Bhadrapada Amavasya 2023: कब है भाद्रपद अमावस्या? जानिये पितृदोष दूर करने के उपाय
धर्म शास्त्रों में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को विशेष फलदायक माना गया है। इस अमावस्या को भादो अमावस्या, पिठोरी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है।
Bhadrapada Amavasya 2023: सनातन धर्म में अमावस्या को बहुत ज्यादा महत्व दिया है। पंचांग के अनुसार हर महीने के कृष्णपक्ष की पंद्रहवीं तिथि अमावस्या कहलाती है। ये दिन पितरों को तर्पण देने और लक्ष्मी की पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। अमावस्या के दिन स्नान-दान और तर्पण से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और पितृदोष से मुक्ति मिलती है। धर्म शास्त्रों में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को विशेष फलदायक माना गया है। इस अमावस्या को भादो अमावस्या, पिठोरी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। आइये जानते हैं इसकी तिथि और महत्व के बारे में….
भाद्रपद अमावस्या: तिथि
इस साल भाद्रपद मास की अमावस्या 14 सितंबर 2023 को पड़ने जा रही है। अमावस्या की तिथि 14 सितंबर की सुबह से 04:48 बजे से प्रारंभ होकर 15 सितंबर 2023 की सुबह 07:09 बजे तक रहेगी। अमावस्या के स्नान और दान का मुहूर्त सूर्योदय से पहले ही शुरु हो जाएगा। वैसे सुबह 06:05 बजे से 07:38 बजे तक भी स्नान-दान के लिए उत्तम मुहूर्त है।
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
भाद्रपद मास, भागवान विष्णु को समर्पित होता है, इसलिए इस माह की अमावस्या को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। भाद्रपद मास की अमावस्या पर पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने पर कुंडली का पितृ दोष दूर होता है और उनकी कृपा से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही इसी दिन पूजा के लिए प्रयोग लाई जाने वाली कुशा को जमीन से उखाड़ा जाता है। इस तिथि को संतान के सुख-सौभाग्य के लिए देवी दुर्गा की पूजा का भी विधान है।
करें ये विशेष उपाय
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- भाद्रपद मावस्या तिथि को पूजा-तर्पण करने से पितरों से जुड़े दोष दूर होते हैं। किसी पवित्र नदी के किनारे विधि-विधान से पितरों के लिए श्राद्ध एवं तर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। इसके बाद क्षमतानुसार कपडे़े और अन्न का दान भी करना चाहिए।
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- कुंडली में शनि दोष हो, तो अमावस्या के दिन काले कपड़े, काला कंबल, काले जूते आदि का दान करें। काले कुत्तों को तेल में चुपड़ी रोटी खिलाने से भी परेशानियां दूर होती हैं।
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- इस दिन स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं। पीपल में देवताओं का वास होता है। साथ ही शाम के समय सरसों के तेल वाला दीपक जलाएं। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और शनि दोष से भी मुक्ति मिलती है।
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