MP News: बाघों और हाथियों की मौत से चिंतित वन विभाग बांधवगढ़ अभयारण्य में बदलेगा पूरा स्टाफ

बांधवगढ़ में वर्ष 2021 से अब तक 46 से अधिक बाघों की मौत पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने संज्ञान लिया था, वहीं हाथियों की मौत पर पीएमओ ने रिपोर्ट तलब की है।

  1. सीएम मोहन यादव की नाराजगी के बाद कवायद शुरू।
  2. डीजी फॉरेस्ट के समक्ष बताई वन्यजीव प्रबंधन की योजना।
  3. वन्यप्राणियों की मौत की जांच में भी मिली थीं खामियां।

भोपाल। मध्य प्रदेश में बाघों और दो-तीन दिन के अंतराल में 10 हाथियों की मौत से हाल ही में चर्चा में आए बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में पूरा स्टाफ बदलने की तैयारी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की नाराजगी के बाद वन मुख्यालय ने इसकी कवायद शुरू कर दी है।

दरअसल, ऐसे कई अधिकारी- कर्मचारी है, जो वर्षों से यहां एक ही जगह पदस्थ हैं। इस घटना के बाद, बांधवगढ़ में वर्ष 2021 से अब तक 46 से अधिक बाघों की मौत पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने संज्ञान लिया था, वहीं हाथियों की मौत पर पीएमओ ने रिपोर्ट तलब की है।

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इसी बीच दिल्ली से भोपाल आए महानिदेशक (डीजी) वन जितेंद्र कुमार के समक्ष भी वन विभाग के अधिकारियों ने प्रदेश में वन्यजीव प्रबंधन की कार्ययोजना प्रस्तुत की थी। डीजी जितेंद्र कुमार ने भी बाघों और हाथियों की मौत पर चिंता जताई है। बताया गया है कि इस बार 10 की जगह 25 वर्ष की वन्यप्राणी प्रबंधन कार्ययोजना बनाई जाएगी। इसी आधार पर केंद्र सरकार से बजट मांगा जाएगा।

बाघों की बात करें तो मध्य प्रदेश में वर्ष 2021 से मार्च, 2024 के बीच 155 से अधिक बाघों की मौत दर्ज की गई। इसमें भी सर्वाधिक बाघों की मौत बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व व उससे सटे जंगल में हुई है। बांधवगढ़ में 46 से अधिक बाघों की मौत हुई है।
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जांच में भी मिली लापरवाही

बांधवगढ़ में बाघों की मौत के लिए शिकार से लेकर उनके बीच आपसी संघर्ष और सामान्य मृत्यु के तथ्य सामने आए हैं। बाघों की मौत की जांच के लिए बनाई गई समिति ने मौके पर पहुंचकर हर पहलू की जांच की। इसमें चौंकाने वाले तथ्य मिले हैं।
घटनास्थल की जांच के दौरान श्वान दल और मेटल डिटेक्टर नहीं ले जाया गया। साक्ष्य भी सुरक्षित नहीं रखे गए। जिसके चलते कोर्ट में प्रकरण कमजोर रहा। बाघ की मौत के अधिकांश प्रकरणों में रिपोर्ट ही दर्ज नहीं की गई गई। उनके शव के पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी नहीं की गई है और पोस्टमार्टम के दौरान डाक्टर मौजूद नहीं रहे, जिसके चलते मौत या शिकार की स्पष्टता नहीं हो सकी।
शिकार वाले क्षेत्रों में सुरक्षा इंतजाम ही नहीं थे। यह रिपोर्ट स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स (एसटीएसएफ) प्रभारी रितेश सरोठिया ने तत्कालीन प्रभारी वन्यप्राणी अभिरक्षक सुभरंजन सेन को सौंपी थी। रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हुई है।

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