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Explained: क्या है कच्चातिवु द्वीप का विवाद, जिसका जिक्र पीएम मोदी ने सदन में किया

HighLights

  • भारत का कभी हिस्सा था कच्चातिवु द्वीप।
  • इसे वापस लेने की मांग उठती रही है।
  • पीएम मोदी ने सदन में किया कच्चातिवु द्वीप का जिक्र।

Explained Katchatheevu Island: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा। पीएम मोदी ने अपने भाषण में कच्चातिवु द्वीप का जिक्र किया। इसे लेकर उन्होंने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मणिपुर की समस्या जल्द खत्म होगी। केंद्र और राज्य सरकार इस पर काम कर रही है।’ इस बीच पीएम ने विपक्षियों से कच्चातिवु द्वीप के बारे में पूछ लिया। उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता कच्चातिवु आइलैंड के बारे में बता दें। हाल ही में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस द्वीप को वापस लेने का मुद्दा उठाया था। तो आइए जानते हैं कच्चातिवु द्वीप को लेकर क्या विवाद है।

 

सबसे पहले जानिए कच्चातिवु द्वीप कहां हैं?

    • कच्चातिवु आईलैंड रामेश्वरम से 25 से 30 किमी की दूरी पर स्थित है।
    • यह द्वीप पिछले 100 साल से भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का विषय रहा था।
    • कच्चातिवु आईलैंड 14वीं सदी में ज्वालामुखी विस्फोट से बना है।
    • इस द्वीप पर तब से रामेश्वरम के मछुआरे मछली पकड़ते रहे हैं। साथ ही वार्षिक उत्सव में भाग लेते रहे हैं।

कच्चातिवु आईलैंड पर श्रीलंका ने किया दावा

श्रीलंका ने 1921 में कच्चातिवु द्वीप पर दावा कर दिया और विवादित क्षेत्र बना दिया। इसके बावजूद श्रीलंका और तमिलनाडु के मछुआरे इसका इस्तेमाल करते रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से श्रीलंका यहां भारतीय मछुआरों को परेशान और गिरफ्तार भी कर लेता है।

इंदिरा गांधी ने गिफ्ट किया था

साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमाओ भंडारनायके के बीच एक समझौता हुआ था। जिसके बाद यह द्वीप भारत ने श्रीलंका को तोहफे में दे दिया। उस समझौते की संसद में कोई पुष्टि नहीं की। जिस पर सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री को अधिकार किसने दिया कि वह भारत की जमीन किसी अन्य देश को गिफ्ट में दे।

जयललिता ने उठाया था मुद्दा

जब तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को उपहार में दिया था। तब एम. करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे। उस समय करुणानिधि ने इसका विरोध नहीं किया, जैसा उन्हें करना था। इसके बाद जयललिता ने मुख्यमंत्री रहते इससे राजनीतिक मुद्दा बनाया था। उनकी सरकार इस मामले को सुप्रीम ले गई। तब से मामला विचारधीन है।

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