250 साल पुराना है महेश्वरी साड़ी का इतिहास, चंदेरी साड़ी में होते हैं तीन तरह के फैब्रिक्स
इंदौर में राष्ट्रपति द्रोपती मुर्मु ने चंदेरी और महेश्वरी साड़ियां खरीदी। मध्य प्रदेश के दो अलग-अलग इलाकों में बनाई जाने वाली इन साड़ियों का नाम उनके स्थान के नाम पर पड़ा है। अशोकनगर के चंदेरी और खरगोन के महेश्वर में यह साड़ियां बनाई जाती हैं। इन दोनों ही साड़ियों का इतिहास बहुत पुराना है।
HIGHLIGHTS
- महेश्वरी साड़ियों में किले की नक्काशी को ही उकेरा जाता है।
- इनका लंबा सिंगल सिल्क का धागा जलने पर राख हो जाता है।
- वहीं चंदेरी फैब्रिक का इतिहास वैदिक युग में भी मिलता है।
इंदौर। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने इंदौर के मृगनयनी एम्पोरियम से महेश्वरी और चंदेरी साड़ियां खरीदी और यूपीआई के जरिए इसका पेमेंट किया। मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में महेश्वरी साड़ियों का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है। होलकर राजवंश की शासक देवी अहिल्याबाई होलकर ने महेश्वर में सन् 1767 में कुटीर उद्योग स्थापित करवाया था।
गुजरात, हैदराबाद और भारत के अन्य शहरों से बुनकर परिवारों को उन्होंने यहां लाकर बसाया, उन्हें घर, व्यापार की सुविधाएं दी। यहां पहले केवल सूती साड़ियां ही बनाई जाती थीं, लेकिन बाद उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी तथा सोने-चांदी के तारों से बनी साड़ियां भी बनाई जाने लगीं।
महेश्वरी साड़ियों की खासियत यह है कि इसमें किले की नक्काशी को उकेरा जाता है। महेश्वरी साड़ियों में लंबा सिंगल सिल्क का धागा जलने पर राख हो जाता है। बुनाई के दौरान शुद्ध कॉटन सिल्क व जरी का उपयोग होता है। साड़ी में एक इंच में 54, 56, 58 व 60 धागे आते हैं।
चंदेरी साड़ी में तीन तरह के फैब्रिक्स
मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में चंदेरी फैब्रिक का इतिहास वैदिक युग में मिलता है। वर्तमान समय में चंदेरी में तीन तरह के फैब्रिक्स तैयार किए जा रहे हैं। इनमें प्योर सिल्क, चंदेरी काटन और सिल्क काटन शामिल है।
वैसे तो बारीक जरी की किनारी चंदेरी साड़ियों की खास पहचान है, जो सूरत से मंगाई जाती है। इसकी जरी में चांदी से बने धागों में सोने का पानी चढ़ा होता है। इसकी प्रमाणिकता बुनाई से पहले धागे को रंगने से है। हाथ से फूल पहले बनाए जाते हैं। चंदेरी साड़ी के नलफर्मा, डंडीदार, चटाई, जंगला और मेहंदी वाले हाथ जैसे पैटर्न्स काफी प्रसिद्ध हैं।