किसान, बीज की बोआई से पहले करें बीजोपचार एवं अंकुरण परीक्षण
रायपुर, कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिकों ने प्रदेश के किसानों को बीज की बुआई से पहले बीजोपचार एवं अंकुरण परीक्षण करने की अपील की है। वैज्ञानिकों ने किसानों से अपील करते हुए यह भी कहा है कि वर्षभर फसल उत्पादन के लिए खरीफ की कार्ययोजना बनानी चाहिए। जब हम खेती की बात करते हैं, तब बीज की महत्ता बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि बीज के ऊपर हमारा पूरा कृषि कार्य निर्भर करता है। बीज अगर स्वस्थ होगा तो पौधे भी स्वस्थ होंगे। कीड़े बीमारी का प्रकोप कम होगा और उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि होगी। वहीं यदि बीज सही नहीं है, तो बीज का अंकुरण अच्छा नहीं होगा, प्रति इकाई क्षेत्र में पौध संख्या कम होगी और यदि अंकुरित हो जाता है, तो पौधे अस्वस्थ एवं कीड़े बीमारी का प्रकोप बढ़ जाने से रोकथाम हेतु फसल औषधि का अधिक उपयोग करने के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है। अतः बीज का अंकुरण परीक्षण भी बहुत जरूरी है। वैज्ञानिकों ने किसानों को खेती-किसानी से पहले निम्नानुसार प्रक्रिया अपनाने की अपील की है।
किस्म का चयन –
धान की 10 वर्ष से अधिक पुरानी किस्म का चयन ना करें क्योंकि इनमें रोग, कीट व्याधि से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है। जिससे दवा आदि के रूप में खेती-किसानी की लागत में वृद्धि होती है। अधिक देर से पकने वाली किस्मों का चयन ना करें यह रबी फसल को प्रभावित करेगा।
बीज का चयन –
बीज विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त करें। गुणवत्ता युक्त बीज का चयन ना हो पाने की स्थिति में उत्पादन प्रभावित होता है। 17 प्रतिशत नमक के घोल का उपयोग कर हष्ट-पुष्ट बीज का चयन करें। पोचई एवं कीट व्याधि ग्रसित दानों को अलग कर लेना चाहिए। नमक घोल द्वारा बीज का चयन पश्चात बीजों को साफ पानी से धो लेना चाहिए, ताकि अंकुरण प्रभावित न हो।
बीज उपचार –
प्राप्त बीजों को उपचारित कर ही बोवे इसके लिए 10 ग्राम ट्राइकोडरमा विरीडी प्रति किलो बीज की दर से उपयोग करें या 2-3 ग्राम कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी या मैनकोज़ेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी का उपयोग प्रति किलो बीज की दर से करें।
खेत की तैयारी –
फसलों के अच्छे उत्पादन हेतु खेत की तैयारी बहुत आवश्यक है। अतः मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 जुताई कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने हेतु 6 से 10 टन प्रति एकड़ गोबर की खाद या वर्मी खाद या मुर्गी खाद का भी उपयोग किया जा सकता है।
थरहा उपचार –
रोपा पद्धति से धान की खेती करने वाले कृषक रोपा लगाने से पूर्व थरहा का उपचार अवश्य करें। इस हेतु कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत एसपी 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से या क्लोरोपारीफास् 20 ईसी ढाई मिली प्रति लीटर पानी की दर से थरहा का उपचार करें जो तना छेदक कीट नियंत्रण में कारगर साबित होगा।
निरीक्षण पट्टिका –
खेतों में रोपाई या बुवाई के वक्त इस बात का विशेष ध्यान रखें कि प्रत्येक 3 मीटर पश्चात डेढ़ से 2 फीट चौड़ी निरीक्षण पट्टीका अवशय छोड़ें जिससे खेत में होने वाले रोग व्याधि का निरीक्षण करने में आसानी होगी।
खरपतवार नाशी का प्रयोग –
खरपतवार नाशी की अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग सही समय पर करें खरपतवार नाशी का प्रयोग करते समय फ्लैट फेन नोजल का उपयोग करें। खेत में नमी बनाए रखें व पीछे चलते हुए छिड़काव करें। रोपाई करने वाले कृषक रोपाई पश्चात जल स्तर बनाए रखें ताकि खरपतवार ना उग पाये।