हार के बाद भी नहीं घटा केशव मौर्य का सियासी कद, नजरअंदाज कर भाजपा भी नहीं उठाना चाहती जोखिम

लखनऊ. उत्तर प्रदेश को शुक्रवार को कुछ नए और कुछ पुराने चेहरों के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार दोबारा मिल गई। इस दौरान केशव प्रसाद मौर्य का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। उन्हें एक बार फिर उप-मुख्यमंत्री बनाया गया है। हालांकि, पिछली कैबिनेट के ऐसे कई नाम भी हैं, जो जीत के बाद भी नई सरकार में जगह नहीं पा सके। बहरहाल, कौशांबी जिले की सिराथू सीट से मिली हार भी मौर्य के सियासी कद को कम नहीं कर सकी। उन्हें अपना दल (कमेरवादी) की पल्लवी पटेल के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।

मौर्य को पार्टी का अन्य पिछड़ा वर्ग का बड़ा चेहरा माना जाता है। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि भाजपा नेतृत्व का एक हिस्सा मौर्य को दिल्ली लाना चाहता था, लेकिन उन्होंने इसपर सहमति नहीं जताई। 2024 के लोकसभा चुनाव में संभावना है कि समाजवादी पार्टी आक्राक होकर गैर-यादव वोट बैंक के लिए काम करेगी। ऐसे में भाजपा नेतृत्व को लगा कि मौर्य को अलग करना बड़ा जोखिम होगा।

मौर्य, काछी-कुशवाह-शाक्य-मौर्य-सैनी-माली ब्लॉक का नेतृत्व करते हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह गठित सोशल जस्टिस कमेटी की 2001 की रिपोर्ट बताती है कि ये समुदाय ओबीसी का 6.69 फीसदी हैं। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाय गया है कि आबादी में 43.13 फीसदी लोग ओबीसी हैं। इनमें से आधे से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।

भाजपा को ऐसे हुआ नुकसान
कुर्मियों की तरफ से वोटों की कमी के चलते भाजपा परेशान है। समिति की रिपोर्ट के अनुसार, यादव के बाद कुर्मी राज्य का दूसरा सबसे बड़ा ओबीसी समूह है। ऐसे में समुदाय के बीच सपा को मिले फायदे ने चिंताएं और बढ़ा दी हैं। चुनाव में सपा के कुर्मी विधायकों ने मौर्य समेत पार्टी के तीन विधायकों को हराया। इतना ही नहीं पार्टी ने भाजपा की उन 7 सीटों पर भी सेंध मारी, जहां से विधायकों को उतारा गया था।

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