उदयपुर में सड़क पर आई मेवाड़ राजपरिवार की लड़ाई, आखिर कौन हैं महाराणा के वंशज युवराज लक्ष्यराज-विश्वराज?
राजस्थान के उदयपुर राजपरिवार में महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बड़े बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक विवादों में घिर गया। चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ ने भतीजे को राजतिलक की परंपरा निभाने से रोकने के लिए सिटी पैलेट के गेट को बंद कर दिया, जिससे विवाद बढ़ा।
डिजिटल डेस्क, इंदौर। राजस्थान में महाराणा प्रताप के वंशज और उदयपुर के राजपरिवार के सदस्य एवं पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बड़े बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक अपने ही चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ से विवादों की वजह से सुर्खियों में आ गया।
महेंद्र सिंह मेवाड़ के छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ ने भतीजे विश्वराज के राजतिलक पर नाराजगी जताते हुए उनको राजतिलक की परंपरा निभाने से रोकने का प्रयास किया है। दरअसल, उन्होंने उदयपुर सिटी पैलेट के गेट को बंद कर दिया जिससे, विश्वराज राजतिलक के बाद धूणी माता के दर्शन ही न कर पाएं।
चलिए बताते हैं कि आखिर चाचा-भतीजे के परिवारों के बीच की इस दुश्मनी का कारण क्या है…
विश्वराज सिंह (Vishvaraj Singh Rajtilak) पिता महेंद्र सिंह के सबसे बड़े बेटे हैं। उनको चित्तौड़गढ़ का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था, जिसके बाद उनका राजपरिवार के रीति रिवाजों के अनुसार राजतिलक हुआ। परंपरा को निभाते हुए विश्वराज सिंह उदयपुर सिटी पैलेस में धूणी माता के दर्शन के लिए निकले थे।
सिटी पैलेस के ट्रस्टी होने के नाते विश्वराज सिंह मेवाड़े के चाचा अरविंद सिंह ही उसकी पूरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। मेवाड़े के राजघराने में संपत्ति विवाद की जड़ है। महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविंद सिंह मेवाड़ के पिता महाराणा भगवंत ने राजघराने की गद्दी को संभालने के 9 ट्रस्ट बनाए थे। इनकी जिम्मेदारी विश्वराज सिंह के चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ व चचेरे भाई लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ (Lakshyaraj Singh Mewar) के पास है।
महाराणा प्रताप से रखते हैं ताल्लुक
सिसोदिया राजवंश से जुड़े होने के कारण राजस्थान में मेवाड़ परिवार का काफी नाम है। सिसोदिया राजवंश में राणा कुम्भा, राणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे महावीर हुए हैं। विश्वराज सिंह और लक्ष्यराज सिंह महाराणा प्रताप के वशंज हैं।
पिता से झगड़ा बना संपत्ति विवाद का कारण
भगवंत सिंह महाराणा 1955 में मेवाड़ के महाराणा बन गए। उन्होंने पुरखों से मिली बेशुमार संपत्ति को बेचना और लीज पर देना शुरू कर दिया। इस बात विरोध उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह ने किया। दोनों के बीच में विवाद बड़ गया, तो महेंद्र सिंह ने कोर्ट का रास्ता चुना। उन्होंने पिता कोर्ट में अपील की कि संपत्ति का बंटवारा हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत हो। भगवंत सिंह इससे इतना नाराज हो गए कि 15 मई 1984 को वसीयत बनाई, जिसमें छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का एक्ज्यूक्टर बनाने का फैसला किया। महेंद्र सिंह को पूरी तरह से ट्रस्ट और संपत्ति से बाहर निकाल दिया था।
‘लक्ष्यराज सिंह को मिलनी चाहिए राजगद्दी’- अरविंद सिंह
महेंद्र सिंह के परिवार और अरविंद सिंह के परिवार की लड़ाई तभी से चली आ रही है। अरविंद सिंह और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह ने कहा कि विश्वराज सिंह का महाराणा बनना पूरी तर से गैरकानूनी है। अरविंद सिंह ने तर्क दिया कि उनके पिता ने मेवाड़ राजघराने को चलाने के लिए पिता ने ट्रस्ट बनाया था, जिसके संचालन की जिम्मेदारी मुझे दी थी। ऐसे में राजगद्दी पर हक मेरे और मेरे बेट (लक्ष्यराज सिंह) का है।