CPM से ज्यादा टिपरा मोथा देगी टेंशन, त्रिपुरा में इस बारी BJP की राह कितनी मुश्किल

देश के उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा में 16 फरवरी को 13वीं विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं। यहां 25 साल तक राज करने वाली सीपीएम का मजबूत किला भेदकर साल 2018 में भाजपा ने पहली बार सत्ता की चाबी संभाली है। इस चुनाव में भाजपा ने इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) के साथ मिलकर सीपीएम को करारी शिकस्त दी। वहीं, कांग्रेस पार्टी पहली बार अपना खाता तक नहीं खोल पाई। यही हाल ममता की पार्टी टीएमसी का भी रहा। इस बारी यह कह देना कि भाजपा के लिए जीत की राह आसान है, कहना इतना सरल नहीं है। क्योंकि चुनाव की रणभेदी में टिपरा मोथा की एंट्री भाजपा के लिए टेंशन लेकर आई है। आदिवासी इलाकों में टिपरा मोथा लोकप्रिय है और इस बारी चुनाव में 60 में से 45 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। उसने यह भी साफ किया है कि वह न तो भाजपा और न किसी और दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी।

त्रिपुरा में सत्तारूढ़ भाजपा न केवल विपक्षी सीपीआई (एम) और कांग्रेस को एक साथ खड़ा करेगी, बल्कि आदिवासी बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में प्रद्योत देब बर्मा के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय दलों के एक मंच टिपरा मोथा के खिलाफ भी लड़ाई लड़ेगी। भगवा पार्टी को 2018 से अपने सहयोगी इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) से दूरी का भी सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ राज्य के लिए IPFT और टिपरा मोथा की एक विचारधारा है। इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि वे एक साथ चुनाव लड़ें। 

ग्रेटर टिपरालैंड
टिपरा मोथा के प्रमुथ और त्रिपुरा के शाही वंशज और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष देब बर्मा ने ग्रेटर टिपरालैंड की मांग को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बना लिया है। पार्टी 60 में से 45 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। भाजपा के लिए टेंशन वाली बात इसलिए है क्योंकि पिछले साल मार्च महीने में त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के अंतर्गत आने वाले 20 विधानसभा सीटों वाले इलाकों में टिपरा मोथा ने बीजेपी और IPFT को हराया था। 

आदिवासी इलाकों में पैठ
भाजपा के लिए इस बारी विधानसभा चुनाव की राह इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि टिपरा मोथा की त्रिपुरा के आदिवासी इलाकों में काफी पैठ है। राज्य में तकरीबन 31 फीसदी आबादी आदिवासी इलाकों में रह रही है। टिपरा मोथा भी आदिवासी इलाकों में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। दल प्रमुख देब बर्मा ने शनिवार को कहा कि वे 16 फरवरी को उन लोगों को हराएंगे जो ग्रेटर टिपरालैंड का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन को भी खारिज किया। 

शून्य से सत्ता के शीर्ष पर भाजपा
त्रिपुरा में 25 साल से शासन कर रहे सीपीएम को उसी के गढ़ में मात देकर भाजपा ने त्रिपुरा की राजनीति में नए युग की शुरुआत की थी। साल 2018 से पहले भाजपा ने यहां किसी भी विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती थी। 2018 में मोदी फैक्टर के दम पर भाजपा 51 में से 44 सीटों पर जीती और राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। भाजपा को 43.59 फीसदी वोट प्रतिशत भी हासिल हुआ था। वहीं, सीपीएम 16 सीटों तक सीमित रही। सीपीएम को 42 फीसदी वोट हासिल हुए। ऐसे में भाजपा को यहां अपना रिकॉर्ड कायम रखने की बड़ी चुनौती है। 

वहीं, कांग्रेस की बात करें तो त्रिपुरा की राजनीति में कभी कांग्रेस की गिनती भी दमदार खिलाड़ियों में होती थी, लेकिन पिछली बार विधानसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला। कांग्रेस ने 59 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उसे दो फीसदी से भी कम वोट मिले। यहीं हश्र तृणमूल कांग्रेस का भी हुआ। टीएमसी ने 24 सीटों पर किस्मत आजमाई थी, लेकिन वो एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही। टीएमसी को सिर्फ 0.3% ही वोट मिले।

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