MP Cabinet Expansion Analysis: सत्ता की जमावट में संघ-भाजपा के रणनीतिकारों का कोई जवाब नहीं
MP Cabinet Expansion Analysis: लोकसभा चुनाव सामने था तो दूसरी तरफ सरकार चलाने के लिए नए-पुराने चेहरों में संतुलन बनाना भी बेहद आवश्यक था।
HIGHLIGHTS
- पहली बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले सात विधायकों को भी इस बार मंत्री बनने का मौका मिला है।
- कई वर्षों तक मंत्री बने रहे दिग्गजों को सेवानिवृत्ति का संदेश दे दिया है।
- नए चेहरों को शामिल करने में भाजपा संगठन से ज्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीति सफल रही है।
MP Cabinet Expansion Analysis सत्ता की जमावट में भाजपा के रणनीतिकारों का कोई जवाब नहीं। गुजरात फार्मूला तो मध्य प्रदेश में उतार नहीं पाए लेकिन 20 वर्ष बाद सरकार के घिसे-पिटे चेहरों को बदल दिया। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव को कमान सौंपकर भाजपा ने कैबिनेट गठन में 18 चेहरे ऐसे दिए हैं, जो पहली बार कैबिनेट में आए हैं। पहली बार विधानसभा चुनाव जीतने वाले सात विधायकों को भी इस बार मंत्री बनने का मौका मिला है।
पांच महिलाओं को भी मंत्री बनाया गया है। कई वर्षों तक मंत्री बने रहे दिग्गजों को सेवानिवृत्ति का संदेश दे दिया है। जब भाजपा ने विधानसभा चुनाव की तैयारियां आरंभ की थी तभी यह लग रहा था कि पार्टी इस चुनाव को सत्ता में पीढ़ी परिवर्तन का मार्ग बनाएगी लेकिन नेतृत्व को इसमें सफलता नहीं मिली। एंटी इनकंबेंसी का स्रोत होते हुए भी जिन चेहरों को भाजपा ने मजबूरी में टिकट दे दिया, अब जब सरकार के गठन की बात आई तो उन उबाऊ चेहरों से मुक्ति भी पा ली।
दरअसल, भौगोलिक और जातिगत संतुलन के साथ यह परिवर्तन लाना भाजपा के लिए भी आसान नहीं था। एक तरफ लोकसभा चुनाव सामने था तो दूसरी तरफ सरकार चलाने के लिए नए-पुराने चेहरों में संतुलन बनाना भी बेहद आवश्यक था। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस बार सरकार में नए चेहरों को शामिल करने में भाजपा संगठन से ज्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नीति सफल रही है।
संघ के क्षेत्रीय प्रचारक दीपक विस्पुते, भाजपा के संगठन महामंत्री हितानंद और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने सरकार के गठन में जो मानक बनाया था, उसके चलते बहुत सारे नए चेहरे आए। लोकसभा चुनाव को देखते हुए संघ की रणनीति के तहत ओबीसी के 13 मंत्रियों को कैबिनेट में स्थान दिया गया। दरअसल, भाजपा ने इसके जरिये लोकसभा चुनाव 2024 के लिए विपक्षी इंडी गठबंधन की ओबीसी राजनीति का जवाब दिया है।
भाजपा ने बता दिया कि जिन ओबीसी के नाम पर विपक्ष राजनीति कर रहा है, उस वर्ग को भाजपा ने ही सत्ता-संगठन ने सर्वाधिक प्रतिनिधित्व दिया है। संघ ने ही तय किया कि जिन नेताओं को तीन बार सरकार में रहने का अवसर मिला है, उनकी जगह युवाओं को मौका दिया जाए।
ऐसे नेताओं में सिर्फ विवादों में रहने वाले विजय शाह और जातिगत आधार पर नारायण सिंह कुशवाह के अलावा किसी मंत्री को कैबिनेट में स्थान नहीं मिला। शाह आदिवासी हैं, इसलिए पार्टी की मजबूरी उन्हें ढोना है। कैबिनेट के मुखिया डा. मोहन यादव हैं, वह भी संघ की ही पसंद हैं। यही वजह है कि संघ चाहता था कि ऐसे हैवीवेट चेहरों को मंत्री बनाकर यादव के लिए संकट खड़ा नहीं करना था।
संघ की व्यापक सोच का ही परिणाम है कि कैबिनेट में कैलाश विजयवर्गीय जैसे अनुभवी नेताओं को वापस लाया गया है ताकि ब्यूरोक्रेट्स सरकार पर हावी न हो पाएं। इसी कारण प्रहलाद सिंह पटेल और राकेश सिंह जैसे साफ-सुथरे नेताओं को मोहन कैबिनेट में रखा गया है। भाजपा और संघ का प्रयास अब यही है कि उनकी सरकार पारदर्शी तरीके से काम करे।
आम आदमी को सुशासन का अनुभव हो सके और लंबे समय से जो अधिकारियों का गिरोह सरकार चला रहा था, उससे निजात दिलाई जा सके। कैबिनेट में इन नेताओं पर भी संघ के विशेषज्ञ नजर रख रहे हैं ताकि कोई राजधर्म की राह से भटक न जाए। पहली बार जीते सात विधायकों को कैबिनेट में स्थान देकर पार्टी ने यह संदेश भी दिया कि यह सरकार नई पीढ़ी के हाथों में है।
उम्मीद करना चाहिए कि यादव कैबिनेट भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों पर चलकर मध्य प्रदेश को एक नया स्वरूप प्रदान करेगी। आम आदमी भी सुशासन का अनुभव कर सकेगा। चाहे अतिक्रमण का मसला हो या कलेक्टरों को अपने केबिन तक सिमट जाने का लचर सिस्टम हो, नई सरकार नए वर्ष में नए संकल्पों के साथ प्रदेश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का काम करेगी।