Bhagwan Jagannath Snan: सोने के कुएं के जल से स्नान करेंगे भगवान जगन्‍नाथ, फिर 14 दिन तक रहेंगे बीमार, जानें क्‍या है मान्‍यता"/> Bhagwan Jagannath Snan: सोने के कुएं के जल से स्नान करेंगे भगवान जगन्‍नाथ, फिर 14 दिन तक रहेंगे बीमार, जानें क्‍या है मान्‍यता"/>

Bhagwan Jagannath Snan: सोने के कुएं के जल से स्नान करेंगे भगवान जगन्‍नाथ, फिर 14 दिन तक रहेंगे बीमार, जानें क्‍या है मान्‍यता

HIGHLIGHTS

  1. जगन्‍नाथ मंदिर में मौजूद है विशेष कुआं
  2. कुएं की दीवार पर लगी है सोने की ईंट
  3. साल में एक बार ही खुलता है कुआं

Bhagwan Jagannath Snan धर्म डेस्क, इंदौर। विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा को प्रत्‍येक वर्ष सहस्त्रधारा स्नान करवाया जाता है। यह भगवान के प्रमुख अनुष्ठानों में से एक है। तीनों देवताओं को सहस्त्रधारा स्नान ज्‍येष्‍ठ माह की पूर्णिमा को करवाया जाता है। इस वर्ष यह स्‍नान कल यानी शनिवार को होगा।

सोने के कुएं से लाया जाता है पानी

भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा को स्नान करवाने के लिए जल एक विशेष कुए में से लाया जाता है, जिसे सोने का कुआं कहा गया है। बताया जाता है कि यह कुआं करीब 4 से 5 फीट चौड़ा है और इसमें नीचे की ओर दीवारों पर पांड्य राजा इंद्रद्यम्‍न द्वारा सोने की ईंट लगवाई गई थी।

कुएं का ढक्‍कन लोहे और सीमेंट से बनाया गया है, जो करीब दो टन वजनी है। साल में सिर्फ एक बार ही कुएं को खोला जाता है। कुएं के ढक्‍कन पर एक छेद भी है, जिसमें से भक्त सोने की वस्‍तुएं डाल सकते हैं, इस कुएं में कितना सोना है, इसकी जांच आज तक नहीं की गई।

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स्नान मंडप में लाए जाते हैं देवता

सहस्त्रधारा स्नान के लिए भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा को स्नान मंडप तक लाया जाता है और जगन्नाथ मंदिर के अंदर मौजूद कुएं के जल से इन्हें स्नान करवाया जाता है और कुए से लाए गए 108 घड़ों के जल से उन्‍हें स्‍नान करवाया जाता है।

बीमार पड़ जाते हैं भगवान जगन्‍नाथ

मान्‍यता है सहस्‍त्रधारा स्‍नान से दौरान भगवान जगन्नाथ ज्यादा स्नान करने के कारण बीमार पड़ जाते हैं, ऐसे में वे भक्तों को दर्शन नहीं देते और मंदिर के पट 14 दिनों तक बंद रहते हैं। इस दौरान भगवान का उपचार चलता है और उन्हें सादा भोजन ही दिया जाता है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। यह दिन नेत्र उत्सव के रूप में मनाया जाता है और इसके बाद रथयात्रा निकाली जाती है।

 

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