बसपा सोशल इंजीनियरिंग छोड़ पुराने ट्रैक पर लौटी, जानें मायावती

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2007 में सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले से पूर्ण बहुमत की सत्ता हासिल करने का दावा करने वाली बसपा ने नगर निकाय और लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति बदलनी शुरू कर दी है. बीएसपी चीफ मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग को छोड़कर पुराने ट्रैक पर लौटने का फैसला किया है.

यूपी में तिलक तराजू, और तलवार….के नारों से तीन बार सत्ता में आने वाली मायावती का बेस वोट (दलित, मुस्लिम और पिछड़ा) सोशल इंजीनियरिंग के चलते दूर होता जा रहा है. इसीलिए 2007 के बाद से लगातार वोट घटने के साथ ही सीट घटी हैं. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा को सिर्फ एक सीट मिली. इसकी जीत को भी सियासी जानकर बसपा के बजाय प्रत्याशी की जीत मान रहे हैं. बसपा का वोट 27 फीसद से घटकर 12 फीसद रह गया है. इसके लिए सोशल इंजीनियरिंग को जिम्मेदार माना जा रहा है.

बीएसपी चीफ ने बरेली समेत सभी जिलों के संगठन पदाधिकारियों को दलित, मुस्लिम और पिछड़ों को जोड़ने के निर्देश दिए हैं. पार्टी का मानना है कि ब्राह्मण वोट नहीं मिल रहा है. लेकिन, उसकी वजह से बेस वोट दूर होता जा रहा है. बीएसपी चीफ मायावती के बदलते रुख के कारण ही यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से सतीश चंद्र मिश्रा कम दिखाई दे रहे हैं, जबकि बसपा सरकार में महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले उनके रिश्तेदार भाजपा, कांग्रेस आदि दलों की तरफ रुख कर रहे हैं. इसको लेकर सियासी गलियारों में चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं.

बीएसपी चीफ मायावती सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति के चलते भाजपा के प्रति नरम रही, जिसके चलते विधानसभा चुनाव में मुसलमान वोट एकजुट होकर सपा के साथ चला गया. इस कारण बसपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा. हालांकि, अब उन्होंने रणनीति बदली है.

मायावती एक बार फिर दलित-मुसलमान गठजोड़ बनाने की कोशिश में जुटी हैं. मुस्लिम वोट को अपने साथ लाने के लिए लगातार भाजपा पर हमलावर हैं.मगर, वह कितनी कामयाब होंगी. यह आने वाले चुनाव के परिणाम बताएंगे.

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