Bhopal News:, सम्वेग समारोह में राजस्थान व बुंदेलखंड के कलाकारों ने लोकनृत्यों से बांधा समां, मंत्रमुग्ध हुए दर्शक"/> Bhopal News:, सम्वेग समारोह में राजस्थान व बुंदेलखंड के कलाकारों ने लोकनृत्यों से बांधा समां, मंत्रमुग्ध हुए दर्शक"/>

Bhopal News:, सम्वेग समारोह में राजस्थान व बुंदेलखंड के कलाकारों ने लोकनृत्यों से बांधा समां, मंत्रमुग्ध हुए दर्शक

जनजातीय संग्रहालय में चल रहे सम्वेग समारोह में तीसरे दिन जोधपुर के कलाकारों ने कालबेलिया और सागर की मंडली ने राई नृत्य पेश करते हुए दर्शकों का मनोरंजन किया।

HIGHLIGHTS

  1. गंगाराम भोपा ने महाराज पाबू राठौर की कथा भोपा शैली में सुनाई।
  2. राजस्थान की सपेरा जाति की स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति ने मोहा दर्शकों का मन।
  3. सागर के कलाकारों द्वारा पेश राई नृत्य भी दर्शकों को खूब भाया।
भोपाल,मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में चल रहे सम्वेग में शनिवार को तीसरे दिन विमुक्तों के व्यंजन और शिल्पों का विक्रय हुआ, वहीं शाम को गंगाराम भोपा, जोधपुर द्वारा भोपा गायन, सुरमनाथ कालबेलिया, जोधपुर द्वारा कालबेलिया नृत्य और देवकीराम पटेल एवं साथी, सागर द्वारा राई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। खासकर राजस्थान की स्त्रियों के लोक नृत्यों ने ऐसा समां बांधा कि दर्शक लोक संस्कृति में खो से गए। परिसंवाद और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों पर एकाग्र ‘सम्वेग’ कार्यक्रम को एक दिन बढ़ाया भी गया है। अब इसका समापन रविवार को होगा।

गायन के जरिए सुनाई इतिहासगाथा

कार्यक्रम में सर्वप्रथम गंगाराम भोपा ने भोपा गायन किया गया। प्रस्तुति के दौरान उन्होंने महाराज पाबू राठौर की कथा सुनाई। कलाकारों ने प्रस्तुति के माध्यम से बताया कि पाबूजी महाराज 1400 ईस्वी में सिंध प्रांत से राजस्थान में पहला ऊंट लेकर आए थे। इससे पहले राजस्थान में ऊंट नहीं पाए जाते थे और इसीलिए भोपा उन्हें अपना लोक देवता मानते हैं। गंगाराम भोपा फड़ वाचने का कार्य करते हैं। फड़ एक कपड़ा होता है जिस पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनीं होती हैं और उन आकृतियों के बारे में अपने लोकवाद्य (रावण हत्था) की मदद से गाकर सुनाते हैं। इस तरह से ये मौखिक इतिहासकार हैं।

 

नृत्य से बिखेरी लोक संस्कृति की चमक

भोपा गायन के बाद सुरमनाथ कालबेलिया ने कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति दी। कालबेलिया नृत्य राजस्थान के प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। यह सपेरा जाति की स्त्रियों द्वारा किया जाता है, जो काले रंग का घाघरा, अंगरखा, ओढ़नी पहन कर नृत्य करती हैं। इस नृत्य में बीन, डफली, खंजरी, खुरालिओ और ढोलक आदि वाद्यों का प्रयोग किया जाता है। कलाकारों ने कालियो रे काल्यो कूद पड्यो मेले में…, साइकल पंक्चर कर ल्यायो…, जैसे गीतों पर प्रस्तुति दी। अगले क्रम में देवकीराम पटेल एवं साथी, सागर द्वारा राई नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

 

बाजरे की रोटी और सांगरी है खास

 

कार्यक्रम स्थल पर विमुक्तों के व्यंजन और शिल्पों को प्रदर्शित किया गया, जिसमें कालबेलिया व्यंजन और उनके शिल्प को प्रदर्शित किया गया है। व्यंजन में उन्होंने बाजरे और गेंहू की रोटी, सांगरी, गाट और केर की सब्जी, लाफसी, पापड़ी, पूड़ी, मिर्ची कूटा को प्रस्तुत किया है।सांगरी एक प्रकार की जड़ी बूटी है, जो पौष्टिक और शरीर के लिए लाभदायक होती है। यह चार हजार रुपये किलो तक बिकती है। वहीं शिल्प में माला, गुदड़ी और अन्य सामग्रियों को भी प्रदर्शित कर विक्रय किया गया।

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