Shukrawar Ke Upay: शुक्रवार को पूजा के समय मां लक्ष्मी को अर्पित करें ये 3 चीजें, आर्थिक तंगी हो जाएगी दूर
धन की देवी मां लक्ष्मी (Maa Laxmi Puja Vidhi) की महिमा अपरं है। अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि बरसाती हैं। उनकी कृपा से भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। मां लक्ष्मी की कृपा से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। ज्योतिष आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए मां लक्ष्मी की पूजा करने की सलाह देते हैं।
HIGHLIGHTS
- शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को बेहद प्रिय है।
- इस दिन जग की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
- शुक्रवार को कुबेर देव की भी उपासना की जाती है।
उपाय
- धन की देवी मां लक्ष्मी को श्रीफल अति प्रिय है। इसके लिए शुक्रवार के दिन पूजा के समय धन की देवी मां लक्ष्मी को श्रीफल अर्पित करें। इस समय ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा’ मंत्र का पाठ करें। इस मंत्र के जप से साधक पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है। इसके साथ ही धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है।
- अगर आप धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन पूजा के समय मां लक्ष्मी को कमल गट्टा अवश्य अर्पित करें। इस उपाय को करने से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। मां लक्ष्मी की कृपा से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही धन संबंधी परेशानी दूर होती है।
- धन की देवी मां लक्ष्मी को कौड़ी अति प्रिय है। इसके लिए शुक्रवार के दिन पूजा के समय सात कौड़ी अर्पित करें। इस समय ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा मंत्र का जप करें। इस मंत्र के जप से धन और चिंता की समस्या दूर होती है। साथ ही घर में सुखों का आगमन होता है।
धनदा लक्ष्मी स्तोत्र (Dhanadalakshmi Stotram)
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।
॥ देव्युवाच ॥
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥
॥ शिव उवाच ॥
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।
उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥
स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥
धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥
पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।
प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम्॥
धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥
धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥
रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥
आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥
समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥
चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।
मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥
हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥
क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥
कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥
धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥
स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥
पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥