Valmiki Ramayan: ‘भगवान राम ने नहीं ली थी मां सीता की अग्नि परीक्षा’, जानें वाल्मीकि रामायण में क्या लिखा है
Valmiki Ramayan: रामायण को लेकर कहा जाता है कि श्रीराम ने मां सीता की अग्नि परीक्षा ली थी, हालांकि इसको लेकर कई कथाएं भी प्रचलित है।
HIGHLIGHTS
- रामायण की कई घटनाएं प्रचलित
- अग्निपरीक्षा का प्रसंग भी प्रचलित
- युद्धकांड में आता है अग्निपरीक्षा का जिक्र
Valmiki Ramayan धर्म डेस्क, इंदौर। ऐतिहासिक और पौराणिक रामायण काल से हमें उस समय की कई घटनाओं की जानकारी मिलती है। इसमें एक ऐसा ही प्रसंग मां सीता की अग्नि परीक्षा का मिलता है। जिसमें कहा जाता है कि श्रीराम ने मां सीता की अग्नि परीक्षा ली थी, हालांकि इसको लेकर कई कथाएं भी प्रचलित है। लेकिन वाल्मीकि रामायण में इस घटनाक्रम का कहां जिक्र आता है और इसे किस रूप में लिखा गया है। इसके बारे में आपको इस लेख में विस्तार से बताते हैं।
वाल्मीकि रामायण में मां सीता की अग्नि परीक्षा का उल्लेख युद्धकांड के 119वें सर्ग में मिलता है। यहां बता दें कि इससे पिछले सर्ग (118 वें सर्ग) में अग्नि परीक्षा को कोई जिक्र नहीं था, हालांकि श्री राम मां सीता को त्यागने की बात कह चुके थे। 119 वें सर्ग में कहा गया है कि तब श्री राम द्वारा मां सीता को कहे गए कठोर वचनों ने वे व्यथित थी। तब उन्होंने श्रीराम से उन पर विश्वास करने की बात कही।
मां सीता ने कही ये बात
मां सीता गंधर्व स्त्रियों के चरित्र से सारी स्त्री जाति के ऊपर संदेह करना उचित नहीं ठहराती है और श्रीराम को उन पर हुए चरित्र संदेह को दूर करने की बात कहती है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार मां सीता आगे कहती हैं कि मैं जनक की बेटी हूं, आपने न मेरी पृथ्वी की उत्पत्ति की ओर ध्यान दिया और न मेरे चरित्र ही का कुछ विचार किया।
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पृथक्स्त्रीणां प्रचारेण जातिं तां परिशंकसे
परित्यजेमां शंकां तु यदि तेदृछं परीक्षिता।। 7
अपदेशेन जनकान्नोंपत्तिर्वसुधातलात्
मम वृत्तं च वृत्तज्ञ बहु तेन पुरस्कृतम्।। 15
इसके बाद मां सीता लक्ष्मण से चिता तैयार को कहती हैं। जिसके बाद लक्ष्मण श्रीराम की ओर देखते हैं, तब वे भी समझ जाते हैं कि श्रीराम भी यही चाहते हैं और लक्ष्मण चिता तैयार कर देते हैं। इसके बाद सीता यह कहती हुई चिता में प्रवेश कर देती हैं कि जिस प्रकार मेरा मन श्रीराम की ओर से कभी चलायमान नहीं हुआ उसी प्रकार सब लोगों के साक्षी अग्नि देव सब प्रकार से मेरी रक्षा करें।
चितां मे कुरु सौमित्रे व्यसनस्यास्य भेपजम्
अब्रवील्लक्ष्मणां सीता दीनं ध्यानपरं स्थितम्।। 17
यथा मे हृदयं नित्यं नामसर्पति राघवात्
तथा लोकस्य साक्षी मां सर्वत: पातु पावक:।। 24
श्री राम से मिलते हैं देवता
वाल्मीकि रामायण के 120 वें सर्ग में कहा गया है कि इस घटनाक्रम के बाद ब्रह्मा सहित सभी देवता श्री राम के पास आते हैं और इस घटनाक्रम को लेकर तरह-तरह की बाते कहकर समझाने के प्रयास करते हैं।
वाल्मीकि रामायण के 121 वें सर्ग में कहा गया है कि ब्रह्मा द्वारा श्रीराम को को वचन सुनाने के बाद अग्नि देव मनुष्य रूप में मां सीता को लेकर अग्नि से बाहर निकलते हैं और उन्हें श्रीराम को सौंप देते हैं और श्रीराम को कई वचन कहते हैं।
स विधूय चितां तां मु वैदेहीं द्छव्यवाहन:
उत्तस्धौ मूर्तिमानाशु गृद्दीत्वा जनकात्मजाम्।।
श्रीराम कहते हैं ये बात
अग्नि देव के वचन सुनकर श्रीराम अग्निदेव को मां सीता को कहे कठोर वचनों का कारण बताते हैं। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि श्रीराम अग्निदेव से कहते हैं कि कि सीता तीनों लोकों में पवित्र हैं, लेकिन वह रावण के रनवास में रहीं हैं। यदि मैं सीता की परीक्षा न कर इसे शुद्ध नहीं करता तो सभी लोग मुझे अनाड़ी और कामी कहते। मुझे मालूम है कि सीता मुझे छोड़ किसी और को स्थान नहीं दे सकती है।
वालिश: खलु कामात्मा रामो दशरथात्मज:
इति वक्ष्यन्ति मां सन्तो जानकीमविशोध्य हि।। 14
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि जब श्रीराम को पता था कि मां सीता पवित्र है तो श्रीराम ने उन्हें अग्नि में प्रवेश से रोका क्यों नहीं इस पर श्रीराम ने कहा कि उन्होंने मां सीता को अग्नि में प्रवेश से इसलिए नहीं रोका और उनकी उपेक्षा की, ताकि तीनों लोकों में सीता की विशुद्ध चरित्रता का विश्वास हो जाए।
प्रत्ययार्थं तु लोकानां त्रयाणां सत्यसंश्रय:
उपेक्षे चापि वैदेहीं प्रविशन्तीं हुताशनम्।। 16
श्रीराम ने आगे कहा कि रावण अपने पतिव्रत धर्म से अपनी रक्षा करने वाली सीता का अनादर नहीं कर सकता। रावण के रनवास में रहने पर भी सीता लोभ में नहीं फंस सकती।
इसके बाद श्रीराम और कई वचन कहते हैं और यह प्रसंग समाप्त हो जाता है।