Sandhi Puja 2023 : संधि काल में देवी चामुंडा ने किया था चंड-मुंड का वध, जानें क्या है नवमी पर संधि पूजा का महत्व
नवरात्रि में नवमी तिथि को संधि पूजा दरअसल उस समय को चिह्नित करती है, जब अष्टमी तिथि नवमी तिथि बन जाती है।
HIGHLIGHTS
- पश्चिम बंगाल में विशेष उत्साह देखने को मिलता है।
- यहां नवमी तिथि को संधि पूजा का विशेष महत्व होता है।
- पश्चिम बंगाल में संधि पूजा अष्टमी के खत्म होने और नवमी के शुरू होने पर की जाती है।
धर्म डेस्क, इंदौर। देशभर में इन दिनों नवरात्रि पर्व उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। नवरात्रि पर्व को लेकर पश्चिम बंगाल में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। यहां नवमी तिथि को संधि पूजा का विशेष महत्व होता है। पश्चिम बंगाल में संधि पूजा अष्टमी के खत्म होने और नवमी के शुरू होने पर की जाती है। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, इस दिन देवी चामुंडा के स्वरूप की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि इस तिथि को ही देवी चामुंडा ने संधि काल में चंड और मुंड राक्षस का वध किया था।
ऐसे करें संधि पूजा
संधि पूजा के दौरान श्रद्धालु मां चामुंडा की पूजा करते हैं। इस दौरान मां की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और फूल, फल और मिठाइयां चढ़ाएं। इसके बाद विधि-विधान से पूजा के बाद मंत्रों का जाप करना चाहिए। आखिर में देवी मां की आरती करने से बाद सभी को प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
संधि पूजा में इन मंत्रों का करें जाप
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः। सवर्स्धः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।।
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके। मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
जानें क्या है संधि पूजा का धार्मिक महत्व
नवरात्रि में नवमी तिथि को संधि पूजा दरअसल उस समय को चिह्नित करती है, जब अष्टमी तिथि नवमी तिथि बन जाती है। संधि पूजा को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता है कि इस समय अवधि में देवी शक्ति चरम पर होती है और इस दौरान देवी को प्रसन्न करना चाहिए, जिससे भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
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