अकेले पड़े उद्धव ठाकरे हो रहे फेल; सिर्फ इन नेताओं के भरोसे है जंग

मुंबई. शिवसेना के संकटमोचक माने जाने वाले एकनाथ शिंदे की बगावत ने प्रमुख उद्धव ठाकरे को कई मोर्चों पर मुश्किल में डाल दिया है। सत्ता गंवाने के बाद अब वह मजबूत नेताओं की कमी से भी जूझ रहे हैं। मौजूदा हालात में उद्धव पार्टी के कुछ चुनिंदा नेताओं पर ही निर्भर हैं। इसके अलावा वह पार्टी में पड़ी दरार को लेकर भी संघर्ष करते नजर आ रहे हैं।

पार्टी के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि ठाकरे और उनके सहयोगियों की तरफ से किए जा रहे डैमेज कंट्रोल में बड़े नेता की कमी नजर आती है। इसके अलावा बागियों के खिलाफ भी शिवेसना का आमतौर पर नजर आने वाला रवैया गायब है। इसका एक बड़ा कारण ऐसे नेता की कमी भी है, जो शिंदे की खाली की गई जगह को भर सके। गोपनीयता की शर्त पर पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘शिंदे ऐसे ही एक जननेता थे। ऐसे जन नेता को कम समय में तैयार या बनाया नहीं जा सकता। बिल्कुल मुझे इस बात पर संदेह है कि ठाकरे, आदित्य के राजनीतिक भविष्य के लिए किसी जन नेता को बढ़ने देंगे या नहीं।’

अब कैसे जंग लड़ रही है शिवसेना
सेना के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि ‘असली’ शिवसेना की जंग कानूनी और संगठन स्तर पर लड़ी जा रही है। एक ओर जहां अदालत में अनिल परब, पूर्व मंत्री सुभाष देसाई, अनिल देसाई और अरविंद सावंत कानूनी मामले देख रहे हैं। इधर, रिटायरमेंट की तैयारी कर रहे देसाई संगठन के काम में भी सक्रिय हो गए हैं।

खास बात है कि ठाकरे के निजी सचिव मिलिंद नार्वेकर इस सियासी तस्वीर से गायब हैं। उन्हें सियासी दलों और राजनेताओं के बीच राह बनाने के लिए भी जाना जाता है। पार्टी के एक नेता का कहना है कि शिंदे से अच्छे संबंध होने के चलते भी भरोसे की कमी की एक वजह हो सकता है। इसके अलावा सांसद संजय राउत के गिरफ्तार होने के बाद मीडिया के साथ बातचीत के मोर्चा भी प्रभावित हुआ है।

कौन निभा रहा है जिम्मेदारी
एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘चूंकि राउत को गिरफ्तार कर लिया है, तो मीडिया की रणनीति अरविंद सावंत और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी संभाल रहे हैं।’ वहीं, परब, सचिन अहीर और अजय चौधरी, रविंद्र वाइकर, सुनील प्रभु और संजय पोटनिस जैसे विधायक और ठाकरे के वफादार रहे विभाग प्रमुख आम शिवसैनिकों तक पहुंच रहे हैं।

अपने ही गढ़ में जूझती शिवसेना
मुंबई और ठाणे के बाद शिवसेना मराठवाड़ा में तेजी से बढ़ी थी। हालांकि, अब स्थिति अलग है। उदाहरण के लिए औरंगाबाद जिले शिवसेना के 6 विधायक हैं और यहां केवल एक ही ठाकरे के साथ रह गया है। हालांकि, पूर्व सांसद चंद्रकांत खैरे और एमएलसी अंबादास दानवे लोगों को जुटाने के लिए पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं।

खैरे ने कहा, ‘मैं सभी क्षेत्रों में गया और कार्यकर्ताओं से मिला।’ उन्होंने बताया कि संपर्क प्रमुख विनोद गोसलकर और बब्बन थोराड़ ने संगठन को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाई है। पूर्व सांसद ने बताया, ‘लोग इस बात से नाराज हैं कि जब उन्हें अपने पसीने और प्रयास से चुना और वे लुभाने पर छोड़कर चले गए… आदित्य की जनसभाओं में जुट रही भीड़ इस गुस्से को दिखा रही है।’

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