जज भी आम कर्मचारियों की तरह लें छुट्टी, संसद में उठा सवाल
संसद में जजों की सर्दियों और गर्मियों में होने वाली लंबी छुट्टियों को रद्द करने की मांग उठी है। राज्यसभा में बुधवार को नई दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिटरेशन सेंटर संशोधन विधेयक पर चर्चा करते हुए कुछ सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में छुट्टियों की व्यवस्था पर सवाल उठाया। सांसदों ने कहा कि छुट्टियों का जो मौजूदा सिस्टम है, वह अंग्रेजी राज की देन है। उन्होंने कहा कि अब इसे समाप्त होना चाहिए क्योंकि इसके चलते अदालतों में बड़ी संख्या में मामले लटके रहते हैं। दरअसल संशोधन विधेयक में नई दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिटरेशन सेंटर का नाम अब इंडिया इंटरनेशनल आर्बिटरेशन सेंटर करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा इसकी शक्तियों में भी कुछ इजाफा किया जाएगा।
इंडिया इंटरनेशनल आर्बिटरेशन सेंटर को लेकर कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि हम लंदन और सिंगापुर की तर्ज पर इसे विकसित करेंगे। उन्होंने कहा कि भारत में तेजी से आर्थिक ग्रोथ हुई है। विदेशी निवेश के तहत बड़ी पूंजी देश में आ रही है। ऐसे में भारत के अंदर ही इससे संबंधित मामलों के निपटारे के लिए व्यवस्था बनाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि वित्तीय मामलों के निपटारे के लिए भारत में ही पर्याप्त व्यवस्था होना चाहिए क्योंकि अदालतों में अकसर मामले लंबित ही रह जाते हैं। आर्बिटरेशन सेंटर की स्वतंत्रता पर भी कुछ सदस्यों ने सवाल किया। इस पर रिजिजू ने कहा कि हम सुनिश्चित करेंगे कि इसमें सरकार का कोई दखल या प्रभाव न रहे।
इस दौरान भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने अदालतों में लंबित मामलों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि संवैधानिक अदालतें गर्मियों के सीजन में 47 दिन बंद रहती हैं। इसके अलावा सर्दियों में 20 दिन की छुट्टी होती है। जबकि अन्य सभी विभागों में तकरीबन पूरे साल ही काम होता है। उन्होंने कहा कि इस पर कुछ लोग कह सकते हैं कि वैकेशन जज काम करते हैं। लेकिन हम सभी जानते हैं कि वैकेशन बेंचों में कितना काम हो पाता है। उन्होंने कहा कि मेरी मांग है कि जजों की इतनी लंबी छुट्टियां खत्म होनी चाहिए। इससे लंबित मामलों की संख्या कम हो सकेगी। सुशील मोदी ने कहा कि न्यायपालिका को भी छुट्टियों का वही सालाना कैलेंडर मानना चाहिए, जिसके अनुसार अन्य सार्वजनिक दफ्तर काम करते हैं।