अखिल भारतीय कालिदास समारोह ने भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और देश की विलक्षण प्रतिभाओं को मंच तथा सम्मान देने का विशिष्ट कार्य किया है: राज्यपाल सुश्री उइके
रायपुर. महाकवि कालिदास के कृतित्व के संबंध में अपने विचार व्यक्त करना सूरज को दिया दिखाने के समान है। उनकी रचनाओं और कल्पनाओं में प्राकृतिक सौंदर्य और मानवीय संवेदनाओं के समावेश के कारण ही उन्हें विश्व स्तर पर सम्मान और पहचान मिली। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने उक्त बातें मुख्य अतिथि की आसंदी से उज्जैन में आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। समारोह में राज्यपाल सुश्री उइके ने राष्ट्रीय कालिदास चित्र एवं मूर्तिकला प्रतियोगिता तथा विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
समापन समारोह में शामिल होने के पूर्व छत्तीसगढ़ की राज्यपाल सुश्री उइके के द्वारा महाकवि कालिदास की मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया। साथ ही कालिदास की कृति विक्रमोर्वशीयम से अनुप्राणित चित्र एवं मूर्ति कलाकृतियों की राष्ट्रीय प्रदर्शनी का अवलोकन किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में कालिदास संस्कृत अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ.संतोष पण्ड्या ने कालिदास समारोह-2022 के अन्तर्गत आयोजित किये गये विभिन्न कार्यक्रमों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
राज्यपाल ने अपने संबोधन का प्रारंभ महोत्सव में उपस्थित साहित्य, कला, रंगकर्म, नृत्य और संगीत के क्षेत्र से आए प्रबुद्धजनों के अभिवादन के साथ किया। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक अखिल भारतीय कालिदास समारोह वर्ष 1958 से निरंतर आयोजित हो रहा है। पिछले सात दशकों में इस समारोह ने भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और देश की विलक्षण प्रतिभाओं को मंच तथा सम्मान देने का विशिष्ट कार्य किया है।
राज्यपाल ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक समृद्धता और रचनात्मक संसार के सशक्त आधारस्तंभ के रूप में महाकवि कालिदास का सदैव स्मरण किया जाएगा। इस आर्यवर्त की सांस्कृतिक परम्परा में अनेक महान कवि हुए हैं, परन्तु ऐसे कवि नगण्य ही हैं, जिन्होंने राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना को अभिव्यक्ति दी है, कालिदास उनमें से एक है। उन्होंने कहा कि भारत के हजारों वर्ष के इतिहास के सौन्दर्य को धरातल से उठा कर क्षितिज में प्रतिष्ठित करने और उसे सशक्त वाणी देने का काम महाकवि कालिदास ने किया है। उज्जयिनी अर्थात उज्जैन ऐतिहासिक रूप से धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, कला, साहित्य और वाणिज्य का प्रमुख केन्द्र रहा है। राज्यपाल सुश्री उइके ने अपने संबोधन में आगे कहा कि उज्जैन भूतभावन भगवान बाबा महाकाल का निवास है। श्रीकृष्ण और बलराम की विद्यास्थली है। सिंहस्थ कुंभ का आयोजन इसी पुण्य धरती पर प्रति बारह वर्षों में होता है। यही कारण है कि महाकवि कालिदास की रचनाओं में भी समकालीन उज्जैन की भव्यता का सारगर्भित वर्णन मिलता है। उनकी सर्वोच्च कृति मेघदूत में उज्जयिनी की इमारतों, बाजारों तथा निवासियों का सुन्दर वर्णन मिलता है। उन्होंने उज्जैन को स्वर्ग के एक चमकते हुए टुकड़े के रूप में वर्णित किया है।
राज्यपाल सुश्री उइके ने कहा कि उज्जैन की पावन पुण्य धरा पर महाकवि कालिदास को समर्पित इस आयोजन में सभी कलाकारों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मेरा मानना है कि आप सभी सौभाग्यशाली है, जो इस आयोजन में शामिल हो पाए है। उज्जैन आना ही आत्मिक शांति और ईश्वर की दिव्यता के सानिध्य में पहुंचने जैसा है।
राज्यपाल ने कहा कि ऐसा अद्भुत आयोजन इस ऐतिहासिक नगर में ही संभव है, जिसका आलोक पूरे विश्व में प्रदीप्तमान होगा। कला के विद्यार्थियों और कलाप्रेमियों के साथ-साथ आमजन महाकवि कालिदास और भारत के सांस्कृतिक गौरव से परिचित हुये होंगे। राज्यपाल ने भावी पीढ़ी से आग्रह किया कि वे भारत की सांस्कृतिक परंपरा को सहेजने और विस्तार देने का कार्य प्रतिबद्धता के साथ करें।
राज्यपाल सुश्री उइके ने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति-सभ्यता में जो श्रेष्ठ है, उसका उल्लेख कालिदास के साहित्य में हुआ है। उनकी रचनाएं शक्तिशाली और महान् चरित्रों का वर्णन करने में समर्थ हुई है। साथ ही उन्होंने पंडित सूर्यनारायण व्यास को भी नमन किया, जो इस अद्भुत आयोजन को प्रारंभ करने के सूत्रधार थे।
समारोह को मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव और संस्कृति मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने भी संबोधित किया और राज्यपाल सुश्री उइके को उपस्थिति के लिए उनका अभिवादन किया। राज्यपाल ने समारोह के भव्य आयोजन के लिए संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन को साधुवाद दिया। कार्यक्रम में रामानुजकोट पीठाधीश्वर स्वामी रंगनाथाचार्य, सांसद श्री अनिल फिरोजिया, विधायक श्री पारस जैन, विधायक श्री बहादुर सिंह चौहान, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति श्री अखिलेश कुमार पाण्डेय सहित जनप्रतिनिधिगण एवं कलाकार उपस्थित थे।