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Gwalior News: धुआं के हनुमान, एक दिन में तीन रूपों देते हैं दर्शन

Gwalior News: ग्वालियर। रामभक्त व माता जानकी के दुलारे अंजनी नंदन की महिमा अपार है। पवनसुत का नाम लेने मात्र से प्राणी के सारे संकट दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि अपने भक्त को संकट से मुक्त कराने के लिए वे प्रत्यक्ष आते हैं। हनुमान जी की कृपा मात्र से ग्रह-नक्षत्र भी अनुकूल हो जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा को पवनसुत की जयंती देशभर में मनाई जाएगी।

नगर के प्रमुख हनुमान मंदिरों पर रामदुलारे हनुमानजी की कृपा पाने के लिए श्रद्धालु दर्शनों के लिए जाएंगे। वैसे तो नगर में कई प्रसिद्ध और प्राचीन हनुमान मंदिर हैं। इन मंदिरों से हनुमानजी की कृपा की एक नहीं कई किवदंतियां जुड़ी हैं। नगर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित घाटीगांव तहसील के धुआं गांव में प्राचीन हनुमान मंदिर है।

इस मंदिर की मान्यता है कि पवनपुत्र यहां साक्षात विराजमन हैं और भक्तों को दिन में तीन बार स्वरूप बदलकर दर्शन देते हैं। सुबह के समय हनुमान जी बालस्वरूप में नजर आते हैं, उनके मुख मंडल पर बालपन की चंचलता नजर आती है।

दोपहर के समय युवावस्था जैसा तेज हनुमान जी के विग्रह से झलकता है और सांझ ढलते ही हनुमानजी के स्वरूप में गंभीरता यानि वृद्धावस्था जैसी झलक नजर आती है। हनुमान जयंती पर हजारों की संख्या में नगर से नहीं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से हनुमान भक्त दर्शनों के लिए धुआं गांव आते हैं।

बड़े तलाब से प्रकट हुई थी प्रतिमा

धुआं के हनुमानजी की प्रतिमा के संबंध ग्रामीण बताते हैं कि हनुमानजी की इस अद्भुत प्रतिमा का किसी मूर्तिकार ने निर्माण नहीं किया है। यह स्वंय भू-हनुमानजी का विग्रह है। ग्रामीण बताते हैं कि हनुमानजी की प्रतिमा बड़े तलाब से प्रकट हुई थी। प्रतिमा का अदुभुत तेज देखकर इस प्रतिमा को बड़े तालब के पास ही विराजित कर दिया।

विग्रह में नसें भी नजर आती हैं

धुआं गांव में विराजित हनुमानजी का विग्रह अद्भुत है। गौर से देखने पर प्रतिमा में रक्तवाहिनी की नसें नजर आती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन नसों में रक्त प्रवाहित हो रहा हो। हनुमान मंदिर से एक और किवदंती जुड़ी है कि हनुमानजी के ऊपर टीन शेड डाला जा रहा था। मिस्त्रियों ने पत्थर की प्रतिमा समझकर बगैर सुरक्षित किये वेल्डिंग करना शुरु कर दी। वेल्डिंग से निकले शोले प्रतिमा पर जाकर गिरे, जिससे प्रतिमा पर जलने जैसे फफोले पड़ गये थे। यही कारण है कि हनुमान जी के विग्रह पर सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित नहीं किया जाता है।

मन्नत पूरी होने पर यहां सत्यनारायण की कथा करने की मान्यता

फूलबाग से किलागेट की तरफ जाते समय सेवानगर रोड पर दाएं तरफ एक रास्ता जाता है। यही रास्ता सीधा खेरापति हनुमान मंदिर पर पहुंचता है। दूसरा रास्ता गांधी नगर में पुलिस चौकी के पास हनुमान मंदिर की तरफ जाता है। इस मंदिर के दायें तरफ किले की तलहटी है।

खेरापति हनुमानजी के प्रति लोगों की काफी श्रद्धा थी। हनुमान जयंती के अलावा शनिवार व मंगलवार को खेरापति हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते थे। मन्नत पूरी होने पर यहां सत्यनारायण की कथा करने की मान्यता है। मंदिर लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष प्राचीन बताया जाता है। यहां पहले जंगल हुआ करता था।

स्टेट टाइम में सेना (खेड़ा) डेरा डालती थी और इसी स्थान से युद्ध के लिए कूच करती थी और इसी स्थान पर वापस लौटती थी। जंगल में हनुमानजी विराजित थे। सेना के जवान हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना कर युद्ध के लिए जाते थे और विजय होकर इसी स्थान पर लौटते थे, इसलिए इस मंदिर का नाम खेरा के साथ खेड़ापति हो गया। ऐसी मान्यता है कि खेड़ापति हनुमान मंदिर में मन्नत मांगने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। यहां दर्शन मात्र से सभी संकट दूर हो जाते हैं।

 

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