‘PCOS’ और ‘PCOD’ में क्या है अंतर? जानें लाइफस्टाइल में बदलाव कैसे दूर कर सकता है समस्या

Difference Between PCOD And PCOS: आजकल के बिजी लाइफस्टाइल, स्ट्रेस और खान-पान में गड़बड़ी की वजह से ज्यादातर महिलाएं पीसीओएस और पीसीओडी जैसी समस्याओं की शिकार बनती जा रही हैं। ये दोनों ही समस्याएं महिलाओं में हार्मोन इंबैलेंस का कारण बनती हैं। बावजूद इसके कई महिलाओं को इन दोनों समस्याओं PCOS और PCOD कंडीशन में अंतर समझ नहीं आता है। ऐसे में फोर्टिस अस्‍पताल, (वसंत कुंज) की प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ नीमा शर्मा से आइए जानते हैं आखिर क्या है PCOS और PCOD कंडीशन में अंतर और क्या इस समस्या को लाइफस्टाइल में बदलाव करके ठीक किया जा सकता है। 

क्या होता है PCOD?-
पीसीओडी का मतलब पॉलिसिस्टिक ओवरी डिजीज, जो एक हार्मोनल डिसऑर्डर है और महिलाओं को होने वाली यह समस्या महिला की ओवरीज को प्रभावित करती है। इस समस्या से पीड़ित महिलाओं की ओवरीज में कई सारी सिस्ट बन जाती हैं।

PCOD के कारण-
जंक फूड, जरूरत से ज्यादा वजन, तनाव और हार्मोनल गड़बड़ी इस स्थिति को जन्म देते हैं। 

PCOD के लक्षण-
पीसीओडी के लक्षण में अनियमित पीरियड्स, पेट के आसपास का फैट बढ़ना, इनफर्टिलिटी और पुरुष पैटर्न हेयर लॉस शामिल होता है। इस समस्या में अंडाशय आमतौर पर बड़े हो जाते हैं और बड़ी मात्रा में एंड्रोजन का स्राव करते हैं, जो महिला की प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचाते हैं।

क्या होता है PCOS?-
पीसीओएस का मतलब पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम होता है। पीसीओएस (PCOS) शरीर में प्रजनन हार्मोन के असंतुलन से पैदा होने वाली मेडिकल कंडीशन को कहते हैं। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं के ओवरीज में सिस्ट भी हो सकते हैं लेकिन हार्मोनल असंतुलन इसमें चिंता का बड़ा विषय होता है। यह एक तरह का मेटाबॉलिक डिसऑर्डर होता है, जो पीसीओडी से अधिक गंभीर समस्या है। इस स्थिति में अंडाशय पुरुष हार्मोन की अधिक मात्रा का उत्पादन करते हैं और इससे हर महीने अंडाशय में दस से अधिक फॉलिक्युलर सिस्ट बनते हैं।

PCOS के लक्षण-
पीसीओएस के सामान्‍य लक्षणों में अनियमित मासिक चक्र,  बाल झड़ना, पेट और जांघ के बीच भाग में कालापन उभरना, मुंहासे या चेहरे पर बालों का उभरना शामिल है। दुनियाभर में प्रजनन आयुवर्ग की करीब 6 से 12 फीसदी महिलाएं इससे प्रभावित हैं। फिलहाल पीसीओएस का कोई इलाज या दवा नहीं मौजूद नहीं है लेकिन जीवनशैली में बदलाव करने से कुछ हद तक इस समस्या से राहत मिल सकती है। आइए जानते हैं जीवनशैली से जुड़े उन बदलाव के बारे में-

व्‍यायाम-
डॉ नीमा शर्मा का कहना है कि, भले ही कोई महिला पीसीओएस से ग्रस्‍त हो या ना हो उसे अपने रोज के रूटिन में शारीरिक व्‍यायाम को जरूर शामिल करना चाहिए। हालांकि जिन महिलाओं को पीसीओएस की समस्या है उनके लिए तो व्‍यायाम बेहद जरूरी है। व्‍यायाम इस प्रकार किया जाए कि उससे पीसीओएस का प्रबंधन करने में आसानी हो। 

योगाभ्‍यास-
पीसीओएस से निपटने में योग लंबे समय तक प्रभावी भूमिका निभाता है। योग को सिर्फ पीसीओएस से बचे रहने के लिए नहीं बल्कि जीवनभर सेहतमंद बने रहने के लिए भी अपनाएं।

हर्बल तरीका अपनाएं-
आयुर्वेद में कुछ जड़ी-बूटियां (हर्ब्‍स),एक्‍यूपंक्‍चर भी पीसीओएस में मददगार माने गए हैं। लेकिन कोई भी हर्बल उपचार लेने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें। 

खान-पान-
 रेशेदार पदार्थों से भरपूर संतुलित खुराक लेना भी फायदेमंद होता है। किसी भी डाइट प्‍लान को अपनाने से पहले किसी अच्‍छे डाइटिशियन से जरूर सलाह लें, यह भी याद रखें कि कुछ सकारात्‍मक असर दिखाई देने में कई बार काफी समय लगता है, लेकिन संतुलित और पोषणयुक्‍त खानपान का पालन करते रहें। 

एंटी-इंफ्लेमेट्री फूड-
पीसीओएस से ग्रस्‍त महिलाओं में एक प्रकार का इंफ्लेमेशन होता है जो ओवरीज को एंड्रोजेन्‍स बनाने के लिए उत्‍प्रेरित करता है। इसलिए अपने भोजन में हरी प‍त्‍तेदार सब्जियों, मेवों, फलों जैसे कि संतरा, चेरी, ब्‍लूबेरी और स्‍ट्रॉबेरी जैसे एंटी-इंफ्लेमेट्री फूड आइटम्‍स शामिल करने से इंफ्लेमेशन को कम करने में मदद मिलती है। 

प्रोसेस्ड फूड से बचें-
रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स, शुगर और प्रोसेस्ड रेड मीट का सेवन करने से बचें। 

-शराब और धूम्रपान से भी बचें। इस मामले में कोई लापरवाही न करें। 

तनाव से रहें दूर-
कई बार तनाव की वजह से पीसीओएस संबंधी मुश्किलें बढ़ती हैं। ऐसे में तनाव प्रबंधन की तकनीकें, तौर-तरीकें सीखें और अपने जीवन में उन्‍हें लागू करें। 

वेट कंट्रोल-
वजन को नियंत्रित रखना बहुत महत्‍वपूर्ण है। ऐसा देखा गया है कि ज्यादातर मोटापे या सामान्‍य से अधिक वजन वाली महिलाएं पीसीओएस की शिकार होती हैं या उन्‍हें पीसीओएस का खतरा बना रहता है। अपना वेट समय-समय पर नापते रहें और उसे कंट्रोल में रखने की कोशिश करें। 

सलाह- पीसीओएस की वजह से बांझपन, मधुमेह और यहां तक कि हृदय रोगों का भी खतरा बढ़ जाता है। लाइफस्टाइल में सुधार ही पीसीओएस प्रबंधन का एकमात्र उपाय है। 

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