ऐसे समझें कंपनियों के सेल का खेल, नो-कास्ट ईएमआई के बजाए नकद खरीदने में भलाई
अगर आप यह समझते हैं कि नो-कास्ट ईएमआई (No Cast EMI) पर खरीदारी बहुत समझदारी भरा है तो यह आपका भ्रम है। पहली नजर में लगता है कि नो-कास्ट ईएमआई मुफ्त है, लेकिन असल में यह बिना लागत नहीं होता है। इसकी भरपाई ग्राहक को दी जाने वाली छूट से होती है और ग्राहक को ही इसका भुगतान करना होता है।
ऐसे समझें नो-कॉस्ट ईएमआई का खेल
आप एक लाख रुपए कीमत की कोई वस्तु खरीदते हैं। उस पर छह हजार रुपए की छूट है। नो-कॉस्ट ईएमआई में आपको यह छूट नहीं मिलेगी और यही आपकी ब्याज होगी। इसके अलावा आपको प्रोसेसिंग फीस, प्री-क्लोजर चार्ज और जीएसटी का भुगतान करना पड़ सकता है।
उत्पाद की कीमत में ही ब्याज की राशि
माईमनीमंत्रा डॉट कॉम के संस्थापक राज खोसला का कहना है कि पारंपरिक ईएमआई (समान मासिक किस्त) के विकल्प में मूलधन और ब्याज दोनों शामिल होते हैं, लेकिन नो-कॉस्ट ईएमआई में ब्याज अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होती है। इसमें ब्याज के रूप में कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाता है। खोसला के मुताबिक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने 2013 में एक सर्कुलर में स्पष्ट किया था कि जीरो फीसदी ब्याज या नो-कॉस्ट ईएमआई योजना वैध नहीं है। उत्पाद की कीमत में ही ब्याज की राशि में जुड़ी हुई होती है।
नकद खरीदारी फायदेमंद
बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ आदिल शेट्टी कहते हैं कि नकद खरीदारी ज्यादा फायदेमंद है। इसमें दुकानदार या विक्रेता की ओर से मिल रही छूट का ग्राहक को फायदा मिलता है। ग्राहक सस्ते में खरीदारी कर सकते हैं। हालांकि, नो-कॉस्ट ईएमआई में कई बार ब्याज की राशि विक्रेता खुद वहन करते हैं और ग्राहकों पर इसका बोझ नहीं पड़ता है।