विपक्षी एकता में शामिल कई दलों की विचारधाराएं अलग-अलग, 2024 चुनाव में मिलेगा नया विकल्प, 46 साल बाद दिख रहा ऐसा नजारा

Opposition Unity Meeting: लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर बिहार की राजधानी पटना में हुई विपक्षी दलों की महाबैठक न सिर्फ कई मायने में ऐतिहासिक रही, बल्कि अपने उद्देश्यों में भी पूरी तरह सफल रही है। इस बैठक ने देश में नए विकल्प का स्पष्ट संकेत दे दिया है। इस मायने में इसने अपनी सार्थकता भी सिद्ध कर दी है। विपक्षी दलों ने यह भी दिखाया है कि वे केंद्र की एनडीए सरकार के समक्ष सशक्त चुनौती पेश करने में सक्षम हैं। बैठक में एनडीए से मुकाबले के लिए एक राय बनना गैर भाजपा दलों के लिए एक तरह से सुखद संदेश है। अलग-अलग सोच वाले नेताओं को एक साथ लाना बड़ी सफलता है। 46 साल बाद ऐसा नजारा देखने को मिला है, कि अधिकांश विपक्षी दल साथ बैठे हों। इसके साथ ही विपक्ष के सामने अब कई चुनौतियां भी हैं।

साल 1977 के बाद पहली बार विपक्षी एकता को लेकर ऐसा परिदृश्य देखने को मिला है। इसके पहले भी कई बार विपक्षी दल मिले, गठबंधन भी बना। लेकिन, ऐसा पहली बार हो रहा है, जब इतने दल एक साथ एक प्लेटफॉर्म पर आने को सहजता से तैयार हो गए हैं। उनमें सामंजस्य और भरपूर आत्मविश्वास दिख रहा है। वे यह संदेश देने में सफल रहे कि वे सब मिलकर लड़े तो उनका लक्ष्य असंभव नहीं है।

विपक्ष के सामने कई चुनौतियां
विपक्ष की राह में आगे कई चुनौतियां भी हैं। विपक्षी एकता में शामिल कई दलों की विचारधाराएं अलग-अलग हैं। उनके हित टकरा सकते हैं। कई राज्यों में वे खुद ही आमने-सामने हैं। उनकी लड़ाई भी आपस में ही है। निजी हितों के टकराव की आशंका बनी रहेगी। उन्हें एक मंच पर बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी।

एक चुनौती यह भी रहेगी कि विपक्ष की एकजुटता एनडीए को भी अपना कुनबा बढ़ाने को प्रेरित करेगा। कई दल जो अभी किसी खेमे में नहीं है, उनके एनडीए के साथ जाने की संभावना रहेगी। एनडीए की ओर से ऐसा प्रयास शुरू भी हो चुका है। बिहार में जीतनराम मांझी का दल हम इसका उदाहरण है। इस तरह एनडीए का विस्तार भी विपक्ष के लिए चुनौती होगी।

गैर कांग्रेस और गैर भाजपा का नारा देकर कई दल अपनी अलग राह बना सकते हैं। ऐसी स्थिति में तीसरे मोर्चे का गठन भी इस विपक्ष के गठबंधन के रास्ते में बाधा बन सकता है।

कयासों पर लगा विराम
बैठक के पहले तक विपक्षी दलों को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे थे। इन सबके बीच सभी बड़े दलों के नेताओं का साथ आना तमाम कयासों को खत्म कर गया है। वे समझाने में सफल रहे कि एक के खिलाफ एक उम्मीदवार तय करना दुष्कर नहीं है।

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