वन्यजीय अभयारण्य के साथ बादलों को छूती चोटियां, प्रकृति का अद्भुत नजारों का संगाम है कलसुबाई शिखर

महाराष्ट्र में स्थित कलसुबाई शिखर महाराष्ट्र की सबसे ऊंची चोटी है. इसे महाराष्ट्र के एवरेस्ट के रूप में भी जाना जाता है. ये पश्चिमी घाट में स्थित है. पर्वत श्रृंखला कलसुबाई हरिश्चंद्रगढ़ वन्यजीय अभयारण्य के भीतर स्थित है. साल के बारहों मास देश के कोने-कोने से लोग महाराष्ट्र के इस अद्भुत सौंदर्य का दर्शन करने आते हैं.

पर्वत की चोटी पर स्थित है देवी कलसुबाई का मंदिर. उनके नाम पर ही इस चोटी का नाम ‘माउण्ट कलसुबाई’ पड़ा और सप्ताहांत में यहां खास जमावड़ा लगता है. बाड़ी गांव से कलसुबाई की चढ़ाई प्रारंभ होती है. चढ़ाई तकरीबन साढ़े तीन घण्टे की है जो टेढ़े-मेढ़े और घुमावदार पथरीले रास्तों से तय होती है. कहीं पहाड़ों को सीढ़ीनुमा बनाया गया है तो कहीं लोहे की सीढ़ियों का प्रयोग किया गया है. बीच-बीच में जलपान की दुकानें के साथ विश्राम का भी सुअवसर प्रदान करती हैं. वहीं दूसरी ओर लगभग आधी चढ़ाई पर साढ़ियों पर बैठा बंदरों का जत्था अपने जलपान का इंतजार कर रहा होता है.

पर्वत की चोटी समतल है जिसके बीच में कलसुबाई का मन्दिर है. पहाड़ की इस ऊंचाई पर तापमान काफी गिर जाता है और हवायें काफी तेज होती हैं. चारों ओर धुंध बिखरी होती है. ऐसा लगता है जैसे धरती-आकाश का स्वरुप एक हो गया है. धवलवर्णी और इन सबके मध्य कलसुबाई का केसरिया मन्दिर अपनी पूर्ण आभा में विद्यमान है.

इस मंदिर का निर्माण इंदौर गांव के एक कोली परिवार ने किया था. मान्यता है कि यह मंदिर एक कन्या के नाप पर बनाया गया था. जिसका नाम कलसू कोली था. जिस जगह पर कलसू कोली ने बर्तन साफ किए थे उस जगह को थाली मेल बोला जाता है और जहां कूड़ा डारा था उसे कालधारा बोला जाता है. हर मंगलवार को देवी कलसूबाई की पूजा की जाती है आस पास के गांव के लोग पूजा करने आते हैं.

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