर ठीक से खड़े होने के पहले ही गुमनामी की गर्त में खो जाने वाले दलों में महर्षि महेश योगी द्वारा स्थापित अजेय भारत पार्टी भी प्रमुख है। योग गुरु महेश योगी ने अजेय भारत पार्टी बनाई थी, लेकिन यह भी कुछ खास नहीं कर सकी।
पड़ोसी राज्यों में सत्ता तक पहुंचे दल भी आजमाते हैं किस्मत
पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सत्ता तक पहुंचे राजनीतिक दल सपा, बसपा, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी मध्य प्रदेश में अपनी किस्मत आजमाते हैं, पर यहां वे चुनावी राजनीति में मजबूत हस्तक्षेप नहीं बना पाए। प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा को छोड़कर अब तक कोई तीसरा दल सत्ता में नहीं पहुंचा।
प्रदेश में जन्मे दो दल
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और भारतीय जनशक्ति पार्टी दो दल ऐसे हैं, जिनका जन्म मप्र में ही हुआ। 1991 में आदिवासियों विशेष तौर पर गोंडों के अधिकार के लिए दादा हीरसिंह मरकाम द्वारा गोंगपा का गठन किया गया। इस दल ने आदिवासियों में पैठ बनाई, लेकिन कुछ ही वर्षों में आंतरिक कलह के चलते इसका विघटन हो गया। गोंगापा ने 2003 में 61 उम्मीदवार उतारे, जिनमें तीन को सफलता मिली।
उधर, वर्ष 2006 में भाजपा से निष्कासित पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया। उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी आरएसएस की विचारधारा का पालन करती है, लेकिन इस दल को भी बड़ी राजनीतिक सफलता नही मिल सकी। वर्ष 2008 में भाजश ने सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें से आठ पर सफलता मिली, लेकिन वर्ष 2011 में उमा भारती की भाजपा में वापसी हो गई। इससे पहले इस पार्टी का राजग में विलय हो गया।
इनका कहना है
क्षेत्रीय दलों के सफल न होने व टूटने-बिखरने के पीछे नेताओं की छोटी-छोटी महत्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं। प्रदेश की राजनीति में वही क्षेत्रीय दल एक से ज्यादा चुनाव तक टिके रह सके, जिन्हें पड़ोसी राज्यों में सत्ता में रहने के चलते खाद-पानी मिलता रहा। वर्तमान में जो स्थिति दिख रही है, उसके मुताबिक कहा जा सकता है कि इस विधानसभा चुनाव और आगामी लोकसभा चुनावों तक भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुकाबला होगा।
– पंकज पटेरिया, राजनीतिक विश्लेषक।