जानें क्यों रायपुर के इस शिव मंदिर का नाम पड़ा बूढ़ेश्‍वर महादेव, बहुत ही दिलचस्प है इतिहास

रायपुर: सावन का आज दूसरा सोमवार है। शिव मंदिरों में आज सुबह से ही भक्‍तों की भीड़ उमड़ी हुई है। शिव भक्‍त रायपुर के सबसे बड़े और पुराने बूढ़ातालाब के सामने स्थित बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर में भगवान भोलेनाथ को जल और बेल पत्र चढ़ा रहे हैं। मंदिर के बाहर लंबी कतारें लगी हुई है। आइए जानते हैं मंदिर का इतिहास और इससे जुड़ी खास बातें।

मंदिर का इतिहास

रायपुर का बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। आदिवासी समाज के कुल देवता बूढ़ादेव के नाम पर बूढ़ातालाब का निर्माण किया गया था। इसी तालाब के किनारे स्थित शिवलिंग को बूढ़ेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। बाद में मंदिर का निर्माण किया गया।

पांच सौ वर्ष पुराने बूढ़ातालाब के किनारे शिवलिंग की पूजा की जाती थी। मान्यता है कि शिवलिंग पर हमेशा सर्प लिपटे रहते थे। श्रद्धालु तालाब में स्नान करके शिवलिंग पर जल अर्पित करते थे। लगभग 75 वर्ष पहले श्री पुष्टिकर ब्राह्मण समाज ने भव्य मंदिर बनवाकर वहां शिवलिंग को स्थानांतरित किया।

बूढ़ादेव के नाम पर बूढ़ातालाब की पहचान

मंदिर की विशेषता

मंदिर परिसर में प्राचीन कुआं है। इस कुएं के जल से ही शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। कुएं के सामने भोलेनाथ के अवतार भैरव बाबा की प्रतिमा खुले आसमान तले विराजित है, इस प्रतिमा का सोने, चांदी के बर्क से अगहन माह की अष्टमी तिथि पर विशेष श्रृंगार किया जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश, कार्तिकेय, पार्वती, नंदीदेव भी प्रतिष्ठापित हैं। एक बड़े हाल के बीच छोटा सा गर्भगृह बना है और चारों ओर अनेक देवी-देवता विराजित हैं। राधा-कृष्ण, श्रीराम-सीता के मंदिर है।

पुजारी पं. महेश पांडेय ने कहा, बूढ़ेश्वर मंदिर में सावन के प्रत्येक सोमवार पर किया जाने वाला श्रृंगार प्रसिद्ध है। विविध सामग्री से शिवलिंग का श्रृंगार अलग-अलग रूपों में किया जाता है। साथ ही जलाभिषेक की व्यवस्था की जाती है। पुराने वटवृक्ष से लोगों की आस्था जुड़ी है।

श्रद्धालु गोविंद शर्मा ने कहा, बचपन में पिताजी के साथ बूढ़ेश्वर मंदिर आया करता था, तबसे ऐसी श्रद्धा जागी कि प्रतिदिन भोलेनाथ का दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है। भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।

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