अमेरिकी प्रतिबंधों से बेपरवाह है रूस, लावरोव बोले- भारत हमारा दोस्त, जो मांगेगा वो देंगे

नई दिल्ली। यूक्रेन युद्ध के बीच रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री से मुलाकात की। पुराने दोस्तों की ये मुलाकात, नए दोस्तों की आंखों में खटक रही है। नई दिल्ली पहुंचे अमेरिकी और ब्रिटिश अधिकारियों से मुलाकात के बाद भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव से मुलाकात की। भारत का जिक्र करते हुए रूसी विदेश मंत्री ने कहा, “हम दोस्त हैं।” अमेरिकी और ब्रिटिश अधिकारियों के उलट लावरोव ने भारत को न तो कोई नसीहत दी और ना ही कोई ताना मारा।

रूसी विदेश मंत्री ने भारत के रुख की तारीफ करते हुए कहा कि एक दोस्त की तरह नई दिल्ली ने यूक्रेन युद्ध को लेकर “एकतरफा नजरिया” नहीं अपनाया है।  लावरोव ने भारत और रूस के बीच सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया।  रूसी विदेश मंत्री के मुताबिक, उनका देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में गैर पश्चिमी मुद्रा का इस्तेमाल बढ़ाएगा। लावरोव से पहले ब्रिटिश और अमेरिकी अधिकारियों ने भारत पर यह दबाव डालने की कोशिश की कि वह डॉलर पर आधारित वित्तीय लेनदेन सिस्टम को कमजोर न करे। अमेरिकी और ब्रिटिश अधिकारियों ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया वह भारतीय अधिकारियों के गले नहीं उतरी।

रूस और भारत की भरोसेमंद दोस्ती
24 फरवरी 2022 को शुरू हुए यूक्रेन युद्ध के बाद से अब तक भारत और चीन ही ऐसे दो बड़े ताकतवर देश हैं जिन्होंने रूस की आलोचना नहीं की है।  भारत और रूस की दोस्ती पुरानी और गहरी है।  1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने साफ चेतावनी दी थी कि अगर कोई तीसरा देश लड़ाई में कूदा तो सोवियत संघ तमाशा नहीं देखेगा।  उस वक्त अमेरिका और चीन पाकिस्तान के पक्ष में थे।  आजादी के बाद भी स्टील कारखाने, अंतरिक्ष कार्यक्रम और परमाणु ऊर्जा तकनीक के क्षेत्र में रूस ने भारत की काफी मदद की है।  भारत आज भी सबसे ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है।  अमेरिका ने जहां लंबे वक्त तक पाकिस्तान को आधुनिक हथियार दिए, वहीं रूस ने भारत को सुखोई, मिग जैसे विमान और टी सीरीज के टैंक मुहैया कराए।

दो दशक में दोस्ताना हुए भारत-अमेरिका के संबंध
हालांकि बीते दो दशकों में भारत के अमेरिका के संबंध काफी दोस्ताना होते गए।  साथ ही कुछ रक्षा सौदों में लेट लतीफी के कारण भी भारत ने पश्चिमी देशों से हथियार खरीदकर रूस पर निर्भरता घटानी शुरू कर दी।  लेकिन इसके बावजूद भारत आज भी अपने 50 फीसदी से ज्यादा हथियार रूस से खरीदता है।  पुराने हथियारों के पुर्जों और सर्विसिंग के लिए भी रूस पर निर्भरता बहुत ज्यादा है।  इस वक्त यूक्रेन युद्ध के कारण रूस भी बेहद दबाव में है।  रूस को अपनी अर्थव्यवस्था चलाए रखने के लिए नए विकल्प खोजने पड़ रहे हैं।  रूसी विदेश मंत्री के मुताबिक दोनों देश रुपया-रूबल सिस्टम के तहत तेल, हथियार और अन्य सामान का व्यापार कर सकते हैं। लावरोव ने कहा, “भारत जो सामान खरीदना चाहे, हम वह सप्लाई करने के लिए तैयार हैं।”

भारत की मध्यस्थता रूस को मंजूर
भारत की मध्यस्थता का जिक्र लावरोव के मुताबिक अगर भारत रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करता है तो रूस इस पर रजामंद है।  लेकिन फिलहाल भारत की तरफ से ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।  भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के मुताबिक, भारत इस विवाद का शांतिपूर्ण हल चाहता है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, “मतभेदों और विवादों को संवाद और कूटनीति से सुलझाया जाना चाहिए, वह भी अंतरराष्ट्रीय कानून, यूएन चार्टर व राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए।”

अमेरिकी प्रतिबंधों की नहीं है फिक्र
रुपये-रूबल भुगतान तंत्र का समर्थन करते हुए दोनों देश चर्चा कर रहे हैं। लावरोव ने विश्वास व्यक्त किया कि रूस पर लगाए गए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों द्वारा बनाई गई “कृत्रिम बाधाओं” को भारत और रूस दरकिनार कर देंगे और रूस भारत द्वारा खरीदे जाने वाले किसी भी सामान को उपलब्ध कराने के लिए तैयार होगा।

इस पूरे विवाद के बीच भारत ने हाल ही में रूस से सस्ते दामों में करोड़ों लीटर कच्चा तेल खरीदा है।  भारत सरकार का कहना है कि यह फैसला भारतीय जनता के हितों में ध्यान में रखते हुए किया गया है।  पश्चिमी प्रतिबंधों को एकतरफा बताते हुए रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि उनका देश भारत के साथ मिलकर ऐसे गैरकानूनी प्रतिबंधों से पार पा सकता है।  भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात के बाद लावरोव ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।  मोदी से बातचीत के बाद शुक्रवार शाम लावरोव वापस रूस लौट गए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button