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Korba News; हाथ में किताब की जगह कचरे की बोरी, ध्यान कबाड़ में

हाथ में किताबों की जगह कचरे की बोरी और ध्यान पढ़ाई की जगह कबाड़ की ढेर पर, यही पहचान रह गई है अटल आवास और श्रमिक बाहुल्य बस्ती के बच्चों की। दीगर प्रांत से जीविकापार्जन के लिए पहुंचे श्रमिक अभिभावक अपने बच्चों को काम पर भेजने के साथ कचरा संग्रहित करा रहे हैं।

HIGHLIGHTS

  1. आरटीई के लाभ से वंचित स्लम बस्ती के शाला त्यागी बच्चे
  2. निजी स्कूलों के आत्मानंद स्कूलों में भी नहीं विकल्प
  3. अटल आवास और श्रमिक बस्तियों में रहने वाले अधिकांश बच्चे

 कोरबा शैक्षणिक सत्र 2024-25 में आरटीई के तहत निजी स्कूलों के अलावा आत्मानदं विद्यालय में दाखिले के लिए प्रकिया चल रही है। इसका लाभ स्लम बस्ती के शाला त्यागी बच्चाें को नहीं मिल रहा। शहर में घुमंतू और कचरा उठाने वाले बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही। कंधे में बोरा लटकाए व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के आसपास कचरा तलाशते कम उम्र के बच्चों को अब भी देखा जा सकता है। आरटीई से घुमंतू बच्चों को जोड़ने के लिए शिक्षकों की टीम गठित पिछले तीन साल से नहीं की जा रही। ऐसे में अटल आवास और श्रमिक बस्तियों में रहने वाले अधिकांश बच्चे विद्यालय के अध्यापन से दूर होते जा रहे हैं। इन बच्चों का स्वास्थ्य विभाग में आकलन है ना ही शिक्षा विभाग में आंकड़े। मुफ्त की किताबें, मध्यान्ह भोजन सब कुछ होते हुए भी बच्चों के पीठ से कचरे का बोझ नहीं उतर रहा। कोरोना काल में श्रमिक क्षेत्रों में आनलाइन पढ़ाई का बच्चों को लाभ नहीं मिला। इस दौरान भले ही पढ़ाई ठप रही लेकिन कबाड़ का कारोबार खूब चला।

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