प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फ़ीट ऊंची प्रतिमा का किया अनावरण …. कहा-गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानि राजपथ, आज से इतिहास की बात

नई दिल्ली। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 28 फ़ीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। इसके बाद उन्होंने कर्तव्य पथ का भी उदघाटन किया। पीएम ने सेन्ट्रल विस्टा के एक हिस्से का भी लोकार्पण किया। पीएम मोदी ने सभी श्रमिकों को देश की ओर से धन्यवाद किया है।

उन्होंने कहा – आजादी के अमृत महोत्सव में, देश को आज एक नई प्रेरणा मिली है, नई ऊर्जा मिली है। आज हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं। आज जो हर तरफ ये नई आभा दिख रही है, वो नए भारत के आत्मविश्वास की आभा है।

पीएम मोदी ने आगे कहा – गुलामी का प्रतीक किंग्सवे यानि राजपथ, आज से इतिहास की बात हो गया है, हमेशा के लिए मिट गया है। आज कर्तव्य पथ के रूप में नए इतिहास का सृजन हुआ है। मैं सभी देशवासियों को आजादी के इस अमृतकाल में, गुलामी की एक और पहचान से मुक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आज इंडिया गेट के समीप हमारे राष्ट्रनायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की विशाल मूर्ति भी स्थापित हुई है। गुलामी के समय यहां ब्रिटिश राजसत्ता के प्रतिनिधि की प्रतिमा लगी हुई थी। आज देश ने उसी स्थान पर नेताजी की मूर्ति की स्थापना करके आधुनिक, सशक्त भारत की प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी है।

भारत सुभाष चंद्र बोस की राह पर चला होता तो आज कितनी ऊंचाइयों पर होता

पीएम ने नेताजी को याद करते हुए कहा – सुभाषचंद्र बोस ऐसे महामानव थे, जो पद और संसाधनों की चुनौती से परे थे। उनकी स्वीकार्यता ऐसी थी कि, पूरा विश्व उन्हें नेता मानता था। उनमें साहस था, स्वाभिमान था। उनके पास विचार थे, विजन था। उनमें नेतृत्व की क्षमता थी, नीतियां थीं। अगर आजादी के बाद हमारा भारत सुभाष चंद्र बोस की राह पर चला होता तो आज देश कितनी ऊंचाइयों पर होता! लेकिन दुर्भाग्य से, आजादी के बाद हमारे इस महानायक को भुला दिया गया। उनके विचारों को, उनसे जुड़े प्रतीकों तक को नजरअंदाज कर दिया गया।

ये न शुरुआत है, न अंत है

आज अगर राजपथ का अस्तित्व समाप्त होकर कर्तव्यपथ बना है, आज अगर जॉर्ज पंचम की मूर्ति के निशान को हटाकर नेताजी की मूर्ति लगी है, तो ये गुलामी की मानसिकता के परित्याग का पहला उदाहरण नहीं है। ये न शुरुआत है, न अंत है।

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